ईट-भट्ठों को जिग-जैग तकनीक में बदलने का फरमान
पंजाब में ठंडे पड़े रियल एस्टेट बिजनेस व जीएसटी के बाद से सुस्त चल रहे व्यापार की मार से उबरने के प्रयास में लगा ईट-भट्ठा उद्योग अब धुएं के मुद्दे की मार तले दम तोड़ता दिखाई दे रहा है।
र¨जदर कुमार पंडोत्रा, गुरदासपुर
पंजाब में ठंडे पड़े रियल एस्टेट बिजनेस व जीएसटी के बाद से सुस्त चल रहे व्यापार की मार से उबरने के प्रयास में लगा ईट-भट्ठा उद्योग अब धुएं के मुद्दे की मार तले दम तोड़ता दिखाई दे रहा है। सर्दी में 31 जनवरी तक ईट-भट्ठे बंद करने के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के बाद सभी ईट-भट्ठे बंद हैं। दूसरी तरफ पंजाब में ईट-भट्ठों को जिग-जैग तकनीक में बदलने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल व केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने 31 मार्च 2019 तक का समय दिया है। निर्देश में साफ तौर पर अल्टीमेटम दिया गया है कि 31 मार्च 2019 तक सभी ईट-भट्ठे जिग-जैग तकनीक अपना ले अन्यथा आवश्यक कार्रवाई के लिए तैयार रहें।
उधर, भट्ठा मालिक इस बात से ¨चतित हैं कि इतने कम समय में वे कैसे अपने भट्ठों को जिग-जैग तकनीक से तैयार करवाएंगे। वहीं भट्ठा मालिकों को एक और ¨चता खाए जा रही है कि यदि वे 31 मार्च तक अपने भट्ठे चालू न कर पाए तो उनको भारी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ेगा। भट्ठा न चलने की सूरत में उनका काफी नुकसान होगा। वहीं, भट्ठा मालिकों के साथ-साथ मजदूर वर्ग को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा।
भट्ठे बंद होने से मजदूर वर्ग द्वारा अपने घर का खर्च चलाना भी मुश्किल होगा। हजारों की संख्या में भट्ठों पर काम करने वाले मजदूर भी भट्ठों पर ही निर्भर हैं। अक्टूबर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा भट्ठे बंद कर किए गए हैं। अक्टूबर माह से लेकर अब तक भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर काम के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। उधर, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भट्ठों को जिग-जैग तरीके से बनाने का फरमान जारी कर, जिसने भट्ठा मालिकों को दुविधा में डाल दिया है। सर्दी में बढ़ जाती है कोयले की खपत
सर्दी के मौसम में कोयले की खपत बढ़ जाती है। गर्मी में 1 लाख ईट बनाने के लिए 15 टन कोयले की खपत होती है तो सर्दी में कोयले की खपत बढ़ कर 30 टन हो जाती है। इससे एक तो प्रदूषण बढ़ता है व दूसरे उद्यमी को लागत में भी इजाफा होता है। तभी सर्दी में उत्पादन बंद कर दिया जाता है। ईट-भट्ठा मालिकों में मचा हाहाकार
गौरतलब है कि गुरदासपुर जिले में इस समय 90 के करीब भट्ठे चल रहे हैं। अब एनजीटी की तरफ से पुरानी तकनीक वाले भट्ठे चलाने पर कानूनी कार्रवाई के साथ -साथ लाइसेंस रद होने का फरमान सुनकर भट्ठा मालिकों में हड़कंप मचा हुआ है। सभी भट्ठा मालिक एक दूसरे से संपर्क कर इसका समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं। ईट-भट्ठा एसोसिएशन के सदस्यों ने बताया कि 31 अक्टूबर को लुधियाना में राज्य स्तरीय बैठक कर ईट-भट्ठा एसोसिएशन के तमाम पदाधिकारियों ने कैबिनेट मंत्री ओपी सोनी से मिल समस्या के समाधान के लोकर चर्चा की थी, मगर अभी तक समस्या का कोई भी समाधान नहीं ढूंढा गया है। क्या है जिग-जैग तकनीक
जिग-जैग तकनीक से बनाया जाने वाला ईट-भट्ठा वास्तव में वर्तमान भट्ठों से बिल्कुल विपरीत होता है। जिग-जैग तकनीक वाला ईट-भट्ठा चौरस होता है। जबकि पुरानी तकनीक वाला भट्ठा लंबा व गोलाकार होता है। पुरानी तकनीक वाला भट्ठा काला धुआं छोड़ता है, जो पर्यावरण में मौजूद हवा को जहरीला कर देता है। जबकि जिग-जैग तकनीक वाला भट्ठा सफेद धुआं छोड़ता है, जिससे हानिकारक तत्वों की मात्रा काफी कम होती है। समय नहीं बढ़ाया तो 75 फीसद ईट भट्ठे हो सकते हैं बंद
द ईट भट्ठा एसोसिएशन के पदाधिकारी कुलदीप ने बताया कि एसोसिएशन की प्रदेश स्तरीय बैठक 31 अक्टूबर को लुधियाना में हुई थी। पंजाब के सभी 3000 ईट-भट्ठों को जिग-जैग तकनीक पर चलाने के लिए 31 मार्च के बाद करीब एक वर्ष का समय और चाहिए। यदि 31 मार्च के बाद समय न बढ़ाया गया तो 75 फीसद भट्ठे चल नहीं पाएंगे और उनका सीजन खराब हो जाएगा, वहीं उन्हें भारी आर्थिक नुकसान होगा। वायु प्रदूषण रोकना सरकार के लिए चुनौती
गौरतलब है कि गत वर्ष हरियाणा सहित दिल्ली, एनसीआर में दीवाली के आसपास खेतों में बड़ी मात्रा में पराली जलाने व पटाखों से आसमान में धुएं का गुबार बन गया था। यह धुएं का गुबार आसमान में पिछले साल करीब 45 दिन तक रहा था। इस समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों तहत इन्वायरमेंट पॉल्यूशन (प्रिवेंशन एंड कंट्रोल) अथॉरिटी व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सख्ती कर रहा है।