मुंशी हरजीत ¨सह ने बनाई बहादुरी और ड्यूटी के निष्ठावान की पहचान
बचपन से पिता को बीएसएफ की वर्दी पहने देख हरजीत ¨सह को भी बड़े होकर देश की रक्षा के लिए पुलिस में भर्ती होने का शोक पैदा हुआ। ि
विनय कोछड़, बटाला
बचपन से पिता को बीएसएफ की वर्दी पहने देख हरजीत ¨सह को भी बड़े होकर देश की रक्षा के लिए पुलिस में भर्ती होने का शौक पैदा हुआ। पिता जो¨गद्र ¨सह बीएसएफ में सूबेदार थे। उनकी ड्यूटी देश के विभिन्न सीमांत क्षेत्रों में रही। हरजीत जब अठारह वर्ष के हुए तो उन्होंने पुलिस में ट्रायल दिए, तो उसे क्लीयर कर कांस्टेबल भर्ती हुए। वर्ष 1992 में आतंक का पंजाब में पूरा बोलबाला था। उस दौरान उनके आतंकियों से मुकाबले हुए, जिन्हें मौत के घाट उतारा। हेड कांस्टेबल ने ड्यूटी को पूरी निष्ठा व ईमानदारी से निभाकर अपनी अलग पहचान बनाई। अब लोगों को ट्रैफिक नियमों का पाठ पढ़ा रहे हैं।
हरजीत ¨सह ने बताया कि हर एक का बचपन अपनी मां की लोरियां सुन कर गुजरता है, लेकिन उनका बचपन कुछ अलग तरह का था। मां सुख¨वद्र कौर से पिता सूबेदार जो¨गद्र ¨सह (बीएसएफ) में ड्यूटी दौरान उनकी बहादुरी के किस्से सुना करते थे। उनके जज्बे से प्रेरित होकर पढ़ाई-लिखाई पूरे करने के बाद पुलिस में वर्ष 1992 में भर्ती हो गया। पहली ड्यूटी तत्कालीन डीएसपी थाना रंगड़-नंगल महेंद्र ¨सह के साथ गनमैन के तौर पर लगी। रात का समय था, थाना की कुछ दूरी पर आतंकी घात लगाकर बैठे थे। उन्होंने हमला बोल दिया। अकेले अपनी गन से चार आतंकियों का मुकाबला किया और चंद मिनटों में उन्हें मौत के घाट उतार दिया। इसके कुछ माह बाद वे अपनी ड्यूटी समाप्त कर घर लौट रहे थे तो अंचल-साहिब के पास उनका दो आतंकियों के साथ मुकाबला हो गया, जिन्हें मुठभेड़ में मारा डाला गया। अब वे ट्रैफिक में ड्यूटी के दौरान लोगों को यातायात नियमों का पाठ पढ़ा रहे हैं। लगभग 2 हजार लोगों को जागरूक किया जा चुका है।
आग से निकाला था तीन मजदूरों को
बटाला पुलिस की आन-बान-शान कहलाने वाले हरजीत ¨सह की बहादुरी के कई किस्से है, जिन्हें भुलाया नही जा सकता। उनके इन किस्सों की वजह से शहरवासी व पुलिस प्रशासन उन्हें सैल्यूट करता है। पहला किस्सा वर्ष 2017 के पास का है, जब काहनूवान रोड पर स्थित एक बर्फ के कारखाना में आग लग गई। आग इतनी भंयकर थी, अंदर बैठे तीन मजदूरों का बच पाना असंभव था, लेकिन हरजीत ¨सह ने अपनी बहादुरी दिखाते उन्हें एक-एक करके बाहर निकाला।
इनमें एक की मौत हो गई, जबकि दो की जान बच गई। इसी तरह जुलाई 2018 में उन्हें पुल डेरा रोड पर एक पर्स मिला। उसमें पहचान-पत्र, नगद 20 हजार रुपये, कुछ कीमती सामान था, तुरंत इसके असली मालिक के साथ संपर्क कर उन्हें उनका पर्स वापस लौटाया गया।
बेहतरीन सेवा के लिए दो बार किया सम्मानित
हरजीत ¨सह को उनकी बहादुरी व ईमानदारी की वजह से दो बार प्रशासन
सम्मानित कर चुका है। 26 जनवरी 2018 को पुलिस व सिविल प्रशासन ने उन्हें बहादुरी के पुरस्कार से सम्मानित किया। उसी प्रकार 15 अगस्त 2018 को ईमानदारी की मिसाल पैदा करने पर उन्हें सार्टिफिकेट सहित सम्मानित किया।
परिवार हर समय करता है प्रोत्साहित
हरजीत ¨सह ने बताया कि उसके हर कार्य में उसकी शुरू से फैमिली सहायक रही। बचपन में उसके माता-पिता उसके हर नेक काम में स्पार्ट करते रहे हैं, अब उनकी पत्नी व बेटी उनके काम में उसे प्रोत्साहित करते है। बेटा रेलवे में अच्छी पोस्ट में कार्यरत है।