..रंगों ने फिर से सिखाया जीना
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : आर्थिक तंगी, पेरालाइज्ड शरीर, ऐसी ही कई दिक्कतें, जिन्हें पार करके
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : आर्थिक तंगी, पेरालाइज्ड शरीर, ऐसी ही कई दिक्कतें, जिन्हें पार करके दोबारा खुद को कैनवास से जोड़ लिया। इस कैनवास पर केवल चित्र नहीं, जिंदगी को भी पेट किया है। अम¨रदर सिंह कंग कुछ इसी अंदाज में अपनी पेंटिंग पर बात करते हैं। मंगलवार को उनकी पेंटिंग की प्रदर्शनी पंजाब यूनिवर्सिटी के म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्स में प्रदर्शित की गई। अम¨रदर ने प्रदर्शनी में पोट्रेट, पंजाब के गांव और गलियों की जिंदगी को दर्शाया है। बोले कि मेरे लिए पेंटिंग से जुड़ना एक सपने का सच होने जैसा रहा। दरअसल मेरा जन्म भारत की आजादी के कुछ महीनों बाद हुआ। पटियाला में रहता था, 1965 में चंडीगढ़ आ बसे। यहां रंगों के बारे में पहली बार जाना। मगर घर में आर्थिक तंगी थी, ऐसे में पेंटिंग से जुड़ा सामान नहीं खरीद पाया। वर्ष 1966 में भाई ने शादी की, तो उन्होंने गिफ्ट में मुझे पेंटिंग का सामान दिया। मैं खुश था। मैंने पेंटिंग में अपने ही तरीके निकाले। एक दिन, मुझे सड़क पर लगी लुक से भी प्रेरणा मिली, जिसको मैंने अपना मनपसंद मीडियम बनाया। रिटायरमेट के बाद पेरालाइज होने के बावजूद शुरू की पेंटिंग
कंग ने कहा कि उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के बाद नौकरी शुरू की। मगर पेंटिंग का कार्य धीरे-धीरे आगे बढ़ाता रहा। मगर 1974 में ये कार्य धीमा पड़ गया। वर्ष 2005 में रिटायरमेट हुई तो दोबारा पेंटिंग से जुड़ना चाहा। मेरी बेटी ने मुझे पेंटिंग से जुड़ा सामान गिफ्ट किया। मगर तभी मुझे स्ट्रोक आया और मैं पेरालाइज्ड हो गया। मगर डॉक्टर ने मुझे कहा था कि मुझे निरंतर अपनी बॉडी से काम लेना होगा। ऐसे में मैंने बड़ी कोशिश कर पेंटिंग दोबारा शुरू की। 2017 में मैंने इसमें कामयाबी पाई। हालांकि अभी भी सही तरीके से चल नहीं पाता, मगर आज भी खुद को रंगों का आभारी समझता हूं, जिसने मुझे जीना सिखाया।