बीआइएसएफइडी रीजनल Championship में जलवा दिखाएंगे दिव्यांग इंटरनेशनल खिलाड़ी Chandigarh News
Faja BISFED Regional Championship प्रतियोगिता 14 से 20 दिसंबर को आयोजित होगी। इसमें 25 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं।
चंडीगढ़, [विकास शर्मा]। मंजिल तो मिल ही जाएगी, भटककर ही सही। गुमराह तो वो हैं, जो घर से निकले ही नहीं। यह पंक्तियां स्टीक बैठती हैं अजेय राज, निवरन पामा और ब्रिजेश यादव पर। यह तीनों बोसिया के इंटरनेशनल स्तर के खिलाड़ी हैं। दुबई में आयोजित होने वाली फाजा बीआइएसएफइडी रीजनल चैंपियनशिप-2019 में भारत के चार खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं।
यह प्रतियोगिता 14 से 20 दिसंबर को आयोजित होगी। इसमें 25 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं। इसी प्रतियोगिता में चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैव सेंटर में नेशनल बोसिया कोचिंग कैंप लगाया गया है, इसमें बीसी थ्री कैटेगरी अजेय राज और निवरन पामा और बीसी फोर कैटेगरी में ब्रिजेश यादव कोचिंग ले रहे हैं।
ब्रीसी थ्री कैटेगरी में वही खिलाड़ी खेलते हैं, जिनका गर्दन से नीचे का हिस्सा पैरालाइज्ड होता है, वहीं बीसी फोर कैटेगरी में वह खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं जो व्हीलचेयर पर होते हैं। बीसी फोर कैटेगरी में ब्रिजेश यादव हैं। उनके अलावा अन्नपूर्णा इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगी। अन्नपूर्णा कर्नाटक में सरकारी जॉब करती हैं, उन्हें सफर में दिक्कत न हो, इसलिए सोसाइटी की तरफ से उनकी ट्रेनिंग की व्यवस्था कर्नाटक में कर दी है।
दिव्यांगता को नहीं बनने दिया अपनी कमजोरी
अजेय, निवरन और ब्रिजेश सामान्य थे, लेकिन इनके जीवन में कुछ ऐसा घटा की इन्हें पूरी जिंदगी पर व्हीलचेयर पर बिठा दिया। साल 2006 में सड़क हादसे में अजय की गर्दन टूट गई, तब से अजेय व्हीलचेयर पर हैं। उनका सिर्फ गर्दन से ऊपर का हिस्सा काम करता है। बावजूद इसके अजेय ने हार नहीं मानी और पढ़ाई पूरी कर अब चंडीगढ़ स्पाइनल रिहैव सेंटर में जॉब करते हैं। इसके साथ बोसिया के इंटरनेशनल खिलाड़ी भी हैं।
निवरन ने बताया कि अप्रैल 2015 में गढ़शंकर के पास बस हादसा हुआ। इस हादसे में उनकी गर्दन टूट गई, सही समय पर इलाज नहीं मिला, जिस वजह से अब गर्दन के नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया है। वहीं लायंस नायक ब्रिजेश यादव आर्मी में पहलवान थे।
अाठ अप्रैल 2013 को मध्यप्रदेश के सिकंदराबाद में कुश्ती कर रहे थे, तभी उनकी गर्दन टूट गई। इसके बाद कई प्रयास हुए, लेकिन वो व्हीलचेयर से नहीं उठ पाए। हां उनके हाथ-पांव सही ढंग से काम करते हैं।ब्रिजेश अब पीआरसी मोहाली में रहते हैं, वह बीसी -4 कैटेगरी के खिलाड़ी हैं।
खिलाड़ियों से मेडल की उम्मीद
पैरा बोसिया स्पोर्ट्स वेलफेयर सोसाइटी इंडिया के प्रेसिडेंट जसप्रीत सिंह धालीवाल ने बताया कि बोसिया को पैरा ओलंपिक गेम्स में साल 1984 में शामिल किया गया था। यह पैरा ओलंपिक की 22 खेलों में एक खेल है। हमने इस खेल की शुरूआत इंडिया में 2015 में की थी।
इसी साल मार्च में हमने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में इस गेम्स का आयोजन करवाया, जिसमें विजेता चार खिलाड़ियों का चयन फाजा बीआइएसएफइडी बोसिया रीजनल चैंपियनशिप के लिए किया गया है। यह खिलाड़ी मेडल जीतकर देश लौटे इसके लिए अभी इनका कोचिंग कैंप लगाया गया है।
ऐसे खेलते हैं बोसिया
कोच दपेंद्र सिंह बराड़ ने बताया कि बोसिया खेल छह रंगों की गेंद का खेल है। इसमें सफेद रंग की गेंद टारगेट गेंद होती है। हम अपने सिर पर लगी एक छड़ से एक एक कर इन गेंदों को धक्का देते हैं, ऐसे में सफेद गेंद के नजदीक जितनी गेंद होंगी, उतने ही प्वाइंटस आपको मिलेंगे। उन्होंने बताया कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह खेल रोचक नहीं हो सकता है, लेकिन जिन लोगों का पूरा शरीर पैरालाइज्ड होता है, उनके लिए गर्दन हिलाकर गेंद को धक्का देना भी बड़ी चुनौती होता है।