पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र कल, विपक्ष ने दिखाए तीखे तेवर, बाजवा बोले- आप सरकार कर रही ड्रामा
पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र कल होगा। मुख्यमंत्री के भाषण पर कांग्रेस वाकआउट कर सकती है। नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा का कहना है कि सत्र में पराली और बिजली तो एक ड्रामा गुजरात और हिमाचल चुनाव असली निशाना है।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में हंगामा होगा, इसकी पटकथा लिखी जा चुकी है। विपक्ष को यह बात अच्छी तरह पता है कि जीएसटी, बिजली और पराली को लेकर भले ही सत्र बुलाया गया हो, लेकिन सरकार इसमें विश्वास प्रस्ताव लाएगी।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने यह रणनीति बना ली है कि सरकार विश्वास प्रस्ताव लाएगी तो वह अपनी बात तो रखेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान को सुनना उनके लिए अनिवार्य नहीं है। भले ही सरकार ने विपक्ष को सवाल उठाने के लिए कोई मौका न दिया हो, लेकिन कांग्रेस वाकआउट के हथियार का प्रयोग करेगी।
नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा का कहना है, कल के सत्र से पंजाब को कुछ भी नहीं मिलने वाला। इस सत्र में केवल भाजपा और कांग्रेस को कोस कर आम आदमी पार्टी हिमाचल व गुजरात के मतदाताओं पर फोकस करेगी।
बाजवा ने एक बार फिर भविष्यवाणी की कि सरकार केवल ड्रामा करेगी। महिलाओं को 1000 रुपये देने के नाम पर सरकार दावा करेगी कि वह इसे देना तो चाहती थी, लेकिन जीएसटी के मुआवजें के रूप में मिलने वाली 14000 करोड़ रुपये की राशि बंद हो गई। बिजली बिल सरकार ने माफ कर दिए।
पराली निस्तारण के लिए अगर केंद्र सरकार 1500 रुपये की सहायता राशि देती तो किसानों को 2500 रुपये प्रति एकड़ सहायता दी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि आप का असली मकसद हिमाचल और गुजरात में धर्मनिरपेक्ष वोट बैंक को लुभाना है। अगर ऐसा न होता तो फिर सत्र बुलाने की ऐसी कौन की आपात स्थिति आ गई थी। सरकार ने 15 दिन का नोटिस क्यों नहीं दिया। विधानसभा में प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानकर्षण प्रस्ताव आना नहीं है। विपक्ष के पास यह भी अधिकार होता है, जिसके जरिये वह सरकार से सवाल कर सकती है।
बाजवा ने सत्र बुलाने पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा, आखिर सत्र बुलाने को लेकर इतनी इमरजेंसी क्या थी? राज्यपाल को सत्र बुलाने को लेकर मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी। सरकार की यह कूटनीतिक चाल है। जून में बजट सत्र हुआ था।
तकनीकि रूप से दिसंबर में अगला सत्र होना चाहिए था। हिमाचल और गुजरात में नवंबर अंत या दिसंबर पहले सप्ताह में चुनाव होने हैं। सितंबर में एक दिन का सत्र बुला लेने से सरकार को अब मार्च तक विधान सभा का सत्र बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
वहीं, विश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद सरकार को छह महीने तक अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ेगा। तब तक गुजरात और हिमाचल के चुनाव हो चुके होंगे। बाजवा ने यह स्पष्ट किया कि कांग्रेस सत्र में हिस्सा लेगी और अपनी बात रखेगी। आगे का फैसला मौके पर किया जाएगा। नेता प्रतिपक्ष ने यह संकेत दे दिए कि विश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस को बोलेगी लेकिन मुख्यमंत्री के भाषण को सुनने के लिए वह बाध्य नहीं है।