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शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के प्रत्याशी सिमरनजीत सिंह मान की जीत कई मायनों में AAP सरकार के लिए सबक

संगरूर लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाले सिमरनजीत सिंह मान की छवि अलगाववादी की रही है लेकिन यह आशा की जानी चाहिए कि वह जनसमर्थन को सकारात्मक रूप से लेंगे और अपनी बात को संविधान के दायरे में रहकर संसद में रखेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 27 Jun 2022 02:06 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jun 2022 02:48 PM (IST)
शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के प्रत्याशी सिमरनजीत सिंह मान की जीत कई मायनों में AAP सरकार के लिए सबक
संगरूर लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाले सिमरनजीत सिंह मान

चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। संगरूर लोकसभा उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के प्रत्याशी सिमरनजीत सिंह मान की जीत कई मायनों में आम आदमी पार्टी की सरकार के लिए सबक की तरह है। पंजाब में तीन माह पूर्व जनता ने लगभग तीन चौथाई सीटें देकर आम आदमी पार्टी को प्रदेश की सत्ता सौंपी। जनता को सरकार से बहुत अपेक्षाएं हैं, लेकिन विगत तीन माह में जिस प्रकार से सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर असफल साबित हुई है, उससे कहीं न कहीं लोग निराश और रुष्ट हैं। इसके अतिरिक्त सरकार ने जो वादे किए थे, उन पर भी वह पूरी तरह खरी नहीं उतरी है। बात चाहे मुफ्त बिजली की हो, स्वास्थ्य सुविधाओं की हो अथवा महिलाओं को प्रति माह एक हजार रुपये देने की हो.. सरकार किसी भी वादे पर अमल नहीं कर सकी है। इसके अतिरिक्त जिस मालवा क्षेत्र से लगभग पूरी की पूरी सीटें पार्टी को मिलीं, उसी क्षेत्र में नशे की स्थिति भयावह है।

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सरकार बनने के बाद नशे पर शिकंजा कसना तो दूर की बात है, इसके कारण युवाओं की मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। नि:संदेह यह प्रदेश सरकार की आंखें खोलने वाली पराजय होनी चाहिए। यह हार आम आदमी पार्टी को इसलिए भी चुभने वाली है, क्योंकि लोकसभा में एकमात्र यही सीट पार्टी के पास थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान लगातार दो बार इस सीट से जीत चुके थे। इसी क्षेत्र से वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा और शिक्षा मंत्री गुरमीत मीत हेयर भी आते हैं। कुल मिलाकर संगरूर लोकसभा क्षेत्र को आम आदमी पार्टी का गढ़ कहा जाता था। हालांकि इस हार को पूरे प्रदेश में पार्टी या सरकार के खिलाफ जनादेश नहीं माना जा सकता, लेकिन अपने ही गढ़ में मिली हार पार्टी के लिए बड़ा झटका जरूर है।

पार्टी को इसकी समीक्षा अवश्य करनी चाहिए और उन कारणों की तलाश करनी चाहिए, जिसके चलते पूर्ण बहुमत से सरकार बनवाने के बाद इतनी जल्दी जनता का उससे मोहभंग होता दिखाई दे रहा है। इस सीट पर काफी पीछे छूट गए शिरोमणि अकाली दल व कांग्रेस को भी आत्ममंथन करने की आवश्यकता है कि आखिर उनका प्रदर्शन इतना कमजोर क्यों रहा। यहां जीत दर्ज करने वाले सिमरनजीत सिंह मान की छवि अलगाववादी की रही है, लेकिन यह आशा की जानी चाहिए कि वह जनसमर्थन को सकारात्मक रूप से लेंगे और अपनी बात को संविधान के दायरे में रहकर संसद में रखेंगे।


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