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बजट के बाद लुढ़की मंडी गोबिदगढ़ की लोहा मार्केट

मोदी सरकार का इस बार का बजट भी लोगों को ज्यादा रास नहीं आ रहा क्योंकि लोग ज्यादा रियायतें व सस्ते कर्ज की बाट जोह रहे थे।

By JagranEdited By: Published: Sun, 02 Feb 2020 01:11 AM (IST)Updated: Sun, 02 Feb 2020 06:11 AM (IST)
बजट के बाद लुढ़की मंडी गोबिदगढ़ की लोहा मार्केट
बजट के बाद लुढ़की मंडी गोबिदगढ़ की लोहा मार्केट

इकबालदीप संधू, मंडी गोबिदगढ़ : मोदी सरकार का इस बार का बजट भी लोगों को ज्यादा रास नहीं आ रहा, क्योंकि लोग ज्यादा रियायतें व सस्ते कर्ज की बाट जोह रहे थे। साथ ही कारोबारी जीएसटी कटौती व बजट में विशेष छूट लेना चाहते जो संभव नहीं हो सका। वहीं, बजट के बाद एशिया की प्रसिद्ध लोहानगरी मार्केट के रेट नीचे आ गए। इसी को लेकर दैनिक जागरण ने लोगों से विशेष बातचीत की तो लोगों ने बजट पर अपनी प्रतिक्रिया दी।

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आयकर में करदाता कंफ्यूज होंगे : सीए विक्रांत बांसल

सीए विक्रांत बांसल ने कहा कि आयकर में विकल्प से करदाता कंफ्यूज होंगे, जबकि सीधे टैक्स छूट मिलती तो अच्छा था। इस बजट में बड़े करदाताओं को राहत, जबकि छोटे करदाता को कोई लाभ नहीं मिला। जबकि उम्मीदें बहुत ज्यादा थीं।

आयात-निर्यात में जीएसटी कम होना चाहिए था : बलवीर सिंह

उद्यमी बलबीर सिंह ने कहा कि एमएसएमई उद्योगों को सरकार सस्ती दरों पर शॉर्ट टर्म लोन देने से नए कारोबारियों को काफी लाभ मिलेगा, लेकिन अगर एनपी यूनिटों को विशेष राहत मिलती तो और भी अच्छा होता, जबकि आयात-निर्यात में जीएसटी घटना चाहिए जैसे चायना में है इससे इंडस्ट्री को बूस्ट मिलता।

बैंकों में जमा राशि की गारंटी बढ़ाना सराहनीय : विकास जोशी

युवा लोहा व्यापारी विकास जोशी का कहना है कि बजट में रोजगार के लिए राष्ट्र भर्ती एजेंसी बनाना व बैंकों में पांच लाख तक जमा रुपये गारंटी बढ़ाना सराहनीय कदम है। लेकिन रोजगार भर्ती में भाई-भतीजावाद नहीं होना चाहिए। जबकि पारदर्शिता जरूरी होनी चाहिए, तभी कोई योजना का लाभ आम आदमी तक पहुंच पाएगा। किसानों को बिना गारंटी लोनव प्राकृतिक आपदा में कर्जमाफी चाहिए थी : दविदर संधू

पिछले 20 सालों से किसानी कर रहे दविदर संधू ने कहा कि जिन किसानों के पास कम जमीन है, उन्हें बिना गारंटी कर्ज मिलना चाहिए। फसल पर प्राकृतिक आपदा के शिकार होने पर मुआवजा तैयार फसल तक होना चाहिए था। लेकिन सरकार का कर्ज देने व आय दोगुणी करने के फैसले कागजी है, जो नाकाफी है। महंगाई के दौर में सस्ते कर्ज व फसल मार्केटिग प्रबंध ठीक नहीं हैं।


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