प्रेमदत्त का फिरोजपुर से था गहरा नाता
जारगण संवाददाता, फिरोजपुर क्रांतिकारियों को इंग्लिश से ¨हदी में बम बनाने की तकनीक का अ
जारगण संवाददाता, फिरोजपुर
क्रांतिकारियों को इंग्लिश से ¨हदी में बम बनाने की तकनीक का अनुवाद करने वाले क्रांतिकारी प्रेमदत्त का भी फिरोजपुर शहर से गहरा नाता रहा है। प्रेमदत्त को भी अमर शहीद भगत ¨सह, सुखदेव व राजगुरु के साथ सजा हुई थी।
यह दावा तथ्यों के आधार पर खोजी लेखक राकेश कुमार द्वारा किया गया है। राकेश ने बताया कि प्रेमदत्त मोहल्ला किला फाकी, गुजरात शहर पंजाब (अब पाकिस्तान में है) के रहने वाले थे। मैट्रिक पास कर वह 20 जून 1927 को डीएवी कालेज लाहौर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए पहुंचा, जहां पर वह गुरुदत्त भवन में रहे थे। यहीं पर वह किशोरी लाल के संपर्क में आए जो कि क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य थे, किशोरी लाल ने प्रेमदत्त को क्रांतिकारी साहित्य उपलब्ध करवाया। किशोरी लाल के संपर्क में ही प्रेमदत्त भगत ¨सह, सुखदेव ¨सह व क्रांतिकारियों के संपर्क में आया और पार्टी में शामिल हो गया। 24 जनवरी 1929 को प्रेमदत्त ने पढ़ाई छोड़ दी। पहचान छुपाने के लिए उसने फर्जी नाम पहले रामनाथ फिर अमृत लाल रखा।
राकेश ने बताया कि सुखदेव को उस समय दयाल के नाम से जाना जाता था, दयाल ने मार्च 1929 में 15 रूपये देकर प्रेमदत्त का फिरोजपुर शार्टहैंड व टाईप सीखने के लिए भेजा। प्रेमदत्त फिरोजपुर पहुंचने पर एक रात शाहशाह होटल उसके बाद ऊंचा पटवारियांवाला में पांच रुपये किराए का मकान लेकर रहने लगे। फिरोजपुर में 20 से 22 दिनों तक रहने के दौरान प्रेमदत्त दिल्ली गेट के नजदीक शार्टहैंड व टाइ¨पग में दाखिला लिया। 12 अप्रैल 1929 को किशोरी लाल उससे मिलने आए। 15 अप्रैल 1929 को गोपाल, सुखदेव व किशोरीलाल गिरफतार हो गए, इसकी सूचना मिलते ही 20 अप्रैल को प्रेमदत्त भी फिरोजपुर से ग्वालमंडी लाहौर गुप्त ठिकाने के लिए निकल गया, वहां पर वह किताब व अन्य दस्तावेज लेकर गुजरात अपने गांव चला गया। 5 मई 1929 को पुलिस ने प्रेमदत्त को पकड़ लिया। 16 जून को प्रेमदत्त ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि वह पार्टी के कहने पर फिरोजपुर टाइप व शार्टहैंड सीखने गया था और वह वहां पर किराए के मकान में रहता था। इसकी पुष्टि फिरोजपुर शहर के गवाह रामला, मुकंदला, रोशन लाल व बसाऊ राम ने भी की।
फिरोजपुर रहने के दौरान प्रेमदत्त रेलवे हेडक्वार्टर में क्लर्क रोशन लाल के संपर्क में आया और पढ़ने के लिए उसने रेलवे लाइब्रेरी से हाऊ टू सटैगथन द लंग्वेज व हाऊ टू इंक्रीज दा हाइट पुस्तक ली। यह पुस्तक पुलिस ने बरामद भी की।
क्राउन के विरुद्ध षणयंत्र रचने के आरोप में कुल 24 क्रांतिकारी पकड़े गए, जिन कार्यवाई हेतु 5 जून विशेष ट्रिब्यूनल गठित हुई, जिसने 7 अक्टूबर 1930 सजा सुनाई। फाइनल मुकदमें में कुल 15 लोगों के नाम रहे। इसमें भगत ¨सह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी, किशोरी लाल, शिव वर्मा, महावीर, विजय कुमार, गया प्रसाद, जयदेव व कमलनाथ तिवाड़ी को आजीवन कारावास की सजा हुई जबकि कुंदन लाल को सात साल व प्रेमदत्त को पांच साल की सजा हुई थी, जबकि सबूतों के अभाव में देशराज, अजय कुमार घोष व जितेन्द्र को बरी कर दिया गया था।
राकेश कुमार ने बताया कि प्रेमदत्त का योगदान उतना ही है जितना की अन्य क्रांतिकारियों का फिर भी प्रेमदत्त इतिहास में खो गया। उन्होंने बताया कि जिस समय वह पकड़ा गया था उसकी उम्र साढ़े 17-18 साल की थी। पुलिस ने फिरोजपुर व गुजरात उसके गांव से जो वस्तुएं बरामद की उसमें ज्यादातर किताबें ही थी, उसे पढ़ने का बहुत शौक था।