35 महिलाओं को सम्मान देकर बढ़ाया मान, कार्यक्रम में नवजोत कौर ने की शिरकत
शिक्षा से लेकर कानून तक। हर क्षेत्र जहां पहले पुरुषों का वर्चस्व रहा। आज वहां महिला कामयाबी से खड़ी हैं। उनके इस अदम्य साहस को हयात रिजेंसी में मंगलवार को सम्मानित किया गया।
जेएनएन, चंडीगढ़। शिक्षा से लेकर कानून तक। हर क्षेत्र जहां पहले पुरुषों का वर्चस्व रहा। आज वहां महिला कामयाबी से खड़ी हैं। उनके इस अदम्य साहस को हयात रिजेंसी में सम्मानित किया गया। शहर और विभिन्न राज्यों की 35 महिलाएं इस सम्मान समारोह में पहुंची, जिन्होने अपने क्षेत्र में महिलाओं को वो सम्मान दिलाया, जो शायद पहले कोई नहीं दिला सका था। इसमें शहर की एसएसपी निलांबरी जगदाले से लेकर शिक्षाविद मधु चितकारा भी शामिल हुई। कार्यक्रम में पूर्व विधायक नवजोत कौर सिद्धू ने सभी महिलाओं को सम्मानित किया।
बचपन से ही आइपीएस ऑफिसर के बारे में पढ़ने लगी थी: एएसपी निलांबरी
एसएसपी निलांबरी कार्यक्रम में थोड़ा देरी से पहुंची। उन्होंने कहा कि शहर की पहली महिला एसएसपी होना,एक जिम्मेदारी भी है। इससे महिलाओं का भी सम्मान जुड़ा है। अपनी बात करूं तो मुझे ऐसे कार्यक्रम बहुत पसंद आते थे, जिसमें महिलाओं का सम्मान होता था।अखबारों में रोजाना इस तरह के कार्यक्रम के बारे में पढ़ती थी। वही से किरण बेदी जैसे उदाहरण भी मिले। जहां से मुझे भी आइपीएस ऑफिसर बनने की राह जागी। मुझे लगता है कि महिला हर क्षेत्र में आगे निकल सकती है। बस उसके परिवार और दोस्त उसका साथ दे तो। उस पर दिखाया विश्वास ही उसे, कल्पना चावला, किरण बेदी जैसी सशक्त महिला बना सकता है।
मेरी कामयाबी के पीछे तीन पुरुषों का हाथ: डॉ. मधु चितकारा
शिक्षाविद और चितकारा यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर डॉ. मधु चितकारा ने कहा कि प्राइमरी टीचर से मेरा सफर शुरू हुआ। आज वाइस चांसलर हूं, मगर सच कहूं तो मेरी कामयाबी के पीछे तीन पुरुषों का हाथ है। मेरे पिता, पति और बेटा। इन तीनों ने मुझे समय-समय पर विश्वास दिलाया है कि मैं कर सकती हूं। मुझे एक टीचर बनाने का सपना मेरे पिता ने भी देखा और पूरा करने में मदद की। जब एक स्कूल से निकलकर एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का सपना देखा तो मेरे पति ने मुझे सहारा दिया।आज कामयाबी से अपने कार्य में अग्रसर हूं, तो नई पीढ़ी में मेरा बेटा मेरे साथ है। मुझे लगता है कि अपनो का साथ ही महिला को आगे बढ़ा सकता है। इसमें ये भी मानने से इंकार नही करना चाहिए कि हमारी कामयाबी के पीछे पुरुष का भी हाथ हो सकता है।
दाग अच्छे नहीं हैं, ये होने भी नहीं चाहिए: रिया शर्मा
यूनिसेफ द्वारा ग्लोबल गोल्स अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय महिला रिया शर्मा भी कार्यक्रम में पहुंची। उन्होंने कहा कि जब मै लंदन में फैशन की पढ़ाई के लिए गई, तो वहां मुझे लगा कि ये लाइन मेरे लिए नहीं है। ऐसे में वापिस भारत आई और डॉक्यूमेंट्री बनाने का सोचा। इसके लिए एक हॉस्पिटल गई। वहां जाकर देखा कि एक एसीड विक्टिम तड़प रही है। मुझसे ये देखा न गया। मैंने कैमरा छोड़, ऐसी ही महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया। ऐसे में अपनी संस्था मेक लव नोट स्कार्स को बनाया। इसके तहत सरकार से समय समय पर तेजाब की बिक्री पर रोक और एसिड विक्टिम को काम दिलाने से जुड़े कार्य किए। दुखद है कि आज भी ऐसी घटनाएं हो रही है, मगर मैं भी हिम्मत नही हारुंगी।
सोच बदलने के लिए उतरी राजनीति में
देश की पहली युवा ब्लॉक डवलपमेंट कमेटी की चेयरपर्सन प्रज्जवल बस्टा को भी सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें लड़की तो क्या लड़के भी सोच के आते हैं। मगर मेरा झुकाव पहले से ही इसमें रहा।शिमला से झुब्बल कोटखाई से मुझे इस पद के लिए चुना गया। मेरा इस पद को पाने में सबसे ज्यादा मदद एजुकेशन ने की। दरअसल मेरे गांव में सभी लोग पढ़े लिखे हैं। ऐसे में मैं जब चुनाव के लिए खड़ी हुई तो समाज की दबी हुई सोच बीच में नही आई। सबने मेरा स्वागत किया और मुझे जिताया। मुझे खुशी है कि इन तीन वर्षों में मैंने जो किया लोगो ने उसे दिल से अपनाया।
लड़कियां ही नहीं, लड़कों को भी सिखाया फुटबॉल
इंग्लैड की जूली एन पिछले 40 वर्षों से फुटबॉल से जुड़ी हैं। बोली कि कैब्रीज में पढ़ते हुए मैं कॉलेज की एकमात्र लड़की थी, जो फुटबॉल खेलती थी। ऐसे में मुझे फुटबॉल खिलाया नहीं जाता था। ऐसे में मैंने पहली बार अपने कॉलेज की महिला टीम को बनाया। इसके बाद कई मैच भी खेले। फिर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय लेवल पर भी मैच खेले। अब लड़कियां ही नहीं, लड़कों को भी फुटबॉल खेलना सिखाती हूं। मेरे अनुसार, लड़कियां ही समाज की सोच बदल सकती हैं, वो कमजोर नहीं, किसी भी मुकाम को छू सकती हैं।