पुलिस ने दिखाई सख्ती, काटे 13 मोटरसाइकिलों के चालान
सोमवार देर शाम को सिटी रोड पर करीब तीन घंटे नाका लगाकर ट्रैफिक पुलिस ने कुल 13 मोटरसाइकिलों का चालान काटा।
पटना। अगर मन में कुछ कर गुजरने की लालसा, हुनर और जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल रास्ते में रोड़ा नहीं बन पाती। कुछ ऐसा ही नजारा उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए आयोजित प्रतियोगिता में देखने को मिला। यहां 500 से अधिक कलाकार अपना हुनर दिखाने पहुंचे। इनमें से कई तो कलाकार दिव्यांग हैं, जिन्होंने अपनी लगन के दम पर बेरंग कैनवास को रंगीन कर दिया है।
10 से 19 नवंबर तक चली मधुबनी पेंटिंग प्रतियोगिता में पटना सहित आरा, दरभंगा, मधुबनी आदि जिलों से काफी संख्या में प्रतिभागी राज्य पुरस्कार के लिए अपना हुनर दिखाने आए। प्रतियोगिता में हर उम्र के प्रतिभागी शामिल हुए। सबसे ज्यादा हैरान दिव्यांग प्रतिभागियों ने किया। प्रतियोगिता में आए कलाकारों में से किसी के दोनों हाथ नहीं हैं तो कोई बोलने में लाचार है, तो कोई चलने में असमर्थ है। ये प्रतिभागी अपनी सुंदर कलाकृतियों के निर्माण में पूरे 10 दिन लगे रहे।
जुबान नहीं तो तस्वीरों के जरिए बोल रहीं रानी
राजधानी पटना के इंद्रपुरी रोड नंबर एक की रहने वाली विधा रानी सिंह राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए पहली बार बैठी हैं। भगवान बुद्ध की कलाकृतियों को विभिन्न रंगों का समावेश कर उत्कृष्ट आकृति बनाने में लगी हैं। रानी बोल नहीं सकती हैं, लेकिन अपनी अभिव्यक्ति रचनाओं को जरिए बखूबी कर रही हैं। प्रतियोगिता में भाग ले रहीं रानी की दोस्त स्वाति प्रिया बताती हैं कि उन्होंने शिल्प संस्थान परिसर में ही ट्रेनिंग भी ली थी। वो बोल नहीं सकतीं, लेकिन उनकी कलाकृतियां सभी को आकर्षित करती हैं और अपना संदेश देने में कामयाब हैं।
बगैर हाथ के पेंटिंग बना रहे जयराम पासवान -
राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में मिथिला पेंटिंग बना रहे मधुबनी से आए जयराम पासवान अन्य प्रतिभागियों के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। उनके दोनों हाथ नहीं हैं। इसके बावजूद वे रंगों और कूचियों के जरिए अपनी किस्मत को बदलने में लगे हैं। पुरस्कार के लिए पहली बार प्रतियोगिता में बैठे पासवान बताते हैं कि जन्म से ही उनका शरीर पूरी तरह विकसित नहीं था। इसके कारण उन्हें सामाजिक तौर पर उपेक्षा भी झेलनी पड़ी। हालांकि परिवार वालों का साथ हमेशा मिलता रहा। उन्हें इस प्रतियोगिता के बारे में अपने मित्र परीक्षण पासवान से पता चला। इसके बाद वह संस्थान परिसर में आकर मछली के परिवार की आकृति बनाने में लगे हैं। वो बताते हैं कि अपने गांव में भी मिथिला पेंटिंग बनाते हैं और अन्य लोगों को प्रेरित करते हैं।
कला के जरिए किस्मत बदलने में जुटीं पिंकी -
अररिया जिले से आई पिंकी कुमारी दिव्यांग हैं। वह कला के जरिए अपनी किस्मत बदलना चाहती हैं। वे बताती हैं कि बचपन में डॉक्टर के गलत इंजेक्शन देने के बाद एक पैर पूरी तरह से बेकार हो गया। इसके बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। उनकी शादी एक सामाजिक संस्था के सहयोग से हुई। पिंकी के पति अशोक चौहान भी दिव्यांग हैं। वह प्रतियोगिता में अपनी इकलौती बच्ची के साथ आई हैं। वह प्रतियोगिता के लिए भगवान कृष्ण और राधा के बीच रासलीला के प्रसंग को चित्रों के जरिए बयां करने में लगी हैं।
कूची पकड़ते वक्त पंकज को नहीं खलती हाथ की कमी -
मधुबनी जिले के राजनगर से आए पंकज कुमार ठाकुर दोनों हाथों से दिव्यांग हैं। वह मधुबनी पेंटिंग के चित्र बहुत खूब सुंदर बनाते हैं। वह इस प्रतियोगिता में पहली बार भाग ले रहे हैं। राधाकृष्ण के चित्र बना रहे ठाकुर का कहना है कि उन्होंने परिस्थितियों के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके, बल्कि इससे हमेशा लड़ते रहे। प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पड़ोस की भाभी पूजा झा के साथ आए हैं। वे अपने गांव में भी बच्चों को पेंटिंग की बारीकियों से अवगत कराने में लगे रहते हैं।
विघ्नहर्ता गणेश की तस्वीर में बोल रहे सुशील -
दरभंगा के बेनीपुर से पहली बार प्रतियोगिता में आए सुशील कुमार मल्लिक दिव्यांग है। वे बोल नहीं पाते, लेकिन उनकी कलाकृतियों के जरिए काफी कुछ कहते हैं। वे कूची और रंगों के जरिए भगवान गणेश की पेटिंग बनाने में लगे हैं। प्रतियोगिता में आई मल्लिक की बहन इंदू देवी कहती हैं कि वो बचपन से दिव्यांग हैं। इसके बावजूद उनके अंदर कलाओं के प्रति काफी जुनून है। शायद भगवान गणेश उनकी किस्मत को बदल दें, इसी उम्मीद से वे पेंटिंग बनाने में मशगूल हैं।
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कला के प्रति बुजुर्गो में भी जुनून -
राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए शिल्प संस्थान परिसर में युवाओं के साथ बुजुर्ग प्रतिभागी भी बेहतर पेंटिंग बनाने में लगे हैं। मधुबनी जिले के जितवारपुर से आए सिद्धकांत झा पहली बार प्रतियोगिता में भाग लेने आए हैं। 60 वर्षीय झा तांत्रिक काली की पेटिंग बनाने में लगे हैं। उनका कहना है कि ऐसे विषय पर अब कोई काम नहीं करना चाहता। वही मधुबनी से आए 55 वर्षीय कृष्ण कांत झा लोक कला मिथिला पेंटिंग के जरिए शेर और शिकारी का दृश्य बना रहे हैं। वे बताते हैं कि पुरस्कार के लिए वर्ष 2012 से प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं।