'नारी को तंग सोच से निकलने में लगा वक्त, मगर भारतीय महिला अब अपने प्रचंड रूप में'
महिला एक लंबे वक्त से संघर्ष करती आई हैं। उन्हें एक तंग सोच संकुचित समाज से निकलने में वक्त लगा है। मगर भारतीय महिला अब अपने प्रचंड रूप में है।
By Edited By: Published: Fri, 24 May 2019 08:55 PM (IST)Updated: Sat, 25 May 2019 03:01 AM (IST)
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। महिला एक लंबे वक्त से संघर्ष करती आई हैं। उन्हें एक तंग सोच, संकुचित समाज से निकलने में वक्त लगा है। मगर भारतीय महिला अब अपने प्रचंड रूप में है। जहां वह मजबूती से पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। हालांकि अभी भी कई समस्याएं हैं। मगर मजबूत इरादों से नारी इसे भी पार सकती है। मिसेज इंडिया इंटरनेशनल-2017 नीतू प्रभाकर ने कुछ इन्हीं शब्दों में हालिया समय में नारी पर अपने विचार रखे। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री-31 में शुक्रवार को आयोजित एक सेशन में वह हिस्सा लेने पहुंचीं। उनके साथ सेशन में एमसीएम डीएवी-36 की असिस्टेंट प्रोफेसर शैलजा बैनीवाल, इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, मोहाली के असिस्टेंट डायरेक्टर राजीव भार्गव, पंजाब इन्फोटेक के डीजीएम सुनील चावला और ह्यूमन राइट्स की एडवाइजर आरती चौधरी शामिल हुई।
कम वेतन है सबसे बड़ी समस्या
नीतू ने कहा कि कारपोरेट सेक्टर में महिलाओं के वेतन में पक्षपात होता है। उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम सैलरी मिलती है। ऐसा ही कई और इंडस्ट्री में भी होता है। इसके आगे कर्नल राजीव ने कहा कि देश की कुल जनसंख्या का 48.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। मगर देश की जीडीपी में महिलाओं का योगदान मात्र 17 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि उद्योग जगत में अगर लैंगिक समानता का उदाहरण पेश किया जाए, तो वर्ष 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान होगा।
प्रो. शैलजा ने कहा कि महिलाओं में सशक्तीकरण की भावना खुद से पैदा होनी चाहिए। एक व्यक्ति को महिला या पुरुष की दृष्टि से देखने के बजाय सामान्य दृष्टि से देखा जाए। हालांकि चिंता का विषय है कि महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाओं में जहां वृद्धि हुई है, वहीं, महिलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए कानून का भी दुरुपयोग भी हो रहा है। सुनील चावला ने कहा कि महिलाओं को तकनीकी रूप से सक्षम होना होगा। वर्तमान में बहुत से ऐसे मोबाइल एप आ गए हैं, जिनके बारे में महिलाओं का जानकार होना जरूरी है।
कार्यक्रम के दौरान दिव्यांग और ट्रांसजेंडर की श्रेणी से संबंधित होने के बावजूद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली ललित ग्रुप ऑफ होटल की गेस्ट सर्विस एसोसिएट ऐमी चौहान ने भी अपने संघर्षपूर्ण दिनों के अनुभव साझा किए। आरती चौधरी ने कहा कि महिलाओं को नौकरी देना बड़ी चुनौती नहीं, लेकिन उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बड़ी चुनौती है। क्योंकि उनपर दोहरी जिम्मेदारी होती है।
कम वेतन है सबसे बड़ी समस्या
नीतू ने कहा कि कारपोरेट सेक्टर में महिलाओं के वेतन में पक्षपात होता है। उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम सैलरी मिलती है। ऐसा ही कई और इंडस्ट्री में भी होता है। इसके आगे कर्नल राजीव ने कहा कि देश की कुल जनसंख्या का 48.5 प्रतिशत महिलाएं हैं। मगर देश की जीडीपी में महिलाओं का योगदान मात्र 17 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि उद्योग जगत में अगर लैंगिक समानता का उदाहरण पेश किया जाए, तो वर्ष 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान होगा।
प्रो. शैलजा ने कहा कि महिलाओं में सशक्तीकरण की भावना खुद से पैदा होनी चाहिए। एक व्यक्ति को महिला या पुरुष की दृष्टि से देखने के बजाय सामान्य दृष्टि से देखा जाए। हालांकि चिंता का विषय है कि महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाओं में जहां वृद्धि हुई है, वहीं, महिलाओं की रक्षा के लिए बनाए गए कानून का भी दुरुपयोग भी हो रहा है। सुनील चावला ने कहा कि महिलाओं को तकनीकी रूप से सक्षम होना होगा। वर्तमान में बहुत से ऐसे मोबाइल एप आ गए हैं, जिनके बारे में महिलाओं का जानकार होना जरूरी है।
कार्यक्रम के दौरान दिव्यांग और ट्रांसजेंडर की श्रेणी से संबंधित होने के बावजूद अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली ललित ग्रुप ऑफ होटल की गेस्ट सर्विस एसोसिएट ऐमी चौहान ने भी अपने संघर्षपूर्ण दिनों के अनुभव साझा किए। आरती चौधरी ने कहा कि महिलाओं को नौकरी देना बड़ी चुनौती नहीं, लेकिन उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बड़ी चुनौती है। क्योंकि उनपर दोहरी जिम्मेदारी होती है।
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