यूटी इंप्लाइज हाउसिंग सोसायटी ने सीएचबी के फैसले का किया विरोध
चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) पंजाब और हरियाणा के इंप्लाइज के लिए मकान बनाने की तैयारी में है।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : अपने इंप्लाइज को पैसे लेने के बाद भी मकान नहीं दिए जा रहे हैं। वे किराये के मकानों में रहने को मजबूर हैं। वहीं, दूसरी ओर चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीएचबी) पंजाब और हरियाणा के इंप्लाइज के लिए मकान बनाने की तैयारी में है। यूटी इंप्लाइज हाउसिंग सोसायटी ने सीएचबी के इस फैसले का कड़ा विरोध किया है। सोसायटी के जनरल सेक्रेटरी डॉ. धर्मेद्र ने फैसले को गलत बताया।
उन्होंने कहा कि यूटी के अपने 4 हजार इंप्लाइज 10 सालों से मकान मिलने का इंतजार कर रहे हैं। यह तो तब है, जब वह मकानों के लिए करोड़ों रुपये सीएचबी को एडवांस में जमा करा चुके थे। डॉ. धर्मेद्र ने कहा कि अगर यूटी प्रशासन अपने इंप्लाइज को मकान देने से पहले पंजाब और हरियाणा को तरजीह देता है, तो वह इसका सड़क से राजभवन तक विरोध करेंगे।
दरअसल सीएचबी ने आइटी पार्क स्थित जमीन पर पंजाब और हरियाणा के इंप्लाइज के लिए मकान बनाने का प्रस्ताव तैयार किया है। यह प्रस्ताव पंजाब और हरियाणा सरकार के सामने रखा गया है। अगर दोनों सरकारों से मंजूरी मिलती है, तो सीएचबी उनसे पैसे लेकर उन्हें मकान बनाकर देगा। करीब 7.5 एकड़ की साइट पर यह मकान बनाए जाएंगे। सीएचबी को यह 123 एकड़ जमीन पाश्र्र्वनाथ डेवलपर्स से वापस मिली थी। जिसको 13 अलग-अलग साइट में बांटकर सीएचबी ने कई बार ऑक्शन के जरिये बेचने की कोशिश की। लेकिन इस जमीन के लिए कोई भी खरीदार सीएचबी को नहीं मिल पाया। सिर्फ एक पेट्रोल पंप की साइट ही इंडियन ऑयल ने खरीदी है। जबकि एक साइट को सीएचबी खुद डेवलप करेगा। इसके लिए कंसलटेंट भी नियुक्त किया गया है। कर्मचारियों ने 57 लाख एडवांस करवाए थे जमा
चंडीगढ़ में जमीन सीमित है। इंफ्रास्ट्रक्चर और बड़े प्रोजेक्ट के लिए जमीन नहीं बची है। 2900 में से करीब 700 एकड़ जमीन ही खाली बची है। यूटी प्रशासन ने 61.5 एकड़ जमीन पर चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड को इंप्लाइज सेल्फ फायनेंसिंग हाउसिंग स्कीम के लिए अलॉट की थी। प्रशासन के विभिन्न डिपार्टमेंट्स में कार्यरत 7 हजार इंप्लाइज ने इस स्कीम के लिए आवेदन किया था। नवंबर 2010 में हुए ड्रॉ में 3930 इंप्लाइज के नाम फाइनल हुए थे। जिसके बाद सीएचबी ने सेक्टर-53 में इस स्कीम के लिए जमीन अलॉट की थी। इतना ही नहीं, बोर्ड ने फ्लैट रेट का 25 प्रतिशत करीब 57 लाख रुपये अलॉटियों से जमा भी करवा लिया था लेकिन 2012 में प्रशासन इस स्कीम के लिए जमीन देने में असमर्थता जता दी। इसके बाद लैंड इक्वीजेशन में भी बदलाव हो गया।