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82 हजार माईग्रेटरी पक्षी पहुंचे पौंग झील

दातारपुर ब्यास नदी पर बने पौंग बांध की महाराणा प्रताप सागर झील में प्रवासी पक्षियो

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Dec 2017 03:00 AM (IST)Updated: Sun, 10 Dec 2017 03:00 AM (IST)
82 हजार माईग्रेटरी पक्षी पहुंचे पौंग झील
82 हजार माईग्रेटरी पक्षी पहुंचे पौंग झील

सरोज बाला, दातारपुर

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ब्यास नदी पर बने पौंग बांध की महाराणा प्रताप सागर झील में प्रवासी पक्षियों की गिनती लगातार बढ़ रही है। शनिवार तक झील में 82 हजार प¨रदे अपनी आमद दर्ज करवा चुके हैं। पौंग झील में इस साल अधिकतर नए मेहमान आए हैं। पिछले साल वेटलैंड में पांच माह तक प्रवास करने वाले मात्र दस फीसद पक्षी ही लौटकर आए हैं। इससे यह बड़ा संकेत मिला है कि वेटलैंड में हर बार नए प्रवासी पक्षी आते हैं। दुनिया की इस बेहतरीन वेटलैंड में पक्षियों की संख्या में हर साल रिकार्ड वृद्धि हो रही है।

जानकारी के अनुसार मात्र आठ से दस फीसद मेहमान पक्षी की पौंग झील में लौटकर आते हैं, शेष दूसरे जलाशयों का रुख कर लेते हैं। जाहिर है क दुनिया की सबसे सुंदर वेटलैंड में शुमार पौंग झील सेंट्रल एशिया के पक्षियों की पहली पसंद है। साइबेरिया से लेकर अफगानिस्तान तक के पक्षी सर्दियों में पौंग झील में आते हैं। बर्फानी इलाकों से पौंग झील का रुख करने वाले इन पक्षियों ने इस बार जल्दी आना शुरू कर दिया है।

गर्मियों के मौसम में यह मेहमान लद्दाख तथा साइबेरिया में रहते हैं। सेंट्रल एशिया के देशों में नवंबर माह से ठंड बढ़ जाती है। पूरे विश्व के 60 फीसद बार हेडिड गीज (हंस) प्रजाति के पक्षी पौंग झील पहुंच रहे हैं। वर्ष 2014 में पौंग वेटलैंड में एक लाख 32 हजार पक्षी उतरे थे। पौंग झील में मेहमान पक्षियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

पौंग डैम में अब तक 82 हजार माईग्रेटरी पक्षी उतर चुके हैं। सबसे ज्यादा बार हेडिड गीज की प्रजाति शामिल है। हंस प्रजाति के बार हेडिड गीज पक्षियों की संख्या 27,685 दर्ज हो चुकी है। कामनटील 11419, नार्दन ¨पटेल 9608, कामनकूट 6280 तथा लिटल कोरमोरेंट 4226 पौंग झील पहुंच चुकी हैं। इनके अलावा चिफचेफ, रुडी, शेल्डक, कामन, पोचार्ड, कमनतीलगडवाल, लिटिल कोर्मोरेंट, स्पाट्विल मलार्डबड्र्

युरेशियन टीलमूरहेन ग्रेट इग्रेट प्रमुख है। अभी इनकी गिनती में और इजाफा होगा।

वन्य प्राणी संरक्षण विभाग के सेवा ¨सह बताते हैं कि इन मेहमानों की सुरक्षा के लिए विभाग पूरी तरह चाक-चौबंद है और अवैध शिकार की रोकथाम के लिए टीमें बनाकर निगरानी की जा रही है।


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