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पराली न जलाने वाले 128 किसानों का सम्मान

बाबा फरीद यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस फरीदकोट के प्रांगण में परीला न जलाने वाले किसानों का सम्मान किया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 04:40 PM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 04:40 PM (IST)
पराली न जलाने वाले 128 किसानों का सम्मान
पराली न जलाने वाले 128 किसानों का सम्मान

जासं, फरीदकोट

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बाबा फरीद यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंस फरीदकोट के प्रांगण में उन किसानों का सम्मान किया गया जो पिछले लम्बे समय से पराली को आग नहीं लगाते। खेती विरासत मिशन द्वारा उन किसानो का विशेष रूप से अभिनन्दन किया गया जो वातावरण एवं प्राकृतिक तरीकों से पराली की संभाल करते हैं और आग नहीं लगाते। ये वो किसान हैं जो अलग अलग पद्धतियों से या तो पराली को खेत में मिला देते हैं या पराली की खाद बनाते हैं या फिर पराली का प्रबंधन करते हैं।

बहुत सारे किसान ऐसे भी हैं जो पराली के बीच में ही गेहूं की बिजाई कर देते हैं। इनमे से हरतेज सिंह मेहता, कमलजीत हेयर,अमरजीत शर्मा, बलविदर सिह, राजविदर धालीवाल, गुरमुख सिंह एवं तेजा सिंह जैसे अनेक किसान ऐसे हैं जिन्होंने 10 वर्षों से अपने खेत में धान की पराली को आग नहीं लगाई और न ही सरकार से कभी सब्सिडी या किसी मशीन की सहायता मांगी।

इनमें से अधिकतर किसान ऐसे भी हैं जो धान की फसल को पूर्ण रूप से त्याग चुके हैं। मूल अनाज, कपास एवं अन्य वैकल्पिक फसलों की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. आदर्शपाल विग अध्यक्ष पंजाब पोल्युशन कंट्रोल बोर्ड ने इन किसानो का अभिनन्दन किया। इस कार्यक्रम में 128 किसानों का सम्मान किया गया।

खेती विरासत मिशन के अधिकारी उमेन्द्र दत्त के अनुसार मिशन द्वारा निकाली गई पर्यावरण चेतना यात्रा में ऐसे कई किसानों से भेंट हुई जो प्रदुषण एवं धान की पराली को जलाने से होने वाले नुकसान जैसे भूमि में रहने वाले जीवों का पतन , पक्षियों को होने वाले नुकसान आदि मुद्दों को भी गहराई से समझ अपने स्तर पर समाधान करने में जुटे हुए हैं। •ारूरत है तो बीएस उन्हें इकठ्ठा कर उनका साथ देने की।

इस अवसर पर सरकारी विभागों के साथ ताल मेल बढ़ाने एवं बड़ी मशीनों पर दी जा रही करोड़ों रुपये की सब्सिडी एवं विज्ञापन की जगह जमीनी स्तर पर किसानो के साथ लगातार काम कर के उन्हें पर्यावरण , प्रकृति , भुस्वास्थ्य और वायु प्रदुषण के मुद्दों पर जागरूक कर उनकी व्याहारिक समस्याओं का समाधान किया जाए। इस अवसर पर खेती विरासत मिशन की तरफ से यह घोषणा की गई कि इस प्रकार के चार और कार्यक्रम पंजाब के बाकी क्षेत्रों में भी किए जाएंगे। खेती विरासत मिशन की तरफ से मूल अनाजों एवं देसी कपास जो कि एक समय मालवा क्षेत्र की प्रमुख फसलें होती थी, धान की बजाय उन्हें वापस लाया जाने पर भी जोर देने की अपील की गयी।

इसी के समर्थन में खेती विरासत मिशन की तरफ से जैविक मूल अनाजों ( मिलेटस) का लंगर लगाया गया जो की कार्यक्रम का मुख्या आकर्षण बिदु भी रहा। भोजन में मुख्यत कोदरे का हलवा,कंगनी की खीर, हरी कंगनी का पुलाव एवं बाजरे के पकोड़ों ने आए हुए मेहमानो का दिल जीत लिया। कार्यक्रम में आये हुए विशेष अतिथियों का खेती विरासत मिशन के उपक्रम त्रिजन की अगुवाई में हाथ का बना हुआ देसी कपास का देसी चरखे पर कताई कर कपड़ा एवं मूंज घास की बनी टोकरी देकर सम्मान करते हुए खत्म होती पंजाब की पारम्परिक कला को जीवित रखने के लिए सहयोग करने की अपील भी की गई।


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