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प्रभु की शरण के बिना ठोकरे खाता है मनुष्य

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय आश्रम में सप्ताहिक सत्संग करवाया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Dec 2019 11:33 PM (IST)Updated: Mon, 30 Dec 2019 11:33 PM (IST)
प्रभु की शरण के बिना ठोकरे खाता है मनुष्य
प्रभु की शरण के बिना ठोकरे खाता है मनुष्य

जागरण संवाददाता, फिरोजपुर : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने स्थानीय आश्रम में सप्ताहिक सत्संग करवाया। इसमें साध्वी दीपिका भारती जी ने बताया कि वैसे तो जंगल में भी बहुत सारे फूल खिल जाते हैं चाहे उन्हें गीली मिट्टी की गोद मिले जा न मिले, लेकिन इन फूलों का बाद में हाल क्या होता है यह कब तक खूबसूरत अपने टहनियों पर झूम पाते हैं सिर्फ कुछ ही पल, तेज हवाओं के थपेड़े खाकर यह पत्ता पत्ता होकर बिखर जाते हैं इनका कुछ भी मूल्य नहीं पड़ता, जानते हो क्यों, क्योंकि इनकी हालत ऐसी इसलिए होती है, क्योंकि इनके ऊपर किसी माली की निगरानी नहीं होती, माली इनकी संभाल नहीं करता, लेकिन जो फूल निगरानी में होते हैं माली की निगरानी में खिलते हैं उन फूलों का ही मूल्य पड़ता है वह किसी देवता के किसी मंदिर के बन जाते हैं किसी पवित्र दरबार में चढ़ाए जाते हैं इसी तरह जो व्यक्ति आलसी होता है, जिसने किसी पूर्ण गुरु की शरण प्राप्त नहीं की होती, संसार में वह भी ठोकर ही खाता रहता है।

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उन्होंने कहा कि ऐसे मनुष्य दुखों को भोगते रहते हैं कर्मो का हिसाब उसे देना ही पड़ता है, हमारे ग्रंथ शास्त्र बताते हैं कि कोई महा पंडित या महा विद्वान भी हो अगर उसने किसी पूर्ण संत की शरण को हासिल नहीं किया हुआ है तो वह भक्त नहीं हो सकता भक्ति को प्राप्त करने के लिए गुरु की शरण में जाना जरूरी है तभी इस जीवन की वास्तविकता को समझा जा सकता है आगे साध्वी जी ने अपने विचारों में बताया कि इतिहास बताता है कि जिसने भी शहर में उस भक्ति की को प्राप्त किया है उनको भी गुरु की शरणागत होना ही पड़ा है तभी वह ब्रह्मज्ञान के माध्यम से उस ईश्वर को जान सके हैं, उस पार ब्रह्म ईश्वरीय शक्ति को जानने का एक ही रास्ता है वह ब्रह्मज्ञान और ब्रह्म ज्ञान सिर्फ पूर्ण संत की शरणागत होकर ही प्राप्त किया जा सकता है, इसीलिए आज भी जरूरत है अगर हम ईश्वरीय शक्ति को जानना चाहते हैं तो जीवन के रहते रहते पूर्ण संत महापुरुष की शरणागत होना पड़ेगा तभी हम ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त कर ईश्वर को जान सकते हैं, अंत में साध्वी प्रीत भारती जी द्वारा भजन व कीर्तन का गायन किया गया और आई हुई संगत को प्रसाद का वितरण किया गया।


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