शहीद कुलवंत की तमन्ना थी, बेटा बने आर्मी अफसर
पठानकोट में एयरफोर्स स्टेशन पर आतंकी हमले में शहीद हुए डीएससी जवान कुलवंत सिंह की तमन्ना थी कि उनका बेटा को पढ़ा-लिखाकर सेना में बड़ा अफसर बने। उनके परिजनों ने उनसे अाखिरी मुलाकात की बातें सुनाई तो घर पर मौजूद लोगों की आंखें भी छलक पडीं।
जागरण संवाददाता गुरदासपुर। ''बेटा ये लो यह लैपटाप और खूब पढ़ाई करना और आर्मी मे बड़ा अफसर बनना। नए साल पर आकर तुम्हें नया मोटरसाइकिल भी दिलवाऊंगा।' यह बात 12वीं में पढ़ रहे अपने बेटे को अाखिरी मुलाकात मेें डीएससी के जवान कुलवंत सिंह ने कही थी। काहनूवान के गांव चक्क शरीफ के कुलवंत शनिवार को पठानकोट में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे।
'बेटा लो लैपटॉप, खूब पढ़ -लिख कर बडा़ आर्मी अफसर बनना'
शहीद कुलवंत सिंह के बड़े बेटे सतविंदर सिंह ने बताया कि उनके पिता 24 से 29 दिसंबर तक घर छुट्टी आए थे। तब उन्होंने उससे यह कहा था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसकी पिता से यह आखिरी मुलाकात है।
कुलवंत सिंह का छोटा बेटा छठी कक्षा का छात्र है। उसने बताया कि डैडी ने 1 जनवरी को फोन करके उन्हें नए साल की बधाई दी थी। क्या पता था कि वह उनसे उनकी आखिरी बात थी।
मां को संभालता शहीद कुलवंत सिंह का बेटा सतविंदर सिंह और विलाप करते परिजन।
कुलवंत के भाइयों लखविंदर व हरदीप ने बताया कि कुलवंत के घर में उनकी मां रहती हैं। छुट्टियों में जब वह आए थे तो उन्होंने अपने भाइयों को कहा था कि मां का ख्याल रखना।
एक माह पहले ही हुआ पठानकोट तबादला
शहीद कुलवंत की बहन जसविंदर कौर ने बताया कि उनका भाई 20 साल भारतीय सेना में देश की सेवा करने के बाद डीएससी में भर्ती हुआ था। पहले उनकी ड्यूटी उड़ीसा में थी, जहां से एक माह पहले ही तबादला होकर वह पठानकोट आए थे। उन्हें क्या पता था कि जहां पर एक बड़ी आतंकवादी घटना उसका इंतजार कर रही है।
देश भक्ति के गीत लिखने और गाने का था शौक
शहीद की बहन स्वर्ण कौर व भाई हरदीप सिंह ने बताया कि कुलवंत को देशभक्ति के गीत लिखने व गाने का बहुत शौक था। वह अपनी डायरी पर अक्सर देशभक्ति के गीत लिखते रहते थे और उन्हें कई बार सुनाते भी थे।
शहीद कुलवंत के बारे में अपनी यादें साझा करते उनके परिजन व रिश्तेदार।
परदादा ने लड़ा था विश्व युद्ध
शहीद कुलवंत सिंह परिवार ऐसे पहले नहीं है जिन्होंने देश पर अपनी जान न्यौछावर किया है। उनके परदादा घनैय्या सिंह 1904 में हुए विश्व युद्ध के दौरान शहीद हुए थे। इसके अलावा उनके मामा महिंदर सिंह 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए थे। उनके चाचा गुरमुख सिंह के चार बेटे आर्मी में है। इनमें से एक सेवानिवृत हो चुका है, जबकि तीन अभी भी सेवा कर रहे है।