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होटलों के कारिदों की नहीं हो रही शारीरिक जांच

ार से बाहर रेस्टोरेंट, ढाबों व होटलों पर खाना खाने को हर कोई बेताव रहता है। इस बेताबी में अकसर लोग रेस्टोरेंट, ढाबों और होटलों में रसोई की सफाई और यहां काम करने वाले स्टाफ की शारीरिक फिटनेस को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 09 Sep 2018 04:33 PM (IST)Updated: Sun, 09 Sep 2018 04:33 PM (IST)
होटलों के कारिदों की नहीं हो रही शारीरिक जांच
होटलों के कारिदों की नहीं हो रही शारीरिक जांच

संवाद सहयोगी, दीनानगर : घर से बाहर रेस्टोरेंट, ढाबों व होटलों पर खाना खाने को हर कोई बेताव रहता है। इस बेताबी में अकसर लोग रेस्टोरेंट, ढाबों और होटलों में रसोई की सफाई और यहां काम करने वाले स्टाफ की शारीरिक फिटनेस को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं। चिकित्सकों की माने तो खाना परोसने वाला कोई कर्मचारी यदि किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो वह आपको लजीज खाने के साथ भयानक बीमारी से संक्रमण भी दे सकता है। सेहत विभाग की ये ड्यूटी है कि वह नियमित रूप से रेस्टोरेंट, ढाबों या होटलों में काम करने वाले लोगों की साल में कम से कम दो बार शारीरिक जांच को अनिवार्य बनाएं। लेकिन विभाग के अधिकारी परोसे जा रहे खाने के कभी-कभी सैंपल भरकर औपचारिकता पूरी करते आ रहे है। सेहत विभाग के लिए जरूरी है कि वह नियमित रूप से फूड एंड सेफ्टी स्टैं‌र्ड्ड एक्ट के तहत खाना बनाने या परोसने वालों की फिटनेस सर्टिफिकेट हासिल करना अनिवार्य बनाए। शहर में फूड कार्नर की भरमार

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सादे भोजन से लेकर फास्ट फूड तक शहर में फूड कार्नर की भरमार है। क्षेत्र में 150 के करीब रेहड़ियां, करीब 40 ढाबे जबकि 20 के करीब होटल व 20 रेस्टोरेंट और 5 बेकरी हैं।

खानापूर्ति तक सिमटा विभाग

सेहत विभाग शहर में रेहड़ी, फड़ी सहित खाने की दुकानों से कभी-कभी खाद्य पदार्थों के सैंपल तो भरता है, लेकिन लोगों को खाना परोस रहे लोगों के बारे में सेहत विभाग की कार्रवाई न के बराबर है। परिणाम स्वरूप होटल व ढाबा मालिक पैसे बचाने के चक्कर में अपने मुलाजिमों का मेडिकल चेकअप नहीं करवाते।

जरूरी होता है मेडिकल चेकअप

फूड सेफ्टी नियमों के अनुसार सभी खाद पदार्थ बेचने वालों को फूड सेफ्टी एक्ट के अधीन लाईसेंस लेना होता है। जब फूड कार्नर के लिए फूड सेफ्टी लाइसेंस जारी किया जाता है तो शर्त होती है कि फर्म में जितने भी मुलाजिम काम करेंगे उनका छह माह में एक बार मेडिकल चेकअप करवाना होता है। उसके बाबजूद भी शहर में बहुत सारे होटल व ढाबे है जिनके पास फूड सेफ्टी लाईसेंस नही है और न ही वो किसी तरह के मेडिकल चेकअप करवाते हैं। मेडिकल चेकअप व लाईसेंस न होने वालों के खिलाफ विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर विभाग के अधिकारियों के कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगता है। बाहरी खाने से हो सकती है हैपेटाइटस सी

वशिष्ठ अस्पताल के डॉक्टर संचित वशिष्ठ के अनुसार किसी होटल या ढाबे पर आपको खाना खिला रहा वेटर या बावर्ची अगर हैपेटाइटस सी (काला पीलिया) या फिर शुगर आदि जैसी बीमारियों से पीड़ित है तो खाना के जरिए उनके शरीर के कण आपके शरीर में दाखिल होना संभव है। ऐसे में समय बीतते-बीतते ऐसे कण इंफेक्शन के रूप में पूरे शरीर में फैल जाते हैं। कई बार तो इस चीज का अहसास होते होते सालों बीत जाते है, लेकिन ऐसे संक्रमण शरीर में मरते नहीं और आखिरी स्टेज पर आकर इंसान को पता चलता है कि वह ऐसी किसी बीमारी का शिकार हो गया है।

लोगों को कर रहे है जागरूक-डीएचओ

डीएचओ सुधीर कुमार से बात करने पर उन्होंने कहा कि वो सभी जागरूक कर रहे है कि सभी को मेडिकल व फूड सेफ्टी लाइसेंस लेने के लिए कह रहे है। जब उनसे पूछा गया कि जो लाईसेंस व मेडिकल चेकअप नही करवा रहे उनके खिलाफ क्या कारवाई कर रहे है तो डीएचओ ने व्यवस्था होने का बहाना बना कर फोन काट दिया।


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