पौंग बांध में मछली के शिकार से हटा प्रतिबंध
पौंग बांध स्थित महाराणा प्रताप सागर झील में मछली का शिकार दोबारा शुरू हो गया है। हर साल 15 जून से 15 अगस्त तक मछली का शिकार दो महीने के लिए प्रतिबंधित रहता है।
सरोज बाला, दातारपुर : पौंग बांध स्थित महाराणा प्रताप सागर झील में मछली का शिकार दोबारा शुरू हो गया है। हर साल 15 जून से 15 अगस्त तक मछली का शिकार दो महीने के लिए प्रतिबंधित रहता है। विभागीय सूत्रों ने बताया कि इन दिनों मछलियां अपनी वंश वृद्धि के लिए प्रजनन करती हैं। शिकार पर से प्रतिबंध हटाने से 1400 मछुआरे अब दोबारा रोजी-रोटी कमा सकेंगे। मत्सय विभाग के सूत्रों ने बताया कि करीब 25 हजार हेक्टेयर भूमि में स्थित झील 300 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। 2013 में इसमें 65 लाख मछली का बीज डाला गया था। 2012 में 34 लाख मछली का बीज तथा 2011 में 58 लाख मछली का बीज डाला गया था। गत सीजन में यहां 3410 क्विंटल मछली उत्पादन हुआ था। 2015 में 52 लाख बीज डाला गया है। इस बार भी लाखों की संख्या में विभिन्न प्रजातियों के बीज डाले गए हैं।
मछलियों की कई प्रसिद्ध प्रजातियां पाई जाती हैं
पौंग झील में महशीर, सिघाड़ा, रेहू, कतला आदि मछलियां प्रमुख तौैर पर मिलती हैं। दो महीने के बाद अब उक्त प्रजातियां शौकीनों के लिए उपलब्ध हो जाएंगी। इनके अलावा मरीगल, मली, कुलवंश भी यहां उपलब्ध होती है। सिघाड़ा यहां पाई जाने वाली प्रमुख मछली है। इसकी तादात यहां 60 प्रतिशत से भी ज्यादा होती है। रेहू दूसरे व कतला तीसरे क्रम पर है। पौंग में पाई जाने वाली सिघाड़ा बड़ी स्वादिष्ट होती है। खासियत यह है कि इसमें कांटे न के बराबर होते हैं यानि की बोनलेस होती है। इसलिए सिघाड़ा की पंजाब में भारी मांग है। दूर-दूर से मछलियों का स्वाद लेने आते हैं लोग
गांव खटियाड़ में इस मछली को पका कर बेचने वाली दर्जन भर दुकानें है। यह जगह इतनी प्रसिद्ध हो गई है कि होशियारपुर, गुरदासपुर, जालंधर, अमृतसर तक के लोग यहां अपनी गाड़ियों में आते है। केवल मछली का स्वाद चखने आए बटाला के सुरेंद्र, गुरनाम, बलविदर तथा सुभाष ने बताया कि वह यहां सिघाड़ा मछली का स्वाद लेने तथा पौंग बांध को देखने के लिए आए हैं। मछली पकड़ने की प्रतियोगिताएं भी होती है आयोजित
पौंग बांध में मछली पकड़ने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है। विभागीय सूत्रों ने बताया कि इस सीजन में भी लाखों मछली के बीज यहां डाले जा रहे हैं ताकि यहां मछली उत्पादन बढ़े तथा मछुआरों को लाभ प्राप्त हो।