Move to Jagran APP

विजय दिवस 1971.. यहां 'मां की गोद' में सोए हैं 209 लाल

-15 एफजेडके 10 से 12, 24, 25 ---- फ्लैग: आसफवाला: वीरों की शौर्यगाथा का रखवाला ---- -फ

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Dec 2017 03:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Dec 2017 03:00 AM (IST)
विजय दिवस 1971.. यहां 'मां की गोद' में सोए हैं 209 लाल
विजय दिवस 1971.. यहां 'मां की गोद' में सोए हैं 209 लाल

-15 एफजेडके 10 से 12, 24, 25

prime article banner

----

फ्लैग: आसफवाला: वीरों की शौर्यगाथा का रखवाला

----

-फाजिल्का में हुआ था 209 भारतीय सैनिकों का सामूहिक अंतिम संस्कार

-शहीद सैनिकों की याद में बना था स्मारक, हर साल नमन करने पहुंचते हैं हजारों लोग

----

अमृत सचदेवा, फाजिल्का: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को 46 साल बीत गए हैं, लेकिन देश को दुश्मनों से बचाने के लिए शहीद हुए 209 भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा आज भी आसफवाला में सुनी जा सकती है। इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा हासिल है। इस समाधि को स्थानीय लोग शहीद सैनिकों की 'मां की गोद' कह कर बुलाते हैं। 16 दिसंबर को विजय दिवस के मौके पर इस स्मारक का महत्व और भी बढ़ जाता है। जब फाजिल्का के हजारों लोग सैनिकों को नमन करने पहुंचते हैं।

3 दिसंबर 1971 दिन फाजिल्का सेक्टर में 46 वर्ष पहले पाक सेना ने अचानक हमला बोलकर फाजिल्का के सीमावर्ती गांवों पर कब्जा कर लिया था। 1971 के भारत-पाकिस्तानयुद्ध का सर्वाधिक भीषण युद्ध फाजिल्का सेक्टर में ही हुआ था। वीर भारतीय सैनिकों ने अपनी शहादत देकर फाजिल्का शहर को पाक के कब्जे में जाने से बचा लिया। युद्ध के दौरान 3 असम रेजीमेंट, 15 राजपूत और 67 इन्फैंट्री ब्रिगेड के भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों का बहादुरी से मुकाबला किया। रणनीतिकारों को सेना की शक्ति बढ़ानी पड़ी। इसके चलते 4 जाट रेजीमेंट के जवानों को रणभूमि में उतारा गया। फाजिल्का क्षेत्र में सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण गांव बेरीवाला के पुल को भारतीय सेना ने उड़ा दिया, ताकि बढ़ती हुई पाक सेना को रोका जा सके। इस भीषण युद्ध में रणभूमि रक्त रंजित हो गई। 3 असम रेजीमेंट, 15 राजपूत रेजीमेंट, 67 इन्फैंट्री ब्रिगेड, 18 अश्वरोही सेना व 4 जाट रेजीमेंट के 82 जवान अभेद्य चट्टान की भांति खड़े रहे और देश की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की।

युद्ध विराम के बाद जब शहीद सैनिकों के शव भारतीय सेना को सौंपे गए तो युद्ध में सेना के लगभग 209 जवान वीरगति प्राप्त कर चुके थे। इस मोर्च पर 450 के करीब जवान गंभीर रूप से घायल हुए। शहीद सैनिकों का सामूहिक अंतिम संस्कार सर्व धर्म प्रार्थना के साथ गांव आसफवाला में लगभग 2 कनाल भूमि स्थल पर 90 फीट लंबी और 55 फीट चौड़ी सामूहिक चिता बनाकर किया गया था। शहीदों के बलिदान से प्रभावित फाजिल्का क्षेत्रवासियों ने उनकी स्मृति में एक समारक का निर्माण किया। इस स्मारक को आज भी एक शौर्य मंदिर की दृष्टि से देशभक्ति की भावना को प्रेरित करने के स्थल के रूप में देखा जाता है।

बीएसएफ व पंजाब होमगा‌र्ड्स के जवानों ने भी दी थी शहादत

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 22वीं बटालियन के जवानों ने भी पाकिस्तान सेना की ओर से कब्जे में ली भारतीय चौकियों को छुड़वाने के लिए बलिदान दिया। विभिन्न स्थानों पर पाकिस्तानी चौकियों पर भी कब्जा किया। तीन दिसंबर 1971 की शाम को जब पाकिस्तान की ओर से गोलाबारी शुरू हुई, तब सरहद पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने गोलाबारी का जवाब देना शुरू किया। इसमें हेड कांस्टेबल निर्मल ¨सह, श्याम ¨सह, करतार ¨सह, सूरज मल, मुल्ला ¨सह, कपूर ¨सह ने भी अपने प्राण न्योछावर कर दिए। मरणोपरांत उन्हें 1975 में शौर्य चक्र से नवाजा गया। सीमा सुरक्षा बल के इन शहीद जवानों के पारिवारिक सदस्य समय-समय पर फाजिल्का की सीमा पर आकर उन्हें नमन करते हैं। सेना व सीमा सुरक्षा बल के साथ इस युद्ध में पंजाब होमगार्ड व क्षेत्र के कई नागरिकों ने भी शहादत दी थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.