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पंजाब में कोरोना काल में पराली जलेगी तो कहर मचाएगी महामारी, इन बीमारियों का भी खतरा

पंजाब पहले ही कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। अब ऐसे में अगर किसानों ने पराली जलाई तो लोगों की मुसीबतें और बढ़ेंगी। पराली का धुआं सांस लेने के दौरान शरीर के अंदर जाता है और फेफड़े व हृदय को नुकसान पहुंचाता है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 29 Sep 2020 04:03 PM (IST)Updated: Tue, 29 Sep 2020 04:49 PM (IST)
पंजाब में कोरोना काल में पराली जलेगी तो कहर मचाएगी महामारी, इन बीमारियों का भी खतरा
कोरोना काल में पराली जली तो यह खतरे की घंटी होगा। (सांकेतिक फोटो)

गुरदासपुर [राजिंदर कुमार]। इस समय कोरोना अपने चरम पर है। यदि इस बीच पराली का धुआं आया तो कोरोना संक्रमण का दायरा बढ़ सकता है। पराली के धुएं से पीएम 10, पीएम 2.5, पीएम 1 के साथ बैंजीन, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड जैसी कई हानिकारक गैसें निकलती हैं। ये सांस लेने के दौरान शरीर के अंदर जाती हैं और फेफड़े व हृदय को नुकसान पहुंचाती हैं।

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इस दौरान यदि व्यक्ति कोरोना संक्रमित हुआ तो उसे डबल नुकसान ङोलना पड़ सकता है। लोगों को अगले कुछ महीने ज्यादा एहतियात बरतनी होगी। वहीं जिले में कोरोना संक्रमित लगभग सौ से अधिक मरीज सांस की बीमारी से ग्रस्त हैं। ऐसे में यदि पराली जली तो धुएं से उनकी जान को खतरा बढ़ जाएगा।

डीसी मोहम्मद इशफाक ने किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ पराली को जलाने से रोकने के लिए जिले में नोडल अधिकारी व सेक्टर अधिकारी तैनात कर दिए हैं। उन्होंने दावा किया है कि पराली को जलाने से रोकने के लिए सेटेलाइट के जरिए खेतों पर नजर रखी जाएगी। बता दें कि खेतों में पराली जलाने से हवा में विषैली गैस मिलकर हजारों मील तक इसे प्रदूषित कर देती हैं। इससे शहरों की हवा भी विषैली हो जाती है। एयर क्वालिटी इंडेक्स में बड़ा इजाफा हो जाता है।

पंजाब सरकार ने विभिन्न माध्यमों से किसानों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। उधर, किसान हर साल सरकार व जिला प्रशासन की हिदायतों की अनदेखी कर खेतों में पराली को जलाते हैं। 2007 में ही नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने पराली जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन इस पर कभी गंभीरता से अमल नहीं हुआ। पराली जलाने से प्रदूषण बढ़ा है। किसान मान ही नहीं रहे।

भूमि की उपजाऊ क्षमता घट रही

किसानों के पराली जलाने से भूमि की उपजाऊ क्षमता घट रही है। इस कारण भूमि में 80 फीसद तक टाइट्रोजन, सल्फर और 20 फीसद अन्य पोषक तत्वों में कमी आई है। मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रयोप बढ़ा है, जिससे फसलों में तरह तरह की बीमारियां हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जलधारण क्षमता में कमी आई है।

पराली जलाने से नुकसान

एक टन पराली जलाने से हवा में तीन किलो कार्बन कण, 1513 किलो कार्बन डाइऑक्साइड, 92 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 3.83 किलो नाइट्रस ऑक्साइड, 0.4 किलो सल्फर डाइऑक्साइड, 2.7 किलो मीथेन उत्पन्न होती है।

इन बीमारियों का खतरा

प्रदूषित कण मानव शरीर में जाकर खांसी को बढ़ाते हैं। अस्थमा, डायबिटीज के मरीजों को सांस लेना दूभर हो जाता है। फेफड़ों में सूजन सहित टांसिल्स, इंफेक्शन, निमोनिया और हार्ट की बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गो को ज्यादा परेशानी होती है।

पराली जलाने से रोकने के लिए नोडल अधिकारी तैनात

डीसी मोहम्मद इशफाक ने बताया कि बीडीपीओ, खेतीबाड़ी विभाग व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें किसानों को जागरूक करने के लिए बोल दिया गया है। पराली को जलाने से रोकने के लिए जिले में नोडल अधिकारी व सेक्टर अधिकारी तैनात किए गए हैं।

एक्सपर्ट की चेतावनी

फसल अवशेषों के प्रबंधन को लेकर डॉ. विजय का कहना है कि यदि पराली जलाने के वैकल्पिक प्रबंध नहीं किए गए तो प्रदूषणकारी तत्व, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन जैसी जहरीले गैसों के कारण श्वसन संबंधी गंभीर समस्याओं में बढ़ोतरी हो सकती है। इससे कोविड-19 के हालात और बिगड़ जाएंगे।


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