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इस बार श्राद्ध के बाद नहीं आएंगे नवरात्र, अधिकमास के कारण करना होगा एक माह इंतजार, 30 दिन न करें शुभ कार्य

इस वर्ष श्राद्ध के तत्काल बाद शारदीय नवरात्र नहीं आएंगे बल्कि इसके लिए एक माह का इंतजार करना होगा। यह अधिकमास आने के कारण हो रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2020 03:53 PM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2020 03:53 PM (IST)
इस बार श्राद्ध के बाद नहीं आएंगे नवरात्र, अधिकमास के कारण करना होगा एक माह इंतजार, 30 दिन न करें शुभ कार्य
इस बार श्राद्ध के बाद नहीं आएंगे नवरात्र, अधिकमास के कारण करना होगा एक माह इंतजार, 30 दिन न करें शुभ कार्य

चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। श्राद्ध के तुरंत के बाद इस बार शारदीय नवरात्र शुरू नहीं होंगे, बल्कि उसके लिए एक महीने का इंतजार करना होगा। अधिकमास होने के कारण श्राद्ध खत्म होने के बाद नवरात्र के लिए एक महीने रूकना होगा। उल्लेखनीय है कि इस बार 2 से 17 सितंबर तक श्राद्ध है, जबकि नवरात्र के लिए कलश स्थापना 17 अक्तूबर को होगी।

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भगवान विष्णु की पूजा करना श्रेयस्कर

डेरा बाबा लाल दयाल संस्कृत महाविद्यालय सेक्टर-35 चंडीगढ़ के पूर्व प्राचार्य आचार्य डॉ. नंद किशोर शर्मा का कहना है कि श्राद्ध खत्म होने के बाद इस बार नवरात्र के लिए एक महीने का इंतजार करना पड़ेगा। इस महीने को लेकर अलग-अलग नियम भी हैं, जिसका पालन सभी को करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मान्यता है कि भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा में निवास करते हैंं। इस समय में ब्रह्मांड की सकारात्मक शक्तियों को बल पहुंचाने के लिए व्रत पूजन और अनुष्ठान किए जाते हैंं। इस समय में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

आचार्य डॉ. नंदकिशोर शर्मा।

संस्कार वर्जित, निष्काम के लिए बेहतरीन समय

अधिकमास 18 सितंबर से शुरू होकर 16 अक्तूबर तक चलेगा। जिसमें संस्कार वर्जित माने जाते हैंं। इस समय के दौरान विवाह करना, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे कार्य नहीं होते, जबकि निष्काम भावना से होने वाले कर्म जिसमें पाठ, हवन और परोपकार बेहतरी माने गए हैंं। इस महीने में जो भी पूजा-पाठ किया जाता है उसका फल आम दिनों में किए गए कर्म से ज्यादा मिलता है।

क्या होता है अधिकमास

लीप ईयर में अधिकमास का संयोग 160 साल के बाद बना है। वैसे अधिकमास हर तीन वर्ष में आता है। दरअसल, सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे की होती है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों के बीच का अंतर लगभग 11 दिन होता है। यह अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन वर्ष में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है। इसे ही अधिकमास कहते हैं।

पंडित राकेश पाल मोदगिल।

अधिकमास के पीछे ये भी है मान्यता

पंडित राकेश पाल मोदगिल का कहना है कि अधिकमास का जन्म भगवान नरसिंह भगवान के जन्म या उत्पति के रूप में भी माना जाता है। हिरणकश्यप को वरदान था कि वह दिन, रात, 12 महीनों में नहीं मरेगा। इसके अलावा घर के अंदर और बाहर भी उसे मारना संभव नहीं। जमीन और आसमान पर भी उसकी मौत नहीं हो सकती थी। उसे लोहे या लकड़ी के हथियार से भी नहीं मारा जा सकता था। उस समय भगवान विष्णु ने नरसिंह का रूप धारण किया था और आधा शरीर शेर और आधा मनुष्य बनकर हिरणकश्यप को घुटने पर रखकर नाखूनों से मारा था। वरदान के अनुसार भगवान विष्णु धरती पर आए थे और उसी समय से अधिकमास का जन्म हुआ। इसे भगवान की पूजा-अर्चना और निष्काम कर्म के लिए शुभ और फलदायी माना गया है।


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