जो घर में सुनता था, उसे करने का जुनून बचपन से था
हिमाचल प्रदेश की पालमपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था।
सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़ : इंजीनियरिग करने के लिए हिमाचल प्रदेश की पालमपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था। मुझे प्रेक्टिकल का बहुत ज्यादा शौक था। मैं घर में भी जो बात सुनता था, उसे करने का जुनून मेरे अंदर बचपन से ही था। जब यूनिवर्सिटी गया तो जो पढ़ाया जाता था, उसे मैं प्रेक्टिकल के तौर पर करना चाहता था। यह अनुभव पंजाब यूनिवर्सिटी के हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के चीफ इंजीनियर अनिल ठाकुर ने दैनिक जागरण संवाददाता से साझे किए। अनिल ने बताया कि क्लास में जो हमें पढ़ाया जाता था, उसे मैं अकेले नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने सबसे पहले यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को लीड करना शुरू कर दिया। जब मुझे लगा कि सभी मेरी बात को मानते हैं तो मैंने उन्हें अपने साथ प्रेक्टिकल करना भी आरंभ कर दिया। यूनिवर्सिटी के आसपास करीब 25 गांवों में हम काम करने लगे। सबसे पहले हमने पौधे लगाने शुरू किए। उसके बाद वहां पर स्थानीय फसलों पर भी हमने काम करना शुरू कर दिया। इस काम के दौरान हमें पता चलता था कि हमने ठीक क्या किया और क्या गलती की। जिसका फायदा हमें यह मिला कि जो अनुभव हमें नौकरी से मिलना था, वह पढ़ाई के दौरान ही मिल गया। जब नौकरी के लिए मैंने इंटरव्यू दिया तो हर कोई हैरान था कि मुझे प्रेक्टिकल नॉलेज कैसे है। उसके आधार पर मैंने पहले हिमाचल प्रदेश में दो स्थानों पर सरकारी नौकरी की और वहां से मैं पंजाब यूनिवर्सिटी में भी आसानी से नियुक्त हो गया। केमिकल दवाइयों से ज्यादा देसी तरीकों से करता हूं काम
इंजीनियर अनिल ने बताया कि मैंने पढ़ाई के दौरान जो प्रेक्टिकल किए, उसमें देसी तरीके इस्तेमाल किए जाते थे क्योंकि पढ़ाई के दौरान केमिकल दवाइयों को खरीदने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। इसके अलावा वहां के स्थानीय लोगों ने भी हमें देसी तरीके बताए। आज जब मैं नौकरी में हूं तो उन्हीं देसी तकनीकों से प्रकृति को बचाने का काम करता हूं। इससे मुझे संतुष्टि है कि मैं पर्यावरण बचाने के लिए अहम योगदान दे रहा हूं।