इस बार सूना पड़ा ब्लाइंट इंस्टीट्यूट, हर बार दिवाली पर बिकती थीं दो से तीन लाख रुपये की मोमबत्तियां
कोरोना महामारी का असर जहां हर कारोबार पर पड़ा है। वहीं ब्लाइंड इंस्टीट्यूट सेक्टर-26 भी इससे अछूता नहीं है। इंस्टीट्यूट के बच्चे दीपावली के लिए मोमबत्तियों बनाकर लोगों के घरों को रोशन करते थे लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं हो पाया है।
चंडीगढ़, सुमेश ठाकुर। कोरोना महामारी का असर जहां हर कारोबार पर पड़ा है। वहीं, ब्लाइंड इंस्टीट्यूट सेक्टर-26 भी इससे अछूता नहीं है। इंस्टीट्यूट के बच्चे दीपावली के लिए मोमबत्तियों बनाकर लोगों के घरों को रोशन करते थे, लेकिन इस बार ऐसा संभव नहीं हो पाया है। इंस्टीट्यूट के टीचर्स के जुबान पर यही एक बात है कि इस बार हम करें क्या?
त्योहारों से पहले ब्लाइंट इंस्टीट्यूट में बच्चों की खूब चहल-पहल होती थी, वह इस बार पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। क्योंकि इंस्टीट्यूट के सभी स्टूडेंट्स कोरोना के चलते अपने-अपने घर में हैं। ऐसे में संस्थान में दिवाली के लिए मोमबत्तियों का निर्माण भी नहीं हो पाया है। लाखों की गिनती में बच्चे तैयार करते थे मोमबत्तियां ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में हर साल दिवाली को लेकर मोमबत्तियों बनाई जाती थीं।
इस काम को इंस्टीट्यूट का स्टाफ करता था और स्टूडेंट्स मोमबत्ती में धागा डालना और पैकिंग करते थे, जिससे काम आसानी से हो जाता था। इंस्टींट्यूट में हर साल दो से तीन लाख रुपये की मोमबत्ती की प्रोड्क्शन होती थी। जो इस बार शून्य है। रावण का पुतला बनाने का होता था क्रेज इंस्टीट्यूट के म्यूजिक टीचर राकेश शर्मा ने बताया कि दशहरा को लेकर सबसे ज्यादा क्रेज रावण के पुतले को बनाने का होता था।
कारीगरों के साथ मिलकर स्टूडेंट्स खुद पुतले को तैयार करते थे। इसके अलावा बच्चे रावण के डायलॉग बोलने से लेकर मंचन का भी प्रयास करते थे। इस बार स्टूडेंट्स के न होने से जहां पर सूनापन है वहीं इंस्टीट्यूट को आर्थिक नुकसान भी हो रहा है।