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आत्मा है सुख का आंतरिक स्त्रोत : दुर्गा भारती

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय मोगा रोड़ पर अमन नगर में स्थित आश्रम में धार्मिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लेकर प्रभु की लीलाओं का आनंद लिया। सत्संग कार्यक्रम के दौरान परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी दुर्गा भारती जी ने प्रवचन सुनाते हुए सभी श्रद्धालुओं को प्रभु चरणों से जोड़े रखा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 03:39 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 03:39 PM (IST)
आत्मा है सुख का आंतरिक स्त्रोत : दुर्गा भारती
आत्मा है सुख का आंतरिक स्त्रोत : दुर्गा भारती

जागरण संवाददाता, कोटकपूरा

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दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा स्थानीय मोगा रोड पर अमन नगर में स्थित आश्रम में धार्मिक सत्संग का आयोजन किया गया।

सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी दुर्गा भारती ने प्रवचन करते हुए श्रद्धालुओं को प्रभु चरणों से जोड़े रखा। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग कहते हैं कि मैं सुखी हूं, क्योंकि मेरे पास परिवार है, मित्र हैं, ऊंचा ओहदा है, प्रतिष्ठा है, धन है व सुरक्षा है। लेकिन सुखी होने के लिए ये सब कारण तुच्छ है। ये हवा की तरह आते हैं और चले जाते हैं।

उन्होंने कहा कि इनसे मिलने वाला सुख जब चला जाता है तो हम व्यसनों में सुख ढूंढने लगते हैं। इसी आशा में कि उनमें सुख मिलेगा। लेकिन इन कारणों से कभी भी सुख निर्मित नहीं हो सकता। आनंद के लिए अपने इस आंतरिक स्त्रोत से संपर्क खोकर, जो सुख आप बाल परिस्थितियों में महसूस करते हैं, वह सदा भ्रमात्मक होता है। आप उनकी दया पर निर्भर रहते हैं। उन्होंने बताया कि वेदांत कहता है कि इस प्रकार का अथवा कारण पर निर्भर रहने वाला सुख, दुख का ही दूसरा रूप है। क्योंकि ये भौतिक कारण तो कभी भी हम से छीने जा सकते हैं। अत: कि बिना कारण सुखी रहना हमारी आंतरिक आकांक्षा है।

साध्वी जी ने कहा कि सुख तो चेतना की आंतरिक अवस्था है, जो निर्णय करती है कि हम संसार को कैसे देखते हैं। उसे कैसे महसूस करते हैं। सुख का आंतरिक स्त्रोत हमारी आत्मा है। वही उसका मूल स्त्रोत है व वही मूल कारण है। सुख आत्मा का ही कार्य अर्थात उससे होने वाला प्रभाव है। हमारी चेतना ही उच्च अवस्था है। उन्होंने कहा कि आप इस आनंद को ही अपना प्राथमिक लक्ष्य बनाएं। फिर सभी कुछ आपकी इच्छानुसार आपको अपने-आप ही प्राप्त होता जाएगा। अंत उच्चतम मानी आत्मा की खोज करो। फिर सब कुछ आपके पास अपने-आप चला आएगा।


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