पंजाब के किसानों की आमदनी सबसे ज्यादा, खर्च में भी आगे, फिर भी खुदकशी क्यों?
पंजाब के किसानों की आय देश के सभी किसानों से ज्यादा है। पंजाब में प्रति घर आय प्रति माह 23,133 रुपये है। इसके बावजूद राज्य में किसान आये दिन आत्महत्या करने को विवश हैं।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब के किसानों की आय देश के सभी किसानों से ज्यादा है। पंजाब में प्रति घर आय प्रति माह 23,133 रुपये है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में यह आय देश में सबसे कम 6,668 रुपये है। यही नहीं, खर्च करने के मामले में भी किसान सबसे ऊपर हैं। ये आंकड़े नाबार्ड की ओर से देश के सभी राज्यों में किए गए सर्वे में सामने आए हैं। इस सर्वे में 29 राज्यों के 2016 जिले और 40327 घरों को कवर किया गया।
ऐसा पहला सर्वे, जिसमें किसानों की अार्थिक दशा को समझने का किया प्रयास
यह पहला ऐसा सर्वे है, जिसमें किसानों की आर्थिक दशा को समझने का प्रयास किया गया है। साथ ही, यह भी कोशिश की गई है कि जब वे आर्थिक संकट में होते हैं तो इसे टालने के लिए वे कर्ज किन-किन स्रोतों से लेते हैं। खेती के अलावा उनकी आय के और क्या-क्या स्रोत हैं? क्या उन्होंने किसी किस्म का बीमा आदि करवाया है कि नहीं? क्या उन्होंने कहीं निवेश किया है कि नहीं? सर्वे में दावा किया गया है कि इससे पहले जितने भी सर्वे हुए हैं उनमें केवल आर्थिक दशा को ही देखा जाता है।
फिर सबसे ज्यादा आत्महत्याएं क्यों?
इस सर्वे से जो परिणाम सामने आए हैं, उससे एक सवाल यह उठना लाजमी है कि सबसे ज्यादा आय वाले किसान फिर आत्महत्याएं क्यों कर रहे हैं। प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री दविंदर शर्मा का कहना है कि 2000 से लेकर 2016 तक तीन यूनिवर्सिटियों द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया है कि 16 वर्षों में 16600 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। यानी औसतन तीन किसान रोज आत्महत्याएं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पंजाब में 98 फीसद किसानों के पास सिंचाई के संसाधन उपलब्ध हैं। मक्की, गेहूं और धान में पैदावार सारे विश्व में सबसे ज्यादा है। फिर आत्महत्याएं क्यों हो रही हैं?
कर्ज लेने में भी आगे
सर्वे रिपोर्ट में यदि आय में सबसे अधिक पंजाब के किसान हैं तो कर्ज लेने और खर्च करने में भी सबसे आगे हैं। सर्वे रिपोर्ट कहती है कि पंजाब में प्रति परिवार सबसे ज्यादा ट्रैक्टर (31 फीसद) हैं, जबकि दूसरे नंबर पर गुजरात है (14 फीसद)। यानी पंजाब से आधे।
तस्वीर का दूसरा पहलू
पंजाब में कुल 4.5 लाख ट्रैक्टर हैं, जबकि जरूरत मात्र 1 लाख ट्रैक्टर की है। साफ है कि 3.5 लाख ट्रैक्टरों और उसके अलावा खेती मशीनरी पर किया गया निवेश अब कर्ज के रूप में उनके गले की फांस बन चुका है। इस तरह की मशीनरी खरीदने के चक्कर में किसानों पर बैंकों का 14 हजार करोड़ का दीर्घावधि लोन खड़ा है।
मुफ्त बिजली का महंगा सच
पंजाब के किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली मिलती है। पिछले दस वर्षों में 35 हजार करोड़ रुपये की बिजली मुफ्त दी गई है, जबकि तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि किसानों ने धान पैदा करके भूजल खत्म करने के किनारे पर कर दिया है और हर तीसरे साल अपने ट्यूबवेलों को और गहरा करने के चक्कर में 17.5 हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं। यानी जितने की बिजली ली, उसका आधा ट्यूबवेल गहरे करवाने में खर्च कर डाला।
सर्वे में लिए पंजाब के ये आठ जिले
- फिरोजपुर
- तरनतारन
- मानसा
- मुक्तसर
- होशियारपुर
- लुधियाना
- नवांशहर
- एसएएस नगर (मोहाली)
पंजाब की कृषि को यूपी व बिहार के मेहनतकशों ने संवारा
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स व सोशोलॉजी के पूर्व हेड और एडजंक प्रोफेसर डॉ. एमएस सिद्धू वर्ष 1978,1984,1995 व वर्ष 2008 में पंजाब की कृषि में माइग्रेट लेबर के योगदान पर शोध कर चुके हैं। डॉ. सिद्धू के अनुसार पंजाब की खेती में यूपी व बिहार से आने वाले मेहनतकश श्रमिकों का बहुत बड़ा योगदान है। कुल श्रमिकों में से 20 से 25 प्रतिशत इन्हीं दो राज्यों से होते हैं।
डॉ. सिद्धू अपने शोध कार्य का हवाला देते हुए कहते हैं कि वर्ष 1978 में उन्होंने शोध किया था तब पंजाब के कृषि क्षेत्र में दो लाख श्रमिक थे। यह संख्या वर्ष 2007 में बढ़कर साढ़े चार लाख हो गई। इसके बाद मनरेगा स्कीम आ गई। इस स्कीम के आने के बाद दूसरे राज्यों के श्रमिकों को अपने राज्य में ही काम मिलने लगा। पंजाब में वर्तमान में भी करीब चार से पांच लाख लेबर कृषि में काम कर रही है। यह लेबर सारा साल रहती है। अपने गांवों में यह तभी लौटते हैं, जब परिवार में कोई शादी, दुर्घटना, बीमारी या बड़ा त्योहार हो।