71 की जंग की दास्तां: दिलों में जिंदा हैं शहीद, पर प्रशासन की लापरवाही से कब्रों से मिट चुके हैं नाम
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीद लोगों के दिलों में भले ही जिंदा हैं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें भुला दिया है।
फाजिल्का [अमनदीप सिंह]। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के शहीद लोगों के दिलों में भले ही जिंदा हैं, लेकिन प्रशासन ने उन्हें भुला दिया है। उनकी कब्रों से उनके नाम तक मिट गए हैं। इस युद्ध में शहीद हुए ईसाई व मुस्लिम समुदाय के 16 जवानों को फाजिल्का के सैणिया रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था। इन कब्रों के ऊपरी हिस्से पूरी तरह तहस-नहस हो चुके हैं। टाइलें और ईंटें उखड़ गई हैं। बची हुई टाइलें भी मिट्टी में मिल चुकी हैं। कब्रों के आसपास गंदगी का आलम है। कब्रिस्तान में चारोंं तरफ झाड़ियां उग आई हैं। कब्रें टूट-फूट चुकी हैं। इन पर लिखे ज्यादातर शहीदों के नाम मिट चुके हैं।
इनके रखरखाव के लिए प्रशासन ने कोई बंदोबस्त नहीं किया गया है। कब्रिस्तान के प्रमुख गेट के ऊपर कब्रिस्तान मैथिडस्ट चर्च फाजिल्का लिखा है, जो अब धुंधला हो गया है। मुख्य गेट बंद होने के कारण दीवार फांद कर ही अंदर जाया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले यहां आने वाले लोगों के लिए एक सीमेंट का पक्का शेड बना था, लेकिन उसमें लोगों के बैठने या बिजली-पानी की कोई व्यवस्था नहीं है।
200 सैनिकों ने पाई थी शहादत
1971 की लड़ाई में फाजिल्का सादकी बॉर्डर पर पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान शहीद होने वाले 200 सैनिकों में 4 जाट और 15 राजपूत रेजीमेंट के जवान शामिल थे। इनमें 16 मुस्लिम और ईसाई समुदाय के जवान भी थे। हिंदू धर्म से जुड़े शहीद जवानों का संस्कार करके स्थानीय नागरिकों की सहायता से आसफवाला में स्मारक बनाया गया था, लेकिन इसाई व मुस्लिम समुदाय के जवानों की सैणिया रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाया गया था।
आसफवाला में मेला, इनकी कोई सुध नहीं
आसफवाला स्थित स्मारक पर 17 दिसंबर को शहीदी दिवस के रूप में बड़ा मेला लगता है। समय-समय पर भारतीय सेना व पंजाब के राजनेता यहां आकर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं, लेकिन सैणिया रोड स्थित 16 शहीदों की कब्रों की कोई सुध नहीं लेता। पहले परिजन इन्हें श्रद्धांजलि देने आते थे, लेकिन अब कब्रों पर उनके नाम पढ़ पाना भी आसान नहीं है। प्रशासन ने इसका कोई रख-रखाव नहीं किया।
ट्रस्ट और जिला प्रशासन जिम्मेदार
आसफवाला स्मारक कमेटी के महासचिव एडवोकेट उमेश कुक्कड़ ने बताया कि 1971 के युद्ध में 3 असम बटालियन के 16 जवानों की समाधि सैणिया रोड स्थित कब्रिस्तान में बनाई गई थी। इनमें से अधिकांश सैनिक मुस्लिम व इसाई धर्म को मानते थे। इसकी बदहाली के लिए प्रशासन और ट्रस्ट जिम्मेदार है।
डीसी को नहीं जानकारी
डीसी मनप्रीत सिंह ने जब इस बारे में पूछा गया कि सैणिया रोड पर जिस कब्रिस्तान में 1971 की लड़ाई के शहीद जवानों को दफनाया गया था, उसका रख-रखवाव किसके पास है, तो उन्होंने कहा कि उन्हें सैणिया रोड पर कब्रिस्तान में शहीदों को दफनाए जाने के बारे में जानकारी नहीं है।