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समाज में कर्मकांड और रूढि़वादिता मिटाने वाले भक्तों की जरूरत

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान स्थानीय आश्रम में सप्ताहिक सत्संग करवा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Oct 2019 10:57 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 10:57 PM (IST)
समाज में कर्मकांड और रूढि़वादिता मिटाने वाले भक्तों की जरूरत
समाज में कर्मकांड और रूढि़वादिता मिटाने वाले भक्तों की जरूरत

जागरण संवाददाता, फिरोजपुर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान स्थानीय आश्रम में सप्ताहिक सत्संग करवा रहा है। इसमें साध्वी सुश्री संघलता भारती ने समाज में फैले कर्म कांड, रूढि़वादिता को खत्म करने के लिए ऐसे ही भक्तों की जरूरत बताई है, जो समाज को सही दिशा प्रदान कर सकें और लोगों का मार्ग दर्शन करके उन्हें अच्छा काम करने के लिए प्रेरित कर सकें।

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उन्होंने बताया कि भारत की पावन भूमि शुरू से ही प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से अध्यात्म के सूर्य द्वारा पोषित होती रही है। फिर चाहे वह वेदों की रचनाओं से गूंजता वैदिक काल, गुरु सेवक के वार्तालाप की अमानत को संभाल कर रखने वाला उपनिषद काल, या फिर भक्तों की कहानियों से गूंजता हुआ पुराणिक काल हो, हर काल में इस पावन धरती पर भक्ति की पावन गंगा बहती रही है। इसमें साधारण जनमानस डुबकियां लगाकर भक्ति का आनंद मान सकता है। समय के चक्कर की इस लड़ी में भारत की धरती पर ऐसा समय आया जब केवल भक्ति की छोटी-छोटी धाराएं ही पैदा नहीं हुई, बल्कि यथार्थ भक्ति के अथाह सागर लहराया, जिसने उस समय में प्रचलित रूढ़ीवादी वाकर्म कानों की जड़ों को हिलाकर रख दिया। इस काल को भक्ति काल का नाम दिया गया है। इसमें भक्त मीराबाई, गोस्वामी तुलसीदास जी, भक्त कबीर, भक्त नामदेव और अन्य कई भक्तों के नाम शामिल हैं, आज भी समाज में फैले हुए कर्म कांड, रूढि़वादिता को खत्म करने के लिए ऐसे ही भक्तों की जरूरत है, जो समाज को सही दिशा प्रदान कर सकें।

साध्वी ने कहा कि भक्ति के बिना मुक्ति संभव नहीं चाहे कोई लाख प्रयास करके देख ले जाप, तीर्थ स्नान, यज्ञ, कोई भी साधन मुक्ति का द्वार नहीं खोल सकता, भक्ति ही मुक्ति की सीढ़ी है, असली भक्ति की शुरुआत तब होती है जब हमारे जीवन में पूर्ण सतगुरु का आगमन होता है, बिना पूर्ण गुरु की शरण में जाए चाहे कोई भी कैसे भी यत्न क्यों न कर लें। वह भक्ति के पैमाने के अनुसार सब व्यर्थ ही जाते हैं, इसलिए अगर स्थायी भक्ति का रतन चाहिए तो सबसे पहले पूर्ण सतगुरु की खोज करनी चाहिए। भक्ति रतन को हमारे हृदय में प्रकट कर सकते हैं, अंत में साध्वी मनप्रीत भारती जी द्वारा आई हुई संगत को भजनों का कीर्तन का रसपान करवाया गया और आई हुई संगत को प्रसाद बांटा गया।


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