हमेशा ही कड़े मुकाबलों के चलते हाट सीट रही जलालाबाद सीट
वैसे तो विधानसभा की हर सीट ही विभिन्न पार्टियों के लिए अहम सीट है।
मोहित गिल्होत्रा, फाजिल्का : वैसे तो विधानसभा की हर सीट ही विभिन्न पार्टियों के लिए अहम सीट है। लेकिन फाजिल्का जिले की जलालाबाद सीट हमेशा ही ऐसी सीट रही है, जो ना चाहते हुए भी हर बार हाट सीट बन जाती है। क्योंकि यहां से शिअद के अध्यक्ष सुखबीर बादल पिछले चार विधानसभा चुनावों से अपने आप को ही उम्मीदवार घोषित कर रहे हैं। इसके चलते बाकी पार्टियों की भी कोशिश होती है कि वह अपने किसी बड़े चेहरे को सुखबीर बादल के समक्ष खड़ा करें ताकि जलालाबाद में शिअद के गढ़ को तोड़ा जा सके। लेकिन उपचुनाव को छोड़कर पिछले 12 सालों से शिअद का गढ़ बरकरार है। यही कारण है कि इस बार भी कांग्रेस व भाजपा पार्टी जलालाबाद से बड़े चेहरे को उतारने का प्लान बना रही है।
जलालाबाद के अब तक के इतिहास की बात करें तो यहां उपचुनावों को मिलाकर चार-चार बार कांग्रेस व शिअद जीत दर्ज कर चुकी है। जबकि सीपीआइ भी तीन बार यहां से विजयी रह चुकी है। वहीं इतिहास में यहां से सबसे छोटी जीत की बात करें तो साल 1992 में हंसराज जोसन ने यहां से 2888 वोटों से जीत हासिल की थी। जबकि सबसे बड़ी जीत में साल 2012 में सुखबीर सिंह बादल ने यहां से 50246 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। इतिहास के पन्नों को देखा जाए तो 1977 में सीपीआइ का उम्मीदवार जीत दर्ज कर पहला विधायक बना था। जबकि अगले चुनाव में भी वहीं उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब हुआ। लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार ने 1980 में जीत हासिल करते हुए सीपीआइ की जीत का सिलसिला तोड़ा। लेकिन अगले ही चुनाव 1985 में एक बार फिर से सीपीआइ पार्टी ने जीत हासिल की। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने सीपीआइ के उम्मीदवार की जीत की लकीर को हटाने के लिए हंसराज को टिकट थमाई। इसके चलते वह 1992 में कांग्रेस को जीत दिलाने में कामयाब हुए। लेकिन अगले ही चुनाव 1997 में एक बार फिर से जलालाबाद को नया विधायक मिला। लेकिन इस बार ना तो कांग्रेस की जीत हुई और ना ही सीपीआइ। बल्कि शिअद के उम्मीदवार ने भारी मतों से जीत हासिल की। इसके बाद 2002 में कांग्रेस ने फिर से जलालाबाद सीट पर कब्जा कर लिया। लेकिन 2007 में शिअद ने एक बार फिर से जलालाबाद सीट पर कब्जा जमाया, जोकि 2017 तक जारी रहा। लेकिन 2019 में सांसद चुनावों के चलते जलालाबाद के विधायक सुखबीर बादल ने यहां से विधायक पद से इस्तीफा दिया और 2019 में उपचुनाव हुए। जिसमें कांग्रेस के उम्मीदवार ने 12 सालों के बाद फिर से जीत हासिल की। मौजूदा हालातों की बात करें तो एक बार फिर से सुखबीर बादल ने यहां से चुनाव लड़ने का एलान किया है। ऐसे में कांग्रेस व भाजपा भी अपने बड़े चेहरे को यहां से चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। जिससे यही उम्मीद है कि यह सीट एक बार फिर से हाट सीट बनेगी।
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पिछले चार विधानसभा रहे कांटेदार
2007 में शिअद के उम्मीदवार की जीत के बाद 2012 में सुखबीर बादल ने यहां चुनाव लड़ा। हालांकि तब कांग्रेस को दो बार जीत दिलवाने वाले हंसराज जोसन को टिकट तो नहीं मिला लेकिन वह आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे। दो बार जीत हासिल करने के चलते यह मुकाबला काफी कड़ा रहा। लेकिन सुखबीर बादल ने भारी मतों से इसमें जीत हासिल की। जबकि 2017 में आप व कांग्रेस ने शिअद के किले को भेदने के लिए बड़े चेहरों को यहां से चुनाव लड़वाया। इसमें आप के भगवंत मान और कांग्रेस के रवनीत बिट्टू यहां से चुनाव लड़े। लेकिन बेहद कड़े मुकाबले में सुखबीर बादल यहां से विजेता रहे। साल 2019 के उपचुनाव में भले ही सुखबीर बादल उम्मीदवार का चेहरा नहीं बन सकते थे, लेकिन यहां से खड़े होने वाले उम्मीदवार को हराना मुश्किल था। लेकिन कांग्रेस ने रमिद्र आंवला को टिकट थमाई और उन्होंने भी पार्टी को जीत दिलवा शिअद के गढ़ में सेंध लगाई। लेकिन एक बार फिर से यहां सुखबीर बादल के चुनाव लड़ने से मुकाबला कड़े होने की उम्मीद है।
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साल विजेता उम्मीदवार वोट कितनी वोटों से जीती
2019 रमिद्र आवला 76098 16633
2017 सुखबीर बादल 75271 18500
2012 सुखबीर बादल 80647 50246
2007 शेर सिंह घुबाया 89085 44077
2002 हंसराज जोसन 45727 4331
1997 शेर सिंह घुबाया 42844 3397
1992 हंसराज जोसन 18105 2888
1985 महताब सिंह 24287 5524
1980 मंगा सिंह 27326 9740
1977 महताब सिंह 29926 17795
1972 महताब सिंह 36909 27186