जम्मू-कश्मीर में पंजाबी को सरकारी भाषाओं की सूची बाहर करने का विरोध
जिला साहित्य केंद्र और जिले की अन्य साहित्यक सभाओं ने गुरु नानक पार्क में बैठक की।
संवाद सहयोगी, गुरदासपुर : जिला साहित्य केंद्र और जिले की अन्य साहित्यक सभाओं ने गुरु नानक पार्क में बैठक की। इस दौरान साहित्यकारों ने केंद्र सरकार द्वारा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में पंजाबी को सरकारी भाषाओं की सूची बाहर करने देने के फैसले की कड़ी निदा की। इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में पंजाबी भाषा लंबे अरसे से सरकारी भाषाओं की सूची में शामिल थी। जिला साहित्य केंद्र के प्रधान प्रोफेसर कृपाल सिंह योगी ने कहा कि दुनिया में कोई भी भाषा वैज्ञानी डोगरी को पंजाबी भाषा से भिन्न नहीं मानता, लेकिन डोगरी को पंजाबी भाषा से पृथक कर पंजाबी भाषा का अपमान किया है।
उधर, सुलक्खन सरहदी ने कहा कि केंद्र सरकार स्थानीय भाषाओं को आलोप करने के पथ पर चल रही है। हिदी भाषा के अलावा अन्य लोकल भाषाओं को सौतेला मानती है। मक्खन कुहाड़ ने नई शिक्षा नीति में सरकार द्वारा संस्कृत और हिदी पर जोर देने और लोक भाषाओं को खत्म करने की नीति बताया। उधर, गुरमीत पाहड़ा, मंगत चंचल, बसंत कुमार, हरदीप सिंह और सुभाष दीवाना ने जम्मू-कश्मीर में पंजाबी भाषा को सरकारी दर्जा बहाल करने की जोरदार मांग की। अंत में डीसी के जरिए प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। इस मौके पर सुखविदर रंधावा, जेपी खरलांवाला, सविदर कलसी, तरसेम सिंह भंगू, कुलदीप पुरोवाल, मंगलदीप, डॉ. सोम राज, जनक राज राठौर, कपूर सिंह घुम्मन, स्टीफन तेजा और अमरजीत सैनी उपस्थित थे।