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12 वर्षों से बंद है पराली से बिजली पैदा करने वाला देश का पहला प्लांट

कुछ किसान पराली न जलाकर दूसरों के लिए प्रेरणस्रोत बन रहे हैं तो कुछ अभी भी इसे जला रहे हैं। वहीं पराली से बिजली तैयार करने वाला प्लांट सरकार की बेरुखी से अस्तित्व खो चुका है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 06:47 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 06:47 PM (IST)
12 वर्षों से बंद है पराली से बिजली पैदा करने वाला देश का पहला प्लांट
12 वर्षों से बंद है पराली से बिजली पैदा करने वाला देश का पहला प्लांट

जेएनएन, फतेहगढ़ साहिब। जिले के गांव जालखेड़ी में बना पराली से बिजली तैयार करने वाला देश का पहला प्लांट सरकार की बेरुखी के चलते अपना अस्तित्व खो चुका है। करोड़ों रुपये की मशीनरी कचरा बन रही है। मशीनरी का रखरखाव एक सुरक्षा एजेंसी को दिया गया है। इसका सरकारी खजाने पर सीधे तौर पर बोझ पड़ रहा है। अगर यह प्लांट चलता रहता, तो सरकार व किसानों को पराली की चिंता करने की जरूरत न पड़ती।

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जून 1992, में गांव जालखेड़ी गांव में पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की ओर से 10 मेगावॉट का प्लांट स्थापित किया गया था। इसे जुलाई 1995 तक सरकार की ओर से चलाया गया। बाद में इस प्लांट को जालखेड़ी पावर प्लांट लिमिटेड (जेपीपीएल) को 2001 में लीज पर दे दिया गया। इस दौरान यहां से तैयार बिजली पावर ग्रिड टोहड़ा को जाती रही, लेकिन कंपनी और सरकार के बीच मतभेद होने से यह सितंबर 2007 में बंद हो गया। इस प्रोजेक्ट के बंद होने से जहां इलाके के कई लोग बेरोजगार हो गए। सरकार के करोड़ों रुपये मिट्टी हो गए।

अगर प्लांट चलता रहता तो किसान भी पराली को आग लगाने की बजाय प्लांट को बेचकर अपनी आर्थिक हालत मजबूत कर सकते थे।  अब 12 वर्षों से प्लांट बंद पडा है, जिस कारण यह जंगल का रूप ले चुका है।

47 करोड़ की लागत आई थी

यह देश का पराली से बिजली पैदा करने वाला प्लांट था। इसे तैयार के लिए 25 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत तय की गई थी, लेकिन यह 47.2 करोड़ रुपये में तैयार हुआ था। इसके लिए 40 एकड़ जमीन जब्त की गई थी। इस प्लांट में तीन शिफ्टों में काम चलता था। एक शिफ्ट में करीब 150 लोग काम करते थे। करीब 500 लोगों को रोजगार मिला था।

कांग्रेस सरकार के समय में बंद हुआ: पूर्व मंत्री

पूर्व मंत्री डॉ. हरबंस लाल ने बताया कि यह प्लांट कांग्रेस सरकार के समय ही बंद हुआ था। इसके बाद 10 वर्ष अकाली सरकार रही, जिसने कोई ध्यान नहीं दिया। तत्कालीन विधायक साधू सिंह धर्मसोत इसको चलाने के लिए बयान दे चुके हैं। अब तो वह मंत्री हैं, फिर भी कोई बात नहीं की जा रही। इस करोड़ों के प्रोजेक्ट पर कथित घपला हुआ है, जिसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री से करेंगे बात: कांग्रेस जिलाध्यक्ष

कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हङ्क्षरदर सिंह भांबरी ने कहा कि यह पराली से चलने वाला भारत का पहला प्लांट है। अगर यह चलता है तो किसानों की पराली बिक सकेगी। सरकार को भी लाभ होगा। लोगों को रोजगार मिलेगा। वह इस संबंध में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमङ्क्षरदर सिंह से दोबारा चलाने की मांग करेंगे।

