किसान को मिले आम के आम, गुठलियों के भी मिले दाम; अब खोल दिया कृषि उपकरण बैंक
पराली प्रबंधन के बाद गांव सल्लोपुर के किसान गुरदयाल सिंह ने अब गांव में कृषि विभाग के सहयोग से गांव में संयुक्त मशीनरी उपकरण बैंक खोला है।
जेएनएन, गुरदासपुर। गांव सल्लोपुर के किसान गुरदयाल सिंह ने दो साल से पराली जलाना बंद कर दिया है। पिछली बार उसने पराली को आग नहीं लगाई और इस बार धान के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। गुरदयाल सिंह के पास 11 एकड़ जमीन है। पहले उन्हें पराली जलाने के बाद खेत में पानी, खाद और कीटनाशकों को ज्यादा प्रयोग करना पड़ता था। गेहूं की फसल भी पीली हो जाती थी। तेले के प्रकोप से बचाने के लिए कई तरह के स्प्रे करने पड़ते थे।
गुरदयाल सिंह ने बताया कि उसने कृषि विभाग के सहयोग से गांव में संयुक्त मशीनरी उपकरण बैंक खोला है। मशीनरी बैंक में हैप्पीसीडर, रोटावेयर, मल्चर, प्लो रखे हैं। इन्हें वह किराये पर देता है। खेती उपकरण बैंक में उसे करीब 10 लाख रुपये की लागत आई। इस पर विभाग ने 80 फीसद सब्सिडी दी। हैप्पीसीडर और रोटावेयर से पराली को जमीन में जोत दिया जाता है। अगली फसल जोतने में कोई मुश्किल भी नहीं आती। रोटावेयर के लिए 1500 रुपये प्रति एकड़ किराया और मल्चर के लिए 1200 रुपये किराया है।
नहीं बढ़ेगा कटाई का खर्च
गुरदयाल सिंह बताते हैं कि पराली को खेत में दबाने से खर्च नहीं बढ़ता है। पिछले साल उसके यहां एक एकड़ में 19 क्विंटल धान हुआ था। इस बार वह 23 से 24 क्विंटल हो गया है।
पशुओं के लिए बनाएं चारा
गांव पाहड़ा के हरदियाल सिंह ने भी दो साल पहले खेत में पराली जलाना बंद कर दिया है। वे पराली को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग कर रहे हैं। हरदियाल बताते हैं कि उन्होंने पराली न जलाने की पहल की है। अभी रास्ता बहुत लंबा है। कृषि विभाग को किसानों को उनके बीच जाकर पराली जलाने के नुकसान बताने चाहिए। पराली को सर्दियों में किसान पशुओं के नीचे बिछाने के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं। पराली के कुछ हिस्से को चारे के रूप में भी पशुओं को खिला सकते हैं। पराली को खेतों में न जलाने से फसल का उत्पादन भी बढ़ जाता है।
खेत में दबाई पराली, तो जमीन ने उगला सोना
धान की पराली को खेतों में आग न लगाने के मामले में बठिंडा के गांव रामपुरा के किसान दर्शन सिंह सिद्धू किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। वह पिछले सात साल से पराली को आग लगाकर जलाने की बजाय जमीन में ही दबाकर अगली फसल की बिजाई करते हैं। उसके पास पराली को जमीन में दबाने लिए खेती औजार भी मौजूद हैं।
दर्शन सिंह ने बताया कि पहले वह पराली को खेतों में आग लगाते रहे हैं। मगर, वातावरण में पैदा हुए प्रदूषण को देखते हुए वह साल 2011 से पराली को आग नहीं लगा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह मशीन से धान की पराली को जमीन में ही मिला देते हैं। उसने पिछले साल भी अपनी कंबाइन में एसएमएस लगा लिया था, जिसके बाद पराली को दबाना आसान हो जाता है।
किसान दर्शन सिंह सिद्धू जब धान की कटाई कर पराली खेतों में दबा देते हैं, तो उनके खेतों को देखने के लिए किसानों सहित खेती माहिर भी आते हैं। वह पहले किसान हैं, जो पिछले सात साल से पराली नहीं जला रहे हैं। वहीं, बाद में पराली को खेतों में दबाए जाने का पता भी नहीं लगता है।
पराली दबाने के बाद करते हैं आलू की खेती
किसान दर्शन सिंह के अनुसार 35 एकड़ जमीन में धान के बाद आलू की खेती करते हैं और इसके बाद सब्जी की बिजाई। धान की पराली को खेतों में दबाने में कोई ज्यादा खर्च नहीं आता, बल्कि फायदा होता है। उन्होंने बताया कि धान की पराली को आग लगाकर आलू बीजने के लिए 30 से 35 लीटर प्रति एकड़ डीजल की खपत होती है। अगर पराली खेतों में दबाई जाए, तो डीजल की खपत 50 से 55 लीटर होती है। इस प्रकार पराली दबाए जाने के लिए 15 लीटर डीजल अधिक लगता है। इसके चलते एक हजार रुपये के करीब ही अतिरिक्त प्रति एकड़ पर खर्च होता है। मगर वातावरण शुद्ध रहता है।
यूरिया का इस्तेमाल घटा
किसान दर्शन सिंह ने बताया कि पराली को जमीन में दबाए जाने से जहां मुफ्त की खाद जमीन को मिल जाती है। वहीं वातावरण भी खराब नहीं होता। पराली जमीन में दबाए जाने से मित्र कीड़े नहीं मरते व जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती रहती है। इसके अलावा वह आलू की फसल में भी नाममात्र खादों का प्रयोग कर करते हैं। उन्होंने बताया कि आलू की फसल के लिए प्रति एकड़ तीन से चार कट्टे यूरिया का प्रयोग किया जाता है। मगर, गत वर्ष आलू की फसल में प्रति एकड़ सात किलो यूरिया प्रयोग कर अधिक झाड़ प्राप्त किया है। (इनपुटः राजिंदर कुमार पंडोत्रा व साहिल गर्ग)