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खोजने से मिलते हैं भगवान : पुनीत गिरी जी

फाजिल्का : जीव जब हर प्रकार से नम्र बनकर भगवान की शरण में जाता है, तब भगवान उसे आदर से अपना लेते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 05:24 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 05:24 PM (IST)
खोजने से मिलते हैं भगवान : पुनीत गिरी जी
खोजने से मिलते हैं भगवान : पुनीत गिरी जी

संवाद सहयोगी, फाजिल्का : जीव जब हर प्रकार से नम्र बनकर भगवान की शरण में जाता है, तब भगवान उसे आदर से अपना लेते हैं। इस जगत में मिलता कुछ भी नहीं, बल्कि खोजना पड़ता है। यह वचन महंत पुनीत गिरि जी महाराज ने स्थानीय बीकानेरी रोड पर स्थित सेठ गरीब चंद धर्मशाला में जारी श्रीमद् भागवत कथा के दौरान प्रकट किए।

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पुनीत गिरि जी ने कहा कि भगवान तो यहीं मौजूद हैं और ऐसा नहीं है कि आपकी पीड़ा का उनको पता नहीं है, लेकिन आप पीठ करके खड़े हैं और भगवान से बात ही नहीं कर पा रहे। सुदामा कैसा है, यह सवाल बड़ा नहीं है। सुदामा इंकार भी कर सकता है और मैं मानता हूं कि अगर कृष्ण देने गए होते तो सुदामा के घर तो शायद इंकार भी कर देता। जरूरी नहीं है कि स्वीकार करता। सुदामा की तैयारी होनी चाहिए। हमारी खोज ही उसके मिलने का द्वार बनेगी। इसलिए सुदामा गरीब है, अकेले सुदामा गरीब नहीं बहुत लोग गरीब हैं। और कृष्ण के लिए इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सुदामा गरीब है कि कोई और गरीब है। बड़ा फर्क इस बात से पड़ता है कि वह जो सुदामा इतना गरीब होकर भी देने चला आया है, आदमी अमीर होने के योग्य है। यह जो सुदामा की स्थित है, उसी से परिवर्तन शुरू होता है। सुदामा जाता है कृष्ण के पास तो सुदामा को कृष्ण मिल पाते हैं। कृष्ण का आना उचित भी नहीं है। प्रतीक्षा कृष्ण को करनी चाहिए सुदामा आने तक। ऐसा नहीं है कि परमात्मा नाराज है और आपके पास नहीं आ रहा। लेकिन आपको उसके पास जाना पड़ेगा, और जिस दिन आप जाएंगे, उस दिन आप पाएंगे कि वह सदा तत्पर था आपको मिलने को, आपको देने को तैयार मिलेगा। कहते हैं एक मुट्ठी भर तंदूल के बदले में श्रीकृष्ण ने समग्र द्वारिका का एश्वर्य सुदामा के घर भेज दिया था। परमात्मा जीव मात्र के निस्वार्थ मित्र हैं। रविवार को हवन यज्ञ के साथ कथा की समाप्ति हुई व अंत में खुला भंडारा वितरित किया गया।


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