अभिनय के नवरस से हुए रूबरू
रंगमंच के नवरस। जिससे बना है अभिनय।
जागरण संवाददाता,चंडीगढ़ : रंगमंच के नवरस। जिससे बना है अभिनय। अभिनय केवल भावनाओं को व्यक्त करना नहीं है। बल्कि उसको जीना भी है। ऐसे में अभिनय करने के पीछे भी एक व्याकरण होती है। जिसे कोर्स करके ही समझा जाता है। अभी तक केवल कुछ नाटक करके आप अभिनय नहीं सीख सकते। इसकी ट्रे¨नग और ग्रामर दोनों से ही गुजरना जरूरी है। क्लासिकल डांसर सुचित्रा मलिक ने नृत्य से होते हुए अभिनय को कुछ इन्हीं शब्दों में बयां किया। सोमवार से टैगोर थिएटर-18 में शुरू हुई अभिनय वर्कशॉप में उन्होंने कला से जुड़े लोगों को इसकी बारीकियां सिखाई। चंडीगढ़ संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित इस वर्कशॉप में विभिन्न उम्र के लोग शामिल हुए। एक प्रतिशत अपना भी बचा करना रखना.
सुचित्रा ने प्रतिभागियों को किरदार में जाने से जुड़े प्रोसीजर पर बात की। उन्होंने कहा कि किरदार में 100 प्रतिशत जाना क्या सही है? ऐसा नहीं होना चाहिए। आपको एक प्रतिशत खुद का बचाना चाहिए। जब आप कोई ¨हसक किरदार करें, तो ये जरूरी नहीं कि किसी को सच में मार ही डालें, इसमें आपके भाव मारने के होंगे, मगर असल में एक्शन ऐसा नहीं होगा। ऐसे में अपने दिमाग में एक किरदार की छवि को बनाना होगा, उसके बाद किरदार की खासियत और उसके अनुसार उसके एक्शन को खुद डिसाइड करना होगा। हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपनी ही भाषा से दूर हैं। जैसे कि संस्कृत, जिसे साइंटिफिक्ली बेहतरीन भाषा कहा जाता है। इस भाषा से ही आप अभिनय का मतलब समझ पाएंगे। इसका मतलब है कि कुछ आगे तक लेकर जाना। जिससे आप अपने अंदर के भाव दर्शकों तक लेकर जाते हैं। इसे ही अभिनय कहते हैं। बिन बोले कोई रस प्रस्तुत करना बनाता है बेहतरीन एक्टर
सुचित्रा ने इसके बाद प्रतिभागियों को एक एक्सरसाइज दी। जिसमें प्रतिभागियों को बिना आवाज के हास्य रस दिखाने को कहा गया। इसके बाद सुचित्रा ने कहा कि हर रस के साथ कोई न कोई एक्ट जुड़ा होता है। आप जब हंसते हैं, तो किसी का मजाक उड़ाते हैं, आपके हाथ इस दौरान एक्ट कर रहे होते हैं। हमें सचेत होकर एक्टिंग से जुड़ना है। ऐसे ही उदासी, श्रंगार और विभिन्न रस में भी हमें अपने एक्शन पर बराबर नजर रखनी है। इसे ऑब्जर्वेशन भी कहते हैं। आप दूसरों को देखकर एक किरदार को तय करते हैं, फिर उसे अपने रूप में करने की कोशिश करते हैं, इसे ही अभिनय कहते हैं।