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न्यायपालिका के खिलाफ वीडियो बना इंटरनेट मीडिया में अपलोड करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं : हाई कोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले में स्पष्ट किया कि न्यायालय या जजों के खिलाफ वीडियो बनाकर उसे इंटरनेट मीडिया पर अपलोड करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। एक कर्मचारी ने वीडियो बनाकर इंटरनेट पर डाली थी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 10:03 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 10:03 AM (IST)
न्यायपालिका के खिलाफ वीडियो बना इंटरनेट मीडिया में अपलोड करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं : हाई कोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट की सांकेतिक फोटो।

जेएनएन, चंडीगढ़। जिला अदालत बुढलाडा (मानसा) के एक कर्मचारी हरमीत सिंह की ओर से जजों और न्यायपालिका के खिलाफ वीडियो बनाकर उसे इंटरनेट मीडिया में अपलोड करने के एक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसी गतिविधि को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं माना जा सकता है। हाई कोर्ट ने कर्मचारी के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। जिस पर कर्मचारी ने कहा कि वह इसके लिए दोषी नहीं है और ट्रायल के लिए तैयार है।

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जस्टिस जसवंत सिंह एवं जस्टिस संत प्रकाश की खंडपीठ ने कहा कि आरोपित को अपना बचाव करने और अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही आरोप लगाने वालों को भी आरोप साबित करने का अवसर दिया जाएगा। लिहाजा हाई कोर्ट ने इस केस की फाइल हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को भेजते हुए एविडेंस रिकॉर्ड करने के आदेश दिए हैं। वहीं, आरोपित कर्मचारी हरमीत सिंह पर आरोप लगाने वाले पक्ष को चार मार्च को रजिस्ट्रार (विजिलेंस) के समक्ष पेश होने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई छह जुलाई तक स्थगित कर दी है।

बता दें कि जजों और न्यायपालिका के खिलाफ वीडियो बनाकर उसे इंटरनेट मीडिया में अपलोड करने वाले हरमीत सिंह के खिलाफ मानसा की एक कोर्ट की ओर से हाई कोर्ट को पत्र लिखा गया था जिसके बाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लेकर केस शुरू किया था। इस पूरे मामले में हाई कोर्ट को सहयोग देने के लिए नियुक्त कोर्ट मित्र ने भी कहा है कि प्रथम दृष्टया आरोपित कर्मचारी ने इस तरह के वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर अपलोड कर सीधे तौर पर न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को आहत करने का प्रयास किया है।

उधर, आरोपित कर्मचारी की ओर से एडवोकेट आरएस बैंस ने कहा कि यू-ट्यूब पर वीडियो अपलोड किए जाने को पब्लिक पब्लिकेशन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि इसकी पहुंच कुछ लोगों तक ही है। वैसे भी कर्मचारी के खिलाफ पहले ही कार्रवाई कर उसकी चार इंक्रीमेंट रोकी जा चुकी हैं। इंक्रीमेंट रोके जाने के खिलाफ कर्मचारी की अपील अब भी एडमिनिस्ट्रेटिव जज के समक्ष लंबित है।


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