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पंजाब में तीसरे फ्रंट की कवायद फिर शुरू, ढींढसा पिता-पुत्र के SAD से निष्‍कासन के बाद नई हलचल

पंजाब में एक बार फिर तीसरे राजनीतिक मोर्चे की कवायद शुरू हो गई है। वरिष्‍ठ नेता सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके पुत्र को शिअद से निष्‍कासित करने के बाद यह हलचल तेज हो गई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 05 Feb 2020 10:02 AM (IST)Updated: Wed, 05 Feb 2020 11:15 PM (IST)
पंजाब में  तीसरे फ्रंट की कवायद फिर शुरू, ढींढसा पिता-पुत्र के SAD से निष्‍कासन के बाद नई हलचल
पंजाब में तीसरे फ्रंट की कवायद फिर शुरू, ढींढसा पिता-पुत्र के SAD से निष्‍कासन के बाद नई हलचल

चंडीगढ़, जेएनएन। पंजाब में एक बार फिर तीसरे राजन‍ीतिक मोर्चे की कवायद शुरू हो गई है। शिरोमणि अकाली दल से वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके विधायक बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा के निष्‍कासन के बाद तीसरे मोर्चे की हलचल तेज हो गई है। दोनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया है उससे राज्य की राजनीति में नए समीकरण की संभावना बन सकती है।

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राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सुखदेव ढींडसा प्रकाश सिंह बादल के बाद सबसे वरिष्ठ नेता थे। ऐसे में उनको शिअद से निकाले जाने के बाद कांग्रेस व अकाली दल से नाराज नेता एकजुट होने लगे हैं। इन नेताओं की सोच बताई जा रही है कि राज्य में तीसरा फ्रंट के गठन में का नेतृत्‍व कर सकते हैं।

पंजाब विधानसभा के चुनाव 2022 में होने हैैं। इसके लिए माहौल 8 फरवरी को दिल्ली में होने वाले चुनाव के नतीजे पर भी निर्भर करेगा। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यदि नतीजे आम आदमी पार्टी के पक्ष में आए तो निश्चित तौर पर पंजाब में बहुकोणीय मुकाबले होंगे। दिल्ली में अगर भाजपा सत्ता पर काबिज होती है तो तीन फ्रंट ही बनेंगे। कांग्रेस व शिअद-भाजपा गठबंधन को चुनौती देने वाले तीसरे फ्रंट में आम आदमी पार्टी भी शामिल हो सकती है।

शिरोमणि अकाली दल और भाजपा में बेशक हरियाणा के बाद दिल्ली में भी सीटों को लेकर आपस में कोई सहमति नहीं हुई, लेकिन अकाली दल ने सिख वोट बैंक को बिखराव से बचाने के लिए अपने सहयोगी दल भाजपा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। इस फैसले का सिख समुदाय पर कितना असर होता है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सिख बाहुल्य सीटों पर भाजपा को कितना वोट शेयर मिलता है। अगर इन सीटों पर वोट शेयर नहीं बढ़ा तो दोनों पार्टियों के रिश्तों में खटास बढ़ भी सकती है।

2017 के चुनाव में दस साल से लगातार सत्ता पर काबिज रहे शिअद-भाजपा गठबंधन को हार मिली। बेरोजगारी, किसानी संकट, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का मामला और ड्रग्स जैसी समस्याओं को लेकर गठबंधन इतनी बुरी तरह से घिरा कि उसके पास विपक्ष के आरोपों का कोई जवाब नहीं था। आम आदमी पार्टी ने विकल्प बनने की कोशिश की और उसे काफी सफलता भी मिल रही थी, लेकिन कई बड़ी गलतियों ने उसे सत्ता से दूर कर दिया। चुनाव में आप ने तीसरा फ्रंट बनने की सभी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।

पंजाब में आप की हालत ठीक नहीं

पंजाब में अब आप की भी हालत खराब है। उसके कई वरिष्ठ नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैैं या नाराज चल रहे हैैं। शिअद-भाजपा गठबंधन भी अभी उठ नहीं पा रहा है। कांग्रेस से लगाई उम्मीदें भी धूल धूसरित हो गई हैं। ऐसे में अब फिर से तीसरे फ्रंट की आवाजें उठने लगी हैं। इस कोशिश में जुटे नेता कह रहे हैैं कि नवजोत सिद्धू, लोक इंसाफ पार्टी के बैंस बंधु, अकाली दल टकसाली के बीर दविंदर और रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा सरीखे नेता अन्य नेताओं को एकजुट करने के लिए काम करें।


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