अभिनेता यशपाल ने साझा किए संघर्ष के दिन, बोले- हजार कमाने की चाहत थी पर फिल्मों में लाखों मिले
बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता यशपाल शुक्रवार को थिएटर फॉर थिएटर की ओर से आयोजित विंटर थिएटर फेस्टिवल में आम लोगों से रूबरू हुए।
चंडीगढ़, जेएनएन। गांव में रामलीला में अभिनय करता था। वहां से अभिनय की दुनिया इतनी छोटी ही लगती थी। मगर जब फिल्मों से ऑफर आने लगे तो दुनिया बदल गई। मुझे याद है लगान फिल्म। जिसके ऑडिशन में पास हो गया। मुझे लगा कुछ हजार रुपये मिल जाएंगे, पता चला कि किरदार निभाने के दो लाख मिलेंगे। ये वो समय था, जब मेरे पांव के नीचे से जमीन पूरी खिसक चुकी थी। शायद दिमाग भी, इसलिए दो की जगह ढाई बोल आया था। पर उन्होंने मान लिया और मुझे फिल्म में किरदार मिला। एक्टर यशपाल कुछ इसी अंदाज में लगान के किरदार को याद करते हैं। शुक्रवार को वह थिएटर फॉर थिएटर की ओर से आयोजित विंटर थिएटर फेस्टिवल में रूबरू सेशन में पहुंचे थे।
बाल भवन-23 में आयोजित इस रूबरू में उनके साथ टीएफटी के निदेशक सुदेश शर्मा ने भी बातचीत की। यशपाल ने कहा कि हरियाणा के हिसार में उनका जन्म हुआ। मध्यवर्गीय परिवार का होने के कारण छोटी उम्र में ही कई ऐसी नौकरी करनी पड़ी जिसकी वजह से पढ़ाई ज्यादा नहीं कर पाए। कभी पंक्चर की दुकान तो कभी आटा चक्की की दुकान। फिर भी दिल में एक्टिंग को लेकर प्यार था। ऐसे में रामलीला में निरंतर हिस्सा लेता रहा। दिल्ली में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया तो दुनिया बदल गई। वहां से रंगमंच की गहराइयों को जाना। इसके बाद कई वर्ष तक संघर्ष किया। वर्ष 1998 में गोविंद निहलानी की फिल्म हजार चौरासी की मां में एक छोटा किरदार मिला। इसके बाद लगातार फिल्मों के ऑफर आने लगे।
संतुष्टि होने पर ही निभाता हूं किरदार
यशपाल ने कहा कि फिल्मों में भी वह रंगमंच की तरह आत्मसंतुष्टि चाहते हैं। इसी वजह से ज्यादा किरदार नहीं कर पाते। आजकल फिल्मों का कॉमर्शियल लेवल इतना बढ़ जाता है कि आप अभिनय के आनंद से चूक जाते हैं। इसी कारण उन्होंने न जाने कितने ऑफर ठुकरा दिए। एक ऑफर तो ऐसा भी रहा कि जिसमें पांच करोड़ रुपये मिलने थे, मगर प्रोड्यूसर की शर्त थी कि उसका बेटा उस प्रोजेक्ट में चमके। मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने ठुकरा दिया। यशपाल ने कहा कि एनएसडी से पास होने के बाद हरियाणा के गांवों में जाकर बच्चों को रंगमंच सिखाना मुझे पसंद आया। उन्होंने कहा कि आगामी फिल्म मशहूर सांगी और रागनी लेखक दादा लख्मी चंद पर कर रहा हूं। उम्मीद है इससे हरियाणा की संस्कृति दिखा सकूंगा।
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