Move to Jagran APP

कारीगर नहीं सिखाना चाहते बच्चों को पुतले बनाना

बढ़ती महंगाई और कम मेहनताने के चलते अब पुतले बनाने की कला विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 06:11 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 06:11 AM (IST)
कारीगर नहीं सिखाना चाहते बच्चों को पुतले बनाना
कारीगर नहीं सिखाना चाहते बच्चों को पुतले बनाना

इकबालदीप संधू, मंडी गोबिदगढ़

loksabha election banner

बढ़ती महंगाई और कम मेहनताने के चलते अब पुतले बनाने की कला विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। इसका कारण ये है कि इस कला से लंबे समय से जुड़े कारीगर आगे अपने बच्चों को पुतले बनाने की कला नहीं सिखाना चाहते।

अपनी दर्दभरी दास्तां सुनाते हुए धूरी के धीरज ने बताया कि आज वे मायूस हैं क्योंकि कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा। पिछले समय आए कोरोना काल ने तो उनकी कमर ही तोड़ दी थी। एक साल वे बिल्कुल खाली रहे। यही नहीं, खाने तक के लाले पड़ गए थे। नम आंखों से धीरज ने बताया कि इस पारंपरिक कला को जीवित रखने के लिए कोई भी सरकारी मदद नहीं मिल रही। अगर समय रहते पुतले बनाने की इस कला को न बचाया गया तो यह कला सिर्फ किताबों में या इतिहास बनकर रह जाएगी। मेहनत का मोल नहीं मिलने के कारण वह अपने बच्चों को ये कला नहीं सिखा रहे हैं। पुतले तैयार करवा रही श्री कृष्णा मंदिर प्रबंधक सभा मंडी गोबिदगढ़ ने कहा कि वह पिछले 62 साल से दशहरा मनाते आ रहे हैं। इस बार पुतलों में 1500 बम लगाए गए हैं। 25 से 30 दिन में तैयार होते हैं पुतले

पुतले बनाने की कला मुश्किल भरी है। इसमें तीन पुतले बनाने में औसतन 25 से 30 दिन तक दिन रात का समय लग जाता है। ये साल में एक बार ही होता है जब वो अपना कारोबार कर सकते हैं। इसके अलावा साल भर वो इसी महीने का इंतजार करते हैं कि कब ये समय आए और उनके घर के गुजारे के लिए कुछ पैसे का जुगाड़ हो सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.