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1965-71 की जंग का मंजर आज भी दहला देता है दिल

फाजिल्का सादकी बॉर्डर से सटे गांवों के लोगों को भारत-पाक के बीच हुई 1965 और 1971 की लड़ाई के दौरान बने मुश्किल हालातों का मंजर आज भी याद आने पर दिल दहला देता है। इन युद्धों के दौरान भुगतभोगियों का कहना है कि उनके गांव समेत पंद्रह-सोलह गांवों पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और तब पाकिस्तान वाले गांवों में जमीन के बराबर तक लगी ईटे तक उखाड़कर ले गए थे। इसके अलावा खंभे माल मवेशी घरेलू सामान आदि बहुत कुछ पाकिस्तान ने कब्जे में कर लिया था। उस वक्त वे बहुत मुश्किल के साथ जान बचाकर निकले थे लेकिन तब एक बुजुर्ग को पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया और समझौता होने के बाद बमुश्किल से छोड़ा था। उन्हीं बातों को याद करते हुए वे इस बार जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Mar 2019 11:06 PM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 11:06 PM (IST)
1965-71 की जंग का मंजर आज भी दहला देता है दिल
1965-71 की जंग का मंजर आज भी दहला देता है दिल

अमनदीप सिंह, फाजिल्का : सादकी बॉर्डर से सटे गांवों के लोगों को भारत-पाक के बीच हुई 1965 और 1971 की लड़ाई के दौरान बने मुश्किल हालातों का मंजर आज भी याद आने पर दिल दहला देता है।

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इन युद्धों के दौरान भुगतभोगियों का कहना है कि उनके गांव समेत पंद्रह-सोलह गांवों पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और तब पाकिस्तान वाले गांवों में जमीन के बराबर तक लगी ईटे तक उखाड़कर ले गए थे। इसके अलावा खंभे, माल मवेशी, घरेलू सामान आदि बहुत कुछ पाकिस्तान ने कब्जे में कर लिया था। उस वक्त वे बहुत मुश्किल के साथ जान बचाकर निकले थे, लेकिन तब एक बुजुर्ग को पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया और समझौता होने के बाद बमुश्किल से छोड़ा था। उन्हीं बातों को याद करते हुए वे इस बार जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।

भारतीय सेना ने पुल उड़ाकर रोके थे पाक सैनिक

भारत-पाक की 1965 और 1971 की जंग के भुगतभोगी फाजिल्का के सरहदी गांव खानपुर के रहने वाले 65 वर्षीय कांशीराम का कहना है कि जंग के दौरान सरहदी गांवों को खाली करवाने के साथ ही भारतीय सेना ने पुल को बम से उड़ा दिया था, ताकि पाकिस्तानी सेना और आगे न बढ़ सके। उस वक्त वे तो किसी तरह से जान बचाकर निकल गए। तब पाकिस्तानियों ने ईटें तक उखाड़ ली थीं।

घरेलू सामान सहित मवेशी तक ले गए थे पाकिस्तान वाले

60 वर्षीय हरी सिंह ने बताया कि अफरातफरी में जान बचाने के सिवाय उन्हें और कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उनके गांव खानपुर, सुमाना, चुड़ीवाला, पक्का, बेरीवाला, झंगड़ा, कादू, छोटा मुंबा, बड़ा मुंबा और नूरन सहित कुल 15-16 गांव पाकिस्तान के कब्जे में आ गए थे। हालांकि उस वक्त गांवों के लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंच गए थे, कोई हताहत नहीं हुआ और न ही किसी की जान गई थी, लेकिन पाकिस्तान ने गांवों को कब्जे में लेने के बाद सारा घरेलू सामान जब्त कर लिया था। माल-मवेशी आदि सब कुछ ले गए।

इस बार प्रशासन के आदेश से पहले ही समेट लिया सामान

1965-1971 की लड़ाई के तीसरे भुगतभोगी 62 वर्षीय हरीश चंद्र भी गांव खानपुर में मिले। उन्होंने बताया कि लड़ाई के वक्त पैदा हुए हालातों को याद करके सहम जाते हैं, क्योंकि उस वक्त अपने घर की महिलाओं और बच्चों को संभालना बहुत मुश्किल हो गया था, लेकिन इस बार उन्होंने जिला प्रशासन के हुकम का इंतजार नहीं किया और हालात खराब होने से पहले सामान समेट लिया है।

समझौता होने के बाद भी नहीं लौटाया था सामान

गांव खानपुर निवासी शिव भगवान ने बताया कि अगर दुर्भाग्य से लड़ाई लग जाती है तो मौके पर बहुत मुश्किलें आ सकती हैं, इसलिए घरों की महिलाओं बच्चों को फाजिल्का भेज दिया है। घरों का लगभग सारा सामान भी शिफ्ट कर दिया है, क्योंकि पिछली लड़ाइयों में उनका बहुत सारा सामान पाकिस्तान ने कब्जे में ले लिया था और समझौता होने पर भी सामान वापस नहीं किया था।


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