Move to Jagran APP

पंजाब कांग्रेस में बनने लगे अकाली दल जैसे हालात, बेअदबी मामलों पर पार्टी के भीतर ही फूटने लगा 'बम'

पंजाब कांग्रेस में ठीक वही हालात बन रहे हैं जो अकाली दल की सरकार के अंतिम वर्ष के दौरान बने थे। बेअदबी मामलों में ठोस कार्रवाई न होने से कई कांग्रेस नेता पार्टी के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Wed, 28 Apr 2021 09:35 AM (IST)Updated: Wed, 28 Apr 2021 12:58 PM (IST)
पंजाब कांग्रेस में बनने लगे अकाली दल जैसे हालात, बेअदबी मामलों पर पार्टी के भीतर ही फूटने लगा 'बम'
बेअदबी मामलों पर पंजाब कांग्रेस में घमासान। सांकेतिक फोटो

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। बेअदबी मामले में घटना को लेकर कोई ठोस कार्रवाई न होने से पंजाब कांग्रेस के लिए शिरोमणि अकाली दल जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। अब इस बात को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं कि लोगों का गुस्सा अब कांग्रेसियों के खिलाफ फूट सकता है। इसी कारण कांग्रेस नेता भी परेशान दिखाई दे रहे हैं। यह एक कारण है कि कांग्रेस के प्रदेश प्रधान और कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने सोमवार को इस मामले को लेकर अपने इस्तीफे दे दिए। हालांकि कैप्टन ने इस्तीफे स्वीकार नहीं किए।

loksabha election banner

ऐसे ही हालात बेअदबी मामलों में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले शिरोमणि अकाली दल के समक्ष पैदा हुए थे जब बेअदबी मामले में ठोस कार्रवाई न होने पर अकाली दल के नेताओं ने इस्तीफे देने शुरू कर दिए थे। चर्चा इस बात को लेकर भी हो रही है कि कोटकपूरा गोलीकांड में हाई कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह एसआइटी के वरिष्ठ सदस्य रहे कुंवर विजय प्रताप सिंह ने इस्तीफा दिया और मुख्यमंत्री के मनाने के बावजूद वह नहीं माने। तो क्या सुनील जाखड़ और सुखजिंदर रंधावा भी अपने फैसले पर अडिग रहेंगे।

बेअदबी मामलों को लेकर जिस तरह से अकाली दल के बड़े नेता रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां, सुखदेव सिंह ढींडसा और पूर्व वित्त मंत्री व विधायक पर¨मदर सिंह ढींडसा जैसे नेता शिअद छोड़कर बाहर चले गए उसी तरह के हालात कांग्रेस में बनते जा रहे हैं। हालांकि कैप्टन ने जाखड़ और रंधावा का इस्तीफा नामंजूर कर दिया है लेकिन साफ है कि कांग्रेस में इस मुद्दे को लेकर चिंगारी भड़क उठी है और आने वाले दिनों में स्थिति और बिगड़ सकती है।

बता दें कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर 2018 में सिख संगठनों के धरने को उठाने के बाद ग्रामीण विकास मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने की टिप्पणी थी कि अगर हमने इस मामले में पीडि़तों को न्याय न दिलाया तो हमारी स्थिति शिरोमणि अकाली दल से भी ज्यादा बुरी होगी। तीन साल बाद जब सोमवार को कैबिनेट मंत्रियों व पंजाब कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ के साथ मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बैठक कर रहे थे तो यहां हुई तल्खी ने अब बाजवा की टिप्पणी को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है।

मंत्रियों और विधायकों में इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई न होने को लेकर डर बढ़ रहा है। उन्हें लगने लगा है कि जो हाल 2017 में शिरोमणि अकाली दल का हुआ था वही हाल अगले साल कांग्रेस का न हो जाए। काबिले गौर है कि जब जुलाई 2015 में फरीदकोट के गांव बुर्ज जवाहर सिंह में गुरु ग्रंथ साहिब का पावन स्वरूप चोरी हुआ तो तत्कालीन शिअद-भाजपा गठबंधन सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिन बाद पावन स्वरूप के अंग फाड़कर गली में फेंक दिए गए, जिस कारण सिख समाज में भारी रोष व्याप्त हो गया। ऐसा करने वालों ने पावन स्वरूप को चोरी करने के बाद जगह जगह पोस्टर भी चिपकाए, तो भी पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।

इसके रोष स्वरूप सिख संगत ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए धरना लगा दिया जो दो महीने तक चला लेकिन इसके बावजूद अकाली भाजपा सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। इसके बाद जब कोटकपूरा और बहिबल कलां में धरना दे रहे लोगों को हटाया जा रहा था तो गोलीकांड हुआ। बहिबल कलां में दो युवाओं की मौत हो गई। कांग्रेस ने इसे चुनाव से पहले मुद्दा बनाया और आरोपियों को सलाखों के पीछे करने का अहद किया। पूरा चुनाव प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल को टारगेट करके लड़ा गया। लोगों ने भी अपना गुस्सा निकाला और दस साल से सत्ता पर काबिज रहा अकाली दल प्रमुख विपक्षी पार्टी बनने योग्य भी नहीं रहा। परंतु अब पंजाब सरकार के सवा चार वर्ष का कार्यकाल बीत जाने के बावजूद इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.