22 सालों से यह समाजसेवी विधि-विधान से करवा रहे लावारिस शवों का अंतिम संस्कार
समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ 22 साल से अभी तक 2130 लावारिस शवों की आत्मा की शाति के लिए विधि-विधान से संस्कार करवा चुके हैं।
कुलदीप शुक्ला, चंडीगढ़ : समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ 22 साल से अभी तक 2130 लावारिस शवों की आत्मा की शाति के लिए विधि-विधान से संस्कार करवा चुके हैं। चंडीगढ़ में लावारिस शवों का संस्कार करवाने के लिए पीजीआइ, जीएमसीएच-32, जीएमएसएच-16 और पुलिसकर्मियों की जुबा पर एक ही नाम आता है। मौलीजागरा में रहने वाले मूलरूप से हिमाचल निवासी समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ। हर महीने समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ करीब 15 से 20 लावारिस शवों का संस्कार करते हैं। वे खुद मॉर्चरी से लावारिस शवों को शमशानघाट तक लेकर जाते हैं और उनका संस्कार करते हैं। इस सराहनीय कार्य के लिए चंडीगढ़ पुलिस मदनलाल को सम्मानित कर चुकी है। 22 साल से मदन लाल वशिष्ठ अभी तक 2130 लावारिस शवों का संस्कार कर चुके हैं जोकि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। मॉर्चरी में रखे गल चुके शवों के पास भी कोई जाना नहीं चाहता, उनका संस्कार कर वशिष्ठ विधि विधान से करते हैं। उनका कहना है कि चंडीगढ़ आकर एक समाजसेवी संस्था से जुड़ा था। पहले पहल समाजसेवा मकसद हुआ करता था अब जुनून बन गया है। मदन लाल बताते हैं कि कुछ दिन अगर कोई संस्कार न करूं तो लगता है कि जीवन का मकसद ही खत्म हो गया है। संस्कार करने के बाद वे खुद उनके फूल उठाकर सेक्टर-25 शमशानघाट में इकट्ठे करते हैं। उन्होंने लावारिस शवों का संस्कार करने के लिए समय फिक्स कर रखा है। वे शाम 3 बजे के बाद लावारिस शवों का संस्कार करते हैं, ताकि इससे पहले पूरी कार्रवाई कर सके।
1996 से जारी है मिशन संस्कार
समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ ने बताया कि वे मूलरूप से हिमाचल प्रदेश स्थित बलासपुर जिला के गाव पलसौटी के निवासी हैं। 1978 में वे चंडीगढ़ आए थे, उस दौरान वे ऑल इंडिया सेवा समिति के सदस्य बने। उन्होंने देखा कि अस्पतालों में पड़े लावारिस शवों के संस्कार के लिए कोई बंदोबस्त नहीं हैं, जिसके बाद उन्होंने यह बीड़ा उठाने की ठानी और आज तक इस मिशन को चला रहे है।
निगम से भी मिलती है मदद
समाजसेवी मदन लाल वशिष्ठ ने बताया कि लावारिस शवों का संस्कार करने पर आने वाला खर्च में नगर निगम से भी मदद मिलता है। लेकिन, उसके लिए काफी औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं, जिसके लिए कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। मानों वह ठेकेदार हों और किसी सरकारी काम का बिल पारित करवा रहे हों। उन्हें नगर निगम एक शव का संस्कार करने पर 2300 रुपये देता है। उन्होंने बताया कि कई लोग इस काम के लिए दान भी देते हैं लेकिन नाम कमाने के लिए नहीं, बल्कि मन की शाति के लिए कार्य करते हैं। घर का गुजारा चलाने को 3 बजे तक लगाते हैं लॉ की किताबों की फेरी
अपने घर का गुजारा लॉ की किताबें बेचकर करते हैं। दोपहर 3 बजे से पहले शहर में घूम-घूम कर कमीशन पर लॉ की किताबें बेचते हैं। जब कभी संस्कार के लिए कोई इंतजाम नहीं होता तो अपनी जेब से भी वह शव का संस्कार करने से गुरेज नहीं करते है। अस्पताल से श्मशानघाट तक एंबुलेंस में लेकर जाते हैं शव
मदनलाल वशिष्ठ ने बताया कि लवारिस शवों को अस्पताल की मॉर्चरी से श्मशानघाट तक पहुंचाने के लिए वह एंबुलेंस को हॉयर करते हैं। उन्होंने बताया कि एंबुलेंस का खर्च वह खुद उठाते हैं। 20 वर्ष बाद यूटी पुलिस ने किया सम्मानित
लावारिश शवों का संस्कार करने वाले समाज सेवी मदन लाल वशिष्ठ को सराहनीय कार्य के लिए चंडीगढ़ पुलिस ने सम्मानित तो किया, लेकिन 20 वर्ष बाद। इससे पहले पूर्व तत्कालिक यूटी एसएसपी डॉ. ईश सिंघल ने उन्हें प्रमाण पत्र, चंडीगढ़ पुलिस का बैच और 3 हजार रुपये देकर उन्हें सम्मानित किया था। मदन लाल वशिष्ठ ने बताया कि 20 साल में पहली बार सही पर सम्मान तो मिला, जिसने उनके हौंसले और बढ़ा दिया हैं।