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गुरु भक्ति के कारण आरुणि बने उद्दालक : महंत जी

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मां कामाक्षी दरबार कमाही देवी में उपस्थित थे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 03:36 PM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 03:36 PM (IST)
गुरु भक्ति के कारण आरुणि बने उद्दालक : महंत जी
गुरु भक्ति के कारण आरुणि बने उद्दालक : महंत जी

संवाद सहयोगी, दातारपुर : गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मां कामाक्षी, दरबार कमाही देवी में उपस्थित श्रद्धालुओं को तपोमूर्ति महंत 108 राज गिरी जी ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि महाभारत में एक कथा आती है आरुणि की। किसी समय की बात है भारतवर्ष में एक महान ऋषि हुआ करते थे आयोदधौम्य, महर्षि आयोदधौम्य ब्रह्मज्ञानी थे। अपने जिस शिष्य पर प्रसन्न होते थे उस पर अपने स्पर्श मात्र से शक्तिपात कर देते थे और उसे ब्रह्म ज्ञान हो जाता था। उन दिनों महर्षि आयोदधौम्य के तीन प्रधान शिष्य हुआ करते थे, आरुणि, उपमन्यु और वेद। इनमें आरुणि पांचाल देश का रहने वाला था। वह अपने गुरु का परम आज्ञाकारी शिष्य था। दिन हो या रात्रि, जैसा उसके गुरु उसे आदेश करते वह उन्हीं के अनुसार कार्य करता। गुरु की आज्ञा-पालन के अतिरिक्त उसकी प्राथमिकता में और कुछ नहीं था। एक दिन सुबह, सूर्योदय के समय से ही तूफानी वर्षा चहुं ओर हो रही थी। महर्षि आयोदधौम्य चितामग्न थे। समय बीतने के साथ-साथ वर्षा भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। दोपहर बाद, चितित महर्षि आयोदधौम्य ने आरुणि को आश्रम के एक खेत की मेड़ बांधने के लिए भेजा। गुरु की आज्ञा से आरुणि खेत पर गया और प्रयत्न करते-करते हार गया तो भी उससे बांध न बंधा। शरद ऋतु की वह वर्षा अपना रौद्र रूप धारण कर रही थी और आरुणि अपने हर प्रयास में विफल होता जा रहा था। अंत में जब उससे नहीं रहा गया तब उसे एक उपाय सूझा। उसने एक साहसिक निर्णय लिया। अपने जीवन की परवाह किये बिना आरुणि उस मेड़ की जगह स्वयं लेट गया। इससे पानी का बहना बंद हो गया। कुछ समय के बाद ठंड के कारण आरुणि बेहोश हो गया पूरी रात बीत गई, पर वह नहीं लौटा और उधर बारिश भी थम गई महर्षि बहुत चितित थे। पूरी रात उन्होंने बेचैनी से बिताई सुबह उन्होंने शिष्यों के साथ उस जगह पहुंच कर देखा कि आरुणि तो जहां से मेंढ़ टूटी थी, वहीं लेटकर पानी के बहाव को रोके हुए था उसने गुरु जी को बताया जब पानी नहीं रुका तो मैंने लेटकर इसे रोक दिया महंत जी ने कहा यह देखकर महर्षि की आंखों में आंसू आ गये तब महर्षि ने कहा अरे बेटा तुम मेंढ़ को उद्द्लन करके उठे हो। इसलिए आज के बाद तुम्हारा नाम उद्दालक होगा और फिर कृपा दृष्टि से देखते हुए गुरु ने कहा बेटा तुमने मेरी आज्ञा का पालन बिना अपने जीवन की परवाह किए किया है। इसलिए तुम्हारा अतीव कल्याण होगा व सारे वेद और शास्त्र तुम्हें अपने आप याद हो जाएंगे। महंत जी ने कहा यदि जीवन में सफल होना है तो माता-पिता और गुरु की सेवा करनी चाहिए, यही इस पर्व का विशेष महत्व है।

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इस अवसर पर कवि राजिद्र मेहता, डा. रविद्र सिंह, रमन गोल्डी, अजय शास्त्री, शीला, सरिता, कमला व अन्य उपस्थित थे।


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