पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि पर विशेष, 15 वर्ष की उम्र में ही जुड़ गए थे बिट्रिश विरोधी मुहिम में
पंजाब में जन्मे पूर्व राष्ट्रपति स्व. ज्ञानी जैल सिंह के निधन के 26 वर्ष हो चुके हैं। ज्ञानी जैल सिंह देश के एकमात्र सिख राष्ट्रपति रहे हैं। वह 15 वर्ष की आयु में ही वह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम कर रहे अकाली दल से जुड़ गए थे।
जेएनएन, फरीदकोट। पूर्व राष्ट्रपति स्व. ज्ञानी जैल सिंह की 26वीं बरसी आज यानी शुक्रवार को उनके पैतृक गांव में मनाई जा रही है। 25 दिसंबर 1994 को ज्ञानी जैल सिंह का निधन हो गया था। गत वर्ष उनकी 25वीं बरसी उनके प्रशंकों व साथियों के साथ बाबा फरीद पब्लिक स्कूल में मनाई गई थी।
ज्ञानी जैल सिंह के पीए रहे सुरेन्द्र गुप्ता ने बताया कि ज्ञानी जी का वास्तविक नाम जरनैल सिंह था। इनका जन्म 5 मई, 1916 को फरीदकोट-कोटकपूरा हाइवे पर स्थित संधवां गांव में हुआ था। उनके पिता भाई किशन सिंह एक समर्पित सिख थे। वह गांव में ही बढ़ई का कार्य करते थे, छोटी उम्र में ही जरनैल सिंह की माता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण माता की बड़ी बहन द्वारा किया गया। 15 वर्ष की आयु में ही वह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम कर रहे अकाली दल से जुड़ गए थे।
अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कालेज से गुरु ग्रंथ का पाठ मुंह जबानी याद करने के बाद इन्हें ज्ञानी की उपाधि मिली थी। 1938 में जरनैल सिंह ने प्रजा मंडल नामक एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया, जो भारतीय कांग्रेस के साथ संबद्ध होकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया करती थी। यह बात अंग्रेज व फरीदकोट रियासत को पसंद नहीं आई, जरनैल सिंह को जेल भेज दिया, उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई।
इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर जैल सिंह (जेल सिंह) रख लिया। वह बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता के लिए जागरुक थे। वह एक समर्पित सिख भी थे। स्वतंत्रता के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बना दिया गया, 1951 में जब कांग्रेस की सरकार बनी उस समय जैल सिंह को कृषि मंत्री बनाया गया, इसके अलावा वह 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे।
कांग्रेस के समर्थन से ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने। 1980 के चुनावों में ज्ञानी जैल सिंह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित होने के बाद इंदिरा गांधी सरकार के कैबिनेट में रहते हुए देश के गृहमंत्री बने। 1982 में राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी का कार्यकाल समाप्त होने पर सर्वसम्मति से कांग्रेस के प्रतिनिधि ज्ञानी जैल सिंह देश के सातवें राष्ट्रपति बने।
राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल शुरू से अंत तक विवादों से ही घिरा रहा। आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान ज्ञानी जैल सिंह ही राष्ट्रपति थे। इसके अलावा भारतीय डाक विधेयक, जिसके अंतर्गत निजी पत्रों के संप्रेषण और आदान-प्रदान पर आधिकारिक सेंसरशिप लगाने का प्रावधान लागू किया जा सकता था, जैसे कठोर विधेयक को पास ना करने पर भी ज्ञानी जैल सिंह का प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भी मनमुटाव हो गया था।
ज्ञानी जैल सिंह बेहद धार्मिक व्यक्तित्व वाले इंसान थे। राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद भी जब कभी भी वह पंजाब के आसपास होते थे तो वह आनंदपुर साहिब जाना नहीं भूलते थे। इसी तरह वह लगातार तीर्थयात्राएं करते रहते थे। 1994 में तख्त श्री केशगढ़ साहिब जाते समय उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई, उन्हें पीजीआइ चंडीगढ़ इलाज के लिए ले जाया गया था, जहां उनका निधन हो गया।
दिल्ली में जहां ज्ञानी जैल सिंह का दाह-संस्कार किया गया उसे एकता स्थल के नाम से जाना जाता है। वह देश के पहले सिख राष्ट्रपति थे। वह देश और अपने धर्म के लिए प्रतिबद्ध और जनता के हितों की रक्षा करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में यह बात प्रमाणित कर दी थी कि जनता और देश का विकास ही उनकी प्राथमिकता है।