धर्म की सियासत में मिट्टी में मिल रही विरासत, ध्वस्त हो रहे गौरव के निशान
पंजाब में धर्म की सियासत ऐतिहासिक विरासत पर भारी पड़ रही है। इसका कारण गौरव के निशान एक के बाद एक ध्वस्त हो रहे हैं।
फतेहगढ़ साहिब, [धरमिंदर सिंह]। पंजाब में धर्म की राजनीति ऐतिहासिक धरोहरों पर भारी पड़ रही है। इस सियासत के कारण ऐतिहासिक विरासत के निशान मिट रहे हैं। ऐतिहासिक इमारतें देखरेख के अभाव में खंडहर बनते जा रहे हैं। फतेहगढ़ साहिब की पावन धरती पर छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी जी की बेमिसाल कुर्बानी का जिक्र होता है तो गुरु घर के महान शिष्य दीवान टोडर मल का नाम लिए बगैर इतिहास आगे नहीं बढ़ सकता। उस समय के सबसे अमीर लोगों में शामिल दीवान टोडर मल की करीब 2 कनाल 17 मरले में बनी जहाजी हवेली की शान का डंका पूरे देश में बजता था। तीन सदियों की अनदेखी के कारण हवेली खंडहर बन गई।
17वीं सदी में बजता था डंका, अनदेखी ने खंडहर बना दी टोडर मल की जहाजी हवेली
धर्म की सियासत में हर वर्ष यह हवेली वजूद गंवाती आ रही है। दो इमारतों में से एक का 90 फीसद हिस्सा ध्वस्त हो चुका है। दूसरी इमारत का 50 फीसद हिस्सा ध्वस्त है। हालांकि, पंजाब सरकार ने 1980 में इस हवेली को सुरक्षित इमारत करार दे दिया था, लेकिन तब जमीन अधिग्रहण नहीं की थी।
1980 में पहली बार पंजाब सरकार ने देखा और इमारत सुरक्षित घोषित की
2003 के बाद जैन समाज ने संभाल का जिम्मा लिया तो एसजीपीसी ने रोष जताते हुए खुद संभालने व विकसित करने का फैसला लिया। 2008 में जैन समाज के ट्रस्ट ने इस जमीन को गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब के नाम करवा दिया। दस साल चुप रही एसजीपीसी 2018 में हवेली की मरम्मत करवाने लगी तो पुरातत्व विभाग ने रोक लगा दी।
एसजीपीसी वहां पार्क और दर्शनी ड्योढ़ी बनाना चाहती थी, लेकिन विभाग का तर्क था कि हवेली को नया स्वरूप नहीं दिया जा सकता। तब से काम बंद है। अब संरक्षण का मामला हाईकोर्ट पहुंचा है। उसमें पंजाब सरकार व एसजीपीसी से जवाब मांगा गया है। केस की सुनवाई 17 मार्च को है।
इसलिए खास है टोडर मल व उनकी हवेली
गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी के अंतिम संस्कार के लिए दीवान टोडर मल ने 78 हजार सोने की मुहरें देकर जमीन का छोटा सा टुकड़ा खरीदा था। इसी जमीन पर सभी का संस्कार किया जा सका। इसे दुनिया का सबसे महंगा जमीन का सौदा माना जाता है।
ईंटें ऐसी की हर कोई चुरा ले गया
हवेली की सबसे खास बात यहां की ईंटे थीं। आम ईंटों से ये लंबी और चौड़ी थी। उसी कारण मजबूती भी ज्यादा थीं। सालों तक लोग निशानियों के तौर पर ईंटें उखाड़ भी ले जाते थे।
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सरकार, एसजीपीसी व पुरात्तव विभाग के अपने-अपने तर्क
'' एसजीपीसी ने हवेली पर एक करोड़ खर्च किया। इमारत उसी की बदौलत बची है। कई बार पुरात्तव विभाग को पत्र लिखे। मीटिंग भी की। अब कहा है कि या तो वे अपनी निगरानी में काम शुरू करवा दें या एसजीपीसी को काम करने दें।
- करनैल सिंह पंजोली, एसजीपीसी सदस्य।
'' मालिकाना हक एसजीपीसी के पास है, लेकिन वे मनमर्जी से इसका स्वरूप नहीं बदल सकते। पुरातत्व विभाग का काम वहां किसी भी प्रकार का उल्लंघन रोकना है। उसी कारण काम रोका गया है।
- मालविंदर सिंह जग्गी, डायरेक्टर, पुरातत्व विभाग पंजाब।
''10 वर्षों में तो अकाली-भाजपा सरकार ने कुछ नहीं किया। उसी कारण जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग को सौंपी गई। अब जो प्रोजेक्ट बनाकर भेजा था, उसके तहत 40 करोड़ की ग्रांट पास हो चुकी है। केंद्र ने ग्रांट रोकी हुई है।
- कुलजीत सिंह नागरा, कांग्रेस विधायक, फतेहगढ़ साहिब।
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