पंजाब के मामले में हाई कोर्ट का फैसला-दुष्कर्म के आरोपित व पीडि़ता की शादी के बाद ट्रायल गलत
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि दुष्कर्म के मामले में आरोपित व पीडि़त में समझौता हो जाता है और वे शादी कर लेते हैं ताे इस मामले में ट्रायल जारी रखने का कोई मतलब नहीं।
चंडीगढ़, [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि दुष्कर्म के मामले में अगर आरोपित ने समझौता कर पीडि़ता से शादी कर ली है और दर्ज केस में आरोप तय करना असंभव है तो एफआइआर रद की जा सकती है। मामले में ट्रायल जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
महत्वपूर्ण फैसला: आरोपित व पीडि़ता के शादी करने के आधार पर दर्ज एफआइआर की रद
जस्टिस हरिपाल वर्मा ने दुष्कर्म मामले में दर्ज एफआइआर खारिज करते हुए ये आदेश पारित किए हैं, क्योंकि आरोपित और पीडि़ता ने बाद में समझौता कर लिया था और पति-पत्नी के रूप में रहना शुरू कर दिया था। जस्टिस वर्मा ने कहा कि हाई कोर्ट के पास यह विषय खुला है कि ऐसे मामलों में अपराध का समावेश क्या है और अभियोजन एजेंसियों के पास क्या पर्याप्त साक्ष्य हैं। इस तरह की एफआइआर में ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही जारी रखना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इससे न सिर्फ समय की बर्बादी होगी, बल्कि ट्रायल कोर्ट के कामकाज पर भी अनावश्यक बोझ पड़ेगा।
एफआइआर रद कराने के लिए आरोपित पहुंचा था हाई कोर्ट
पंजाब के जिला होशियारपुर के एक निवासी पर लड़की से दुष्कर्म करने का मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि शादी का झांसा देकर दुष्कर्म किया गया। बाद में लड़की ने पाया कि आरोपित शादीशुदा था और उसने पत्नी से तलाक नहीं लिया था। एफआइआर दर्ज होने के बाद आरोपित ने पत्नी से तलाक लेकर शिकायतकर्ता से शादी कर ली।
इसके बाद शिकायतकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक बयान भी दिया कि वह आरोपित पर मुकदमा चलाने की इच्छुक नहीं है, क्योंकि दोनों ने शादी कर ली है और साथ रह रहे हैं। इसके बाद आरोपित ने दुष्कर्म के मामले में दर्ज एफआइआर रद करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
राज्य सरकार ने जताया कड़ा विरोध
राज्य सरकार ने इस आधार पर याचिका का कड़ा विरोध किया कि जघन्य और गंभीर अपराध, जिसमें हत्या, दुष्कर्म, डकैती आदि शामिल हैं, में हाई कोर्ट को शक्ति का प्रयोग कर एफआइआर की जांच रोकने या रद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ऐसे मामले समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
कोर्ट ने कहा-पति को दोषी ठहराने की संभावना धूमिल
सभी पक्षों को सुनने और रिकार्ड की जांच करने के बाद हाई कोर्ट ने माना कि मामले में पति को दोषी ठहराने की संभावना काफी धूमिल है, क्योंकि पीडि़त की ओर से अभियोजन को समर्थन करने की संभावना नहीं है। निचली अदालत में उसके बयान से पहले ही स्थिति स्पष्ट है।
जस्टिस वर्मा ने कहा कि जब दोनों ने शादी कर ली है और पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं तो यह मामला जघन्य और गंभीर अपराध का नहीं माना जा सकता। न्याय के लिए हाई कोर्ट धारा 482 सीआरपीसी के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग कर ऐसे मामलों की एफआइआर रद कर सकता है, क्योंकि वर्तमान स्थिति में ट्रायल कोर्ट के समक्ष कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का पूर्ण दुरुपयोग होगा।
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