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इराक में नरसंहार: टूटी बुढ़ापे की लाठी, कंधे पर पड़ा कर्ज का बोझ

इराक में मारे गए 39 भारतीय में कादियां के मोहल्ला हरिजनपुरा का राकेश कुमार भी था। राकेश के मारे जाने के बाद उसके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 24 Mar 2018 10:12 AM (IST)Updated: Sat, 24 Mar 2018 08:30 PM (IST)
इराक में नरसंहार: टूटी बुढ़ापे की लाठी, कंधे पर पड़ा कर्ज का बोझ
इराक में नरसंहार: टूटी बुढ़ापे की लाठी, कंधे पर पड़ा कर्ज का बोझ

जेएनएन, गुरदासपुर। इराक में मारे गए 39 भारतीय में शामिल कादियां के मोहल्ला हरिजनपुरा के राकेश कुमार के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। इसने परिवार को बिल्कुल तोड़ डाला है। राकेश को भुलाना उसके  बूढ़े माता-पिता, दादी और बहन व भाई के लिए बहुत मुश्किल है। उन्‍हाेंने कर्ज लेकर बेटे को इराक भेजा था आैर बेटे को खोने के दर्द के साथ वे बढ़ते कर्ज में दब गए हैं।

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राकेश के भाई दीपक व पिता मदन लाल ने बताया कि राकेश कुमार सितंबर 2013 में रोजी-रोटी कमाने के लिए 21 वर्ष की आयु में इराक में इस उम्मीद से चला गया था कि वह अपने गरीब परिवार को सुख-सुविधाएं प्रदान करेगा।  बहनों की शादी करवाएगा, लेकिन यह सपना आतंकवादियों की अमानवीय हरकत ने हमेशा-हमेशा के लिए दफन होकर रह गया।

मदन लाल ने बताया कि राकेश कुमार इराक की कंपनी तारीक नूर अलहुदा कमटिन 22 में काम करता था। अभी सात माह ही हुए थे कि 16 जून 2014 की शाम को उसने अपने पिता को फोन पर कहा कि उनकी कंपनी पर आतंकवादियों का कब्जा हो गया है। वे हमें कहां ले गए हैं, इस बारे में उसे कुछ पता नहीं है। उस दिन के बाद उनके बेटे से उनका कोई संपर्क नहीं हुआ और न ही फोन आया।

उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्होंने कादियां के तहसीलदार को लिखित प्रार्थना पत्र दिया। 30 सितंबर 2014 को इस पत्र पर कारवाई आरंभ हो गई और यह कारवाई गत तीन चार वर्षो से दिल्ली और उच्चाधिकारियों के बीच चलती रही और वह अपने बेटे का इंतजार करते रहे। छोटे भाई दीपक ने कहा, मैं और मेरे भाई के साथ ईराक गए लोगों के परिवारों के सदस्य कई वर्षो से विदेश मंत्रालय के चक्कर काटते रहे। उन्हें सही सूचना मंत्रालय ने आज तक नहीं दी।

उन्‍होंने कहा कि केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी वह मिले थे। इस पर उन्होंने विश्वास दिलाया था कि उनके बेटे जीवित हैं और वह बांग्लादेश या कही अन्य जगह पर  काम कर रहे हैं। इसका सरकार पता लगा रही है। उन्होंने  यह बात उनको नहीं बताई कि उनके बेटों को आतंकवादियों ने मार दिया था। यदि हमें सही सूचना दे देते तो हम हजारों के खर्च तले न दबते और परेशानी से बच जाते।

पिता मदन लाल ने बताया कि उन्होंने राकेश को कर्ज लेकर विदेश इस उम्मीद से भेजा था कि घर की हालत ठीक हो जाएगी। बेटियों की शादी भी करनी है। फिर राकेश का घर भी बसाना होगा। उनका घर तीन मरले में है। इसमें दो ही कमरे है। परिवार मेहनत- मजदूरी करके गुजर बसर कर रहा है। तीन बेटियों की साधारण तरीके से शादी करनी पड़ी। घर के हालात अच्छे नही थे। इसलिए बच्चों को अच्छा पढ़ा नही सके। उन्होंने बताया कि उन्होंने बेटे को विदेश भेजने के लिए पचास हजार रुपये कर्ज लिया था। इसके बाद बेटियों की  शादी के लिए भी उन्हें कर्ज उठाना पड़ा, जो अब धीरे धीरे बढ़ कर साढ़े चार लाख रुपये  हो चुका है।

आज तक सरकार ने नहीं की कोई सहायता

मदन लाल  से सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता संबंधी पूछा गया तो उन्होंने हैरानी से कहा कि कौन-सी सरकारी सहायता। हमारे परिवार को तो आज तक सरकार से कोई पैसा नहीं मिला। बेटे को वापस लाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च कर दिल्ली के चक्कर काटते रहे। मदन लाल ने केंद्र व पंजाब सरकार से मांग की है कि उनके परिवार की आर्थिक सहायता की जाए। उनकी गुहार है कि अब बेटे के शव के अवशेष ही उन तक पहुंचा दिए जाएं।


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