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तीसरे प्रयास में लोस पहुंचे सुनील, पिता बलराम जाखड़ की विरासत संभालने की चुनौती

सुनील जाखड़ को लोकसभा में पहुंचने का सपना तीसरे प्रयास मेंं पूरा हुआ है। उनके लिए अब पिता बलराम जाखड़ कर राजनीतिक विरासत को संभालने की चुनौती होगी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 15 Oct 2017 04:58 PM (IST)Updated: Sun, 15 Oct 2017 06:00 PM (IST)
तीसरे प्रयास में लोस पहुंचे सुनील, पिता बलराम जाखड़ की विरासत संभालने की चुनौती
तीसरे प्रयास में लोस पहुंचे सुनील, पिता बलराम जाखड़ की विरासत संभालने की चुनौती

जेएनएन, चंडीगढ़। गुरदासपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव को जीत कर सुनील जाखड़ ने पिता बलराम जाखड़ की राजनीतिक विरासत को संभालने की अोर कदम बढ़ा दिया है। बलराम जाखड़ ने केंद्र सरकार में मंत्री अौर लाेकसभा के स्‍पीकर के तौर पर देश की राजनीति में विशिष्‍ट पहचान बनाई। अब लोकसभा पहुंचने के बाद सुनील जाखड़ के लिए इस मुकाम को हासिल करने की चुनौती होगी। 21 साल में दो लोकसभा चुनावों में हार के बाद उनको यह जीत नसीब हुई है।

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गुरदासपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में जीत जाखड़ के राजनीतिक जीवन के लिए महत्‍वपूर्ण है। पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह जीत उनके लिए बेहद खास है। उनकी यह जीत न सिर्फ कांग्रेस के लिए नए दरवाजों को खोलेगी बल्कि सुनील जाखड़ को नया मुकाम दे सकती है। जाखड़ का लोकसभा पहुंचने का सपना 21 साल बाद साकार हुआ है।

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सुनील जाखड़ ने पहली बार 1996 में लोकसभा चुनाव लड़ा था। उस समय वह पंजाब के फिरोजपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे। लेकिन वह बीएसपी के मोहन सिंह से 59,912 वोटों से हार गए थे। इसके बाद उन्‍होंने पंजाब विधानसभा चुनाव पर ध्‍यान लगाया। वह पंजाब विधानसभा चुनाव में लगातार तीन बार जीते। इसके बाद 2012 में कांग्रेस ने उन्हें पंजाब विधानसभा नेता प्रतिपक्ष बनाया।

कांग्रेस विधायक दल का नेता रहते हुए जाखड़ 2014 में फिरोजपुर सीट से फिर लोकसभा चुनाव में उतरे, लेकिन इस बार भी उन्‍हें निराशा हाथ लगी। वह 31,420 वोटों से हार गए। इसके बावजूद उनकी पंजाब की राजनीति में अलग पहचान बना चुकी थी। महज 44 विधायकों वाली कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले सुनील जाखड़ ने विधान सभा में मुद्दे और आंकड़ों पर आधारित राजनीति के जरिये सत्तारूढ़ अकाली दल और भाजपा को कई मौकों पर असहज किया।

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पंजाब की राजनीति में सुनील जाखड़ की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद उन्हें प्रदेश कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाया गया। गुरदासपुर उपचुनाव में उनको पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष प्रताप सिंह बाजवा के विरोध के बावजूद प्रत्याशी बनाया गया। बाजवा इस सीट से विनोद खन्‍ना को 2009 में हरा चुके थे और इस सीट पर अच्‍छा प्रभाव रखते थे। बाजवा अपनी पत्‍नी के लिए टिकट चाह रहे थे। चुनाव में जाखड़ ने 1,93,219 वोटों से जीत हासिल कर पार्टी के फैसले को सही साबित कर दिया।

उपचुनाव में जाखड़ की जीत इसलिए भी काफी मायने रखती है कि इसमें बाहरी होने के प्रचार के बावजूद उन्‍होंने जीत का परचम लहराया। उनकी जीत की खास बात यह भी है कि वह गुरदासपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वियों से आगे रहे।

सुनील जाखड़ की इस जीत के साथ ही कांग्रेस में एक नई बहस शुरू होने की भी संभावना है कि वह राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाएंगे या कैप्‍टन अमरिंदर सिंह के उत्‍तराधिकारी के तौर पर खुद को पेश करने की कोशिश करेंगे। पंजाब की राजनीति के जानकारों का कहना है कि यह देखना रोचक होगा कि वह कांग्रेस के मिशन 2022 यानि अगले विधानसभा चुनाव में किस भूमिका में होंगे।

देखें तस्वीरेंः गुरदासपुर में जाखड़ की एेतिहासिक जीत, जमकर मना जश्न

बता दें कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही स्पष्ट कर चुके है कि यह उनका राजनीति में अंतिम कार्यकाल है। वह इस कार्यकाल के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लेंगे। फिलहाल पंजाब में कैप्टन के मुकाबले कांग्रेस के पास कद्दावर नेता नहीं है। वैसे नवजोत सिंह सिद्धू इसके लिए आगे आने की कोशिश्‍ा में लगे दिखते हैं।

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'' यह जीत सुनील जाखड़ की नहीं बल्कि पार्टी की है। सभी ने चुनाव में उतनी ही भूमिका निभाई जितनी मैंने। यह संगठित जीत है, जिसमें नेता व कार्यकर्ता सभी शामिल है। राष्ट्रीय या प्रदेश की राजनीति के संबंध में सवाल का जवाब देना अभी जल्दबाजी होगी।

                                                                                                                              - सुनील जाखड़। 

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