नहर से डूबने में बची जैसमीन बनी खुशविदर के लिए 'मौत'
कहावत घर का भेदी लंका ढाए सच साबित हो गई है। पैसों के लालच में आकर दो परिवार के 10 लोगों को नहर में धक्का देने वाले जिला फतेहगढ़ साहिब के गांव सुहावी निवासी खुशविदर सिंह को भले ही सीबीआई कोर्ट तथा हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी
जेएनएन, फतेहगढ़ साहिब
घर का भेदी लंका ढाए। यह सच साबित हुआ है। यह कहावत जिला फतेहगढ़ साहिब के गांव सुहावी निवासी खुशविदर सिंह पर सटीक बैठती है। उसने दो परिवारों के 10 लोगों को नहर में धक्का देकर लाखों रुपयों का मालिक बनने के लिए अपनी पत्नी के रिश्तेदारों को भी नहीं बख्शा। गौर हो कि इस मामले में सीबीआइ कोर्ट तथा हाईकोर्ट ने खुशविंदर को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है। इस मामले को बस्सी पठाना पुलिस से हाईकोर्ट तथा हाईकोर्ट से सीबीआइ तक ले जाने वाले मृतक कुलवंत सिंह के साले एवं गांव पोलो माजरा के पूर्व सरपंच कुलतार सिंह तथा खुशविंदर की पत्नी के ननिहाल परिवार की जैसमीन कौर के साहस और जज्बे को भी सलाम बनता है। एक ओर जहां कुलतार सिंह ने अपनी बहन के परिवार को मारने का बदला लेने के लिए जहां खुशविदर को पहले फतेहगढ़ साहिब कोर्ट से फांसी की सजा दिलवाई, वहीं सीबीआइ अदालत तथा हाईकोर्ट ने भी खुशविदर को फांसी की सजा सुनाई थी। जिस पर रहम की अपील खुशविदर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में डाली गई थी, परंतु अपराध बड़ा होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने भी इस अपील को ठुकराते हुए खुशविदर की फांसी की सजा को बरकरार रखा।
गौर हो कि खुशविदर सिंह द्वारा 2012 में पत्नी के ननिहाल परिवार के सात लोगों को नहर में धक्का देने के बाद नहर में फंसकर बची जैसमीन कौर खुशविदर के लिए 'मौत' बनी है। उक्त सात लोगों को नहर में धक्का देने के बाद जैसमीन कौर बच निकली थी। उसने ही खुशविदर के पूरे कारनामे का भंडाफोड़ किया था।
जैसमीन कौर गांव मकंदपुर थाना डेहलों जिला लुधियाना की निवासी है। जिसे खुशविदर ने उसके पिता गुरमेल सिंह, परमजीत कौर, गुरिदर सिंह, रूपिदर सिंह, जसकीरत सिंह व प्रभसिमरन कौर समेत नहर में फेंक दिया था। इससे पहले भी 3 जून, 2004 में खुशविदर फतेहगढ़ साहिब के गांव नौगावां निवासी कुलवंत सिंह, हरजीत कौर, बच्ची रमनदीप कौर और लड़के अरविदर सिंह को नहर में धक्का देकर मार चुका था।
उधर, इस मामले में कुलतार सिंह को जैसे ही 5 जून, 2004 को अपनी बहन हरजीत कौर समेत उसके पूरे परिवार की नहर में डूबने की खबर मिली, तो कुलतार सिंह उस दिन से चैन की नींद नहीं सो पाया। हरजीत कौर उसकी इकलौती (छोटी) बहन थी।
स्थानीय पुलिस इस अंधे कत्ल के आरोपित तक पहुंचने में बार-बार विफल हो रही थी। पुलिस ने मामले की क्लोजर रिपोर्ट भी फाइल कर दी थी। कुलतार सिंह इस मामले को लेकर 2004 में स्टेट क्राइम ब्रांच के पास गया। जहां फिर इस मामले में आरोपित का पता न लगने पर केस को फिर बंद कर दिया गया। कुलतार सिंह इस मामले की तह तक जाकर आरोपित को सजा करवाना चाहता था। इस पर उसने हाईकोर्ट का रूख किया था। उसने 14 साल कानूनी जंग लड़ी। वहीं जैसमीन के जिदा बचने के कारण मजबूत हुए इस मामले में 28 अगस्त, 2018 को खुशविदर को फांसी की सजा हुई।
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जिसने दिया रोजगार उसे भी नहीं बख्शा
कुलतार सिंह के अनुसार संघोल में उनकी आढ़त की दुकान है। 2003 में खुशविदर सिंह का भाई कुलविदर सिंह उसके पास मुनीम का काम करता था। इस दौरान कुलविदर सिंह के पास खुशविदर आता-जाता था। कुलतार सिंह ने फतेहगढ़ साहिब की कचहरी में वर्ष 2003 में 40 हजार रुपये खर्च कर खुशविदर को एक फोटोस्टेट मशीन और एक वकील के कैबिन में बैठने के लिए जगह लेकर दी थी। उसी दुकान में खुशविदर 10-11 साल तक फोटोस्टेट का काम करता रहा। उसकी बहन समेत पूरे परिवार की हत्या करने के बाद भी वह 12 साल तक घूमता रहा। फिर 2012 में अपनी पत्नी के ननिहाल परिवार के 6 लोगों को नहर में धक्का देने का जुर्म कबूलने सहित खुशविदर ने उसकी बहन के परिवार का कत्ल भी कबूल किया।