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शहर के बेहतर स्पो‌र्ट्स इंफ्रास्टक्चर का सच, एक भी बेलोड्रम नहीं

मेडल तालिका में चंडीगढ़ के खिलाड़ी जरूर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 06 Oct 2019 04:55 PM (IST)Updated: Sun, 06 Oct 2019 04:55 PM (IST)
शहर के बेहतर स्पो‌र्ट्स इंफ्रास्टक्चर का सच, एक भी बेलोड्रम नहीं
शहर के बेहतर स्पो‌र्ट्स इंफ्रास्टक्चर का सच, एक भी बेलोड्रम नहीं

विकास शर्मा, चंडीगढ़ : खेल चाहे कोई भी हो लेकिन मेडल तालिका में चंडीगढ़ के खिलाड़ी जरूर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। शहर में बेहतर स्पो‌र्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर है, इसी इंफ्रास्ट्रक्चर की दुहाई देकर हाल में यूटीसीए ने बीसीसीआइ से मान्यता प्राप्त की है। यूटी स्पो‌र्ट्स डिपार्टमेंट भी पिछले कई साल से तीन खेल एकेडमीज चला रहा है। बावजूद इसके साइकिलिग के प्रति यूटी स्पो‌र्ट्स डिपार्टमेंट और पंजाब यूनिवर्सिटी का उदासीन रवैया रहा है। शहर में सैकड़ों प्रोफेशनल साइकिलिस्ट हैं लेकिन एक भी बेलोड्रम नहीं है। ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में सात से ज्यादा मेडल जीत चुके हरजीत सिंह पन्नू बताते हैं कि साइकिलिग कैसे अन्य खेलों से पिछड़ गई। साइकिलिग को प्रमोट करने के लिए जमीन स्तर पर करना होगा काम

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पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू बताते हैं कि साइकिलिग को प्रमोट करने के लिए जमीन स्तर पर काम करना होगा। हर मां-बाप अपने बच्चे को बचपन में ही साइकिल लेकर देते हैं, बच्चे भी बड़े शौक से साइकिलिग सीखते हैं। बावजूद इसके वह साइकिल पर स्कूल नहीं जाते, बाजार नहीं जाते। दिन के समय साइकिलिग करने से डरते हैं। परिजनों को डर लगता है टूटी सड़कों का, तेज रफ्तार वाहनों का, अव्यवस्थित ट्रैफिक का। यही वजह है कि लोग साइकिलिग करने से डरते हैं। आज से 20 साल पहले देखें तो ज्यादातर बच्चे साइकिल पर ही स्कूल जाते थे। यह कल्चर अब खत्म हो गया है। पंजाब में मात्र चार बेलोड्रम हैं, इनमें एनआइएस पटियाला, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना में और गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर में। अगर ज्यादा बेलोड्रम होंगे तो उसमें खेल प्रतियोगिताएं होंगी जिससे यकीनन साइकिलिग करने वालों का उत्साह बढ़ेगा। साइकिल पर खत्म हो कस्टम ड्यूटी

हरजीत कहते हैं साइकिल पर कस्टम ड्यूटी खत्म होनी चाहिए। किसी भी अच्छे टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए साइकिलिस्ट को चार से छह लाख रुपये की साइकिल चाहिए होती है। प्रोफेशनल साइकिलों का हमारे देश में निर्माण नहीं होता है। ऐसे में डीलर्स के माध्यम से खिलाड़ियों को यह साइकिलें विदेशों से मंगवानी पड़ती हैं। दिक्कत यह है कि अगर खिलाड़ी दो लाख रुपये की साइकिल विदेश से मंगवाता है तो उस पर पचास हजार की कस्टम ड्यूटी लग जाती है। ऐसे में कई प्रतिभावान खिलाड़ी इस खेल को बीच में ही छोड़ देते हैं। साइकिल पर सरकार को भी अनुदान देना चाहिए। साइकिलिंग खिलाड़ियों को नहीं मिलते स्पांसर

साइकिलिस्ट हरजीत सिंह पन्नू ने बताया कि किसी भी खेल को प्रमोट करने के लिए स्पासर होना बेहद जरूरी है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि क्रिकेट के सिवाय अन्य सभी खेलों की अनदेखी की जाती है। आइपीएल की तर्ज पर कुछ खेलों के लीग मुकाबले शुरू होने से उनके स्तर में सुधार हुआ है। स्थानीय स्तर पर अगर खेलों को प्रोत्साहन मिले तो खेल के स्तर में सुधार होता है। क्रिकेट के टूर्नामेंट आपको हर गांव में होते हुए दिखाई देंगे लेकिन साइकिलिग के प्रति लोग उतना उत्साह नहीं दिखाते। स्पांसर मिलेंगे तो यकीन इस खेल के स्तर में सुधार होगा।


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