सरकार प्लांट चलाने की तैयारी में: बिजली मंत्री

बिजली मंत्री गुरप्रीत सिंह कांगड़ ने कहा कि यह प्लांट पूरी तरह से सरकार के ध्यान में है। इसे चलाने के लिए तैयारियां की जा रही हैं। यहां तक कि टेंडरों की मांग भी की गई है। अगर प्लांट चलता है, तो पराली की समस्या का समाधान हो सकेगा। लोगों को रोजगार भी मिलेगा और बिजली भी बनेगी।

जालंधर के छह गांव बने मिसाल

धान की पराली न जलाने के खिलाफ चलाई गई मुहिम से प्रेरित होकर जालंधर के 6 गांव पराली न जलाने वालों के लिए मिसाल बने हैं। इन गांवों ने राज्य को साफ-सुथरा, हरा-भरा व प्रदूषण मुक्त बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया है। ब्लॉक लोहियां खास के गांव वाड़ा जोध सिंह, भोगपुर के मल्ली नंगल, नकोदर के महिसमपुर, जालंधर पूर्वी से बोलीना दोआबा, लोहियां से जानियां चाहल व ब्लॉक जालंधर पश्चिम से गांव दासपुर पराली नहीं जला रहे हैं। डीसी वरिंदर शर्मा ने इन गांवों के किसानों के प्रयास की सराहना की है।

80 फीसद पराली दबा कर पैदावार बढ़ा रहा यह गांव

बठिंडा का मेहराज गांव के किसान पिछले कई वर्षों से पराली को आग न लगाकर इसे जमीन में दबा रहे हैं। इस गांव की खासियत यह है कि यहां पर 80 फीसदी से ज्यादा जमीन में पराली को जमीन में ही दबाया जाता है। सरकार की ओर से मुहैया करवाए गई मशीनों से इस्तेमाल और किसानों से तुजुर्बे से उन्होंने काफी हद तक इस समस्या पर काबू पा लिया है। कृषि विज्ञान केंद्र भी इसमें उनका सहयोग कर रहा है।

मेहराज के किसान गुरप्रीत सिंह 2003 से पराली की संभाल कर रहे हैं। पहले वह जीरो टेल के साथ पराली संभालते थे, जिसके बाद 2010 में उन्होंने बेलर के साथ पराली को इकट्ठा किया। 2014 से वह हैप्पी सीडर का प्रयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि पराली को आग न लगाने से उनको काफी फायदा हुआ है। पराली खेत में दबाने के बाद गेहूं की बिजाई भी कर देते हैं। इस समय वह 50 एकड़ में खेती कर रहे हैं। इससे उनको खासा मुनाफा हो रहा है। इससे वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता। इसी तरह गांव के किसान गुरमेल सिंह भी अपनी 60 एकड़ जमीन में खेती कर रहे हैं। कई वर्षों से उन्होंने पराली को आग नहीं लगाई।

उनका कहना है कि पराली को खेत में हैप्पी सीडर के साथ दबाने के लिए 1 एकड़ में 4 लीटर डीजल की खपत होती है। कीटनाशकों व खाद के खर्च में काफी कमी आई है। गांव के किसान प्रेम सिंह भी अपनी 40 एकड़ जमीन में खेती करने के बाद बेलर से पराली इकट्ठा कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि एक टन फसल अवशेष जलाने से 1513 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइड, 92 किग्रा कार्बन मोनोऑक्साइड, 3.83 किग्रा नाइट्रस ऑक्साइड, 0.4 किग्रा सल्फर डायऑक्साइड व 2.7 किग्रा मीथेन हवा में घुलती है।

जागरूक बनें किसान, तरीका बदलें

  • कई अत्याधुनिक मशीनें उपलब्ध हैं। उनसे बिजाई करें। फसल के अवशेष खेत में ही नष्ट हो जाएंगे।
  • कई कंबाइन पर पराली कटाई यंत्र भी होता है। इसे प्रयोग करें। उत्पादन क्षमता बढ़ेगी।
  • पशुओं के लिए चारा बना सकते हैं। ईंधन के प्रयोग में ला सकते हैं। सड़ा-गलाकर जैविक खाद भी बना सकते हैं।

(इनपुटः बिक्रमजीत सिंह सहोता, साहिल गर्ग)

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