अच्छा व्यवहार ही बनाता है महान
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश््वर कमलानंद गिरि ने प्रवचन किया।
जागरण संवाददाता, फरीदकोट
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि ने कहा कि दूध स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है मगर यदि उसमें चीनी की बजाए नमक डाल दिया जाए तो वे पीने योग्य नहीं रहता। इसी तरह भोजन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, परंतु उसमें नमक की जगह चूर्ण डाल दिया जाए तो भोजन खराब हो जाता है। कुछ इसी प्रकार मनुष्य जन्म को सुधारना है तो इसे सही दिशा में लेकर चलो। प्रभु सिमरन करते रहें। अगर मनुष्य जन्म पाकर भी प्रभु सिमरन न किया तो समझो दूध में चीनी की जगह नमक व भोजन में नमक की जगह चूर्ण डाल हम अपने जन्म को खराब कर रहे हैं। स्वामी कमलानंद गिरि ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में श्री कल्याण कमल सत्संग समिति फरीदकोट की ओर से आयोजित प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए।
महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने अगर किसी मनुष्य के पास अकूत धन, सत्ता व सौंदर्य है। मगर उसका स्वभाव नीम की तरह कड़वा, मिर्च की तरह तीखा, नींबू की तरह खट्टा है तो ऐसे मनुष्य की धन-दौलत, सौंदर्य व सत्ता उसके लिए किसी भी प्रशंशा का कारण नहीं बनेंगे। मनुष्य का स्वभाव अच्छा होना चाहिए तभी वे प्रशंसा का पात्र बनता है। धन-दौलत, सौंदर्य व सत्ता बेशक न हो, परंतु यदि स्वभाव अच्छा है तो सभी आपकी प्रशंसा करेंगे। स्वामी कमलानंद जी ने कहा कि किसी से कड़वे वचन न बोलें। मनुष्य की प्रेम से भरी मीठी नजर ही बड़े से बड़े द्वेष भरे जहर को खत्म करने के लिए काफी है। इसलिए सभी से मीठे से बोलें।
स्वामी जी महाराज ने कहा कि भौतिक जगत में व्यवहारिक जीवन में कई बार किसी कार्य की योग्यता पूर्ण न होने पर समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसी प्रकार आध्यात्मिक जगत में योग्य वस्तु को योग्य पात्र में ही सहेजा जा सकता है। यदि वस्तु मूल्यवान है तो पात्र भी मूल्यवान चाहिए। सामान्य वस्तु के लिए ज्यादा टेंशन लेने की जरूरत नहीं। जिस तरह शेरनी का दूध सोने के पात्र में ही टिक सकता है क्योंकि शेरनी के दूध में बहुत ज्यादा ताकत होती है। वे अन्य किसी पात्र स्टील, पित्तल या लोहा में नहीं टिक पाता। दूध भी खराब होगा और पात्र भी चटक जाएगा। इसी प्रकार भगवान की अमूल्यवाणी ग्रहण करने के लिए जब तक निर्मल मन, शुद्ध चित्त व हमारे कर्म अच्छे नहीं होंगे तब तक भगवान की वाणी को ग्रहण नहीं कर सकते।