प्रेम द्वार है सत्य का और मृत्यु द्वार हैअमृत का: पुनीत
संवाद सूत्र, फाजिल्का महारास लीला परम प्रेम रूपा भक्ति का दान है। प्रेम मुक्ति है और भक्ति मोक्ष ह
संवाद सूत्र, फाजिल्का
महारास लीला परम प्रेम रूपा भक्ति का दान है। प्रेम मुक्ति है और भक्ति मोक्ष है। यह वचन महंत पुनीत गिरि महाराज ने सेठ गरीब चंद धर्मशाला में जारी श्रीमछ्वागवत कथा के दौरान आयोजित कथा के दौरान प्रकट किए।
पुनीत गिरि ने कहा कि जिस दिन परमात्मा का अनुभव होने लगेगा, प्रेम भक्ति जागृत हो जाएगी। महारास लीला में भक्ति और काम के बीच में प्रेम है। प्रेम का एक हाथ काम से जुड़ा है, क्योंकि प्रेम सेतु है दोनों के बीच। प्रेम दोनों का संतुलन है। पुनीत गिरि जी ने कहा कि भक्ति प्रेम रूपा है और अमृत स्वरूपा है। क्योंकि प्रेम है द्वार सत्य का और मृत्यु अमृत का द्वार है। जिसने परम प्रेम जाना, फिर उसकी कोई मृत्यु नहीं होती। वह मृत्यु पर विजय पा लेता है और अमृत स्वरूप को उपलब्ध हो जाता है। पुनीत गिरि जी ने कहा कि हमेशा अहंकार की ही मृत्यु होती है। आत्मा की कभी मृत्यु नहीं होती, कभी हुई नहीं और न ही हो सकती है। आत्मा शाश्वत है, सनातन है, सदा है, सदा रहेगी। भक्ति को प्राप्त कर मनुष्य सिद्ध हो जाता है, अमर हो जाता है और तृप्त हो जाता है। सिद्ध का अर्थ बताते हुए पुनीत गिरि महाराज ने कहा कि अब और साधना करने की जरूरत नहीं रहती, जब कोई साध्य नहीं रहता, तब सभी साधनों की जरूरत भी नहीं रहती। महारास लीला में श्रीकृष्ण जी ने इसी परम प्रेम रूपा भक्ति का दान गोपियों को प्रदान किया है